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जालोर

पैरामीटर ध्यान नहीं और एसडीएम पहुंच गए जांच करने…

– कलक्टर के निर्देश पर हुई थी काउंटिंग और क्वालिटी की जांच, 40 हजार के लगभग पाइप को लगाने पर लगाई थी रोक

जालोरSep 11, 2017 / 11:07 am

Khushal Singh Bati

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– कलक्टर के निर्देश पर हुई थी काउंटिंग और क्वालिटी की जांच, 40 हजार के लगभग पाइप को लगाने पर लगाई थी रोक

जालोर. पिछले माह कलक्टर के निर्देश के बाद एसडीओ की ओर नर्मदा प्रोजेक्ट में उपयोग में लिए गए पाइप की काउंटिंग और उनकी क्वालिटी की जांच को लेकर प्रशासन व विभाग आमने सामने हैं। इस मामले में परियोजना के एसई ने यह तक कह दिया कि एसडीओ को इस तरह से जांच का अधिकार नहीं है। यदि शिकायत भी थी तो उसे एक्सपर्ट से जांच करवाई जानी चाहिए। वहीं कलक्टर का कहना है कि उन्हें बार बार उपयोग में लिए जा रहे पाइप में गड़बड़ी की शिकायत मिल रही थी। जिसके कारण यह जांच करवाई गई।
जिले में पहला मौका था जब किसी प्रोजेक्ट मेें संबंधित सामान की क्वालिटी की जांच एसडीएम की ओर से की गई। जांच के क्या पैरामीटर रहे और जांच किस तरह से हुई यह अधिकारी बनाने की स्थिति में नहीं थे। इस मामले में विभागीय अधिकारी का कहना है कि एसडीएम को इस तरह से जांच का अधिकार तक नहीं है, केवल कलक्टर के आदेश पर उन्होंने जांच की।
छह एसडीओ ने की जांच
जानकारी के अनुसार नर्मदा कलस्टर प्रोजेक्ट के लिए उम्मेदाबाद और भैंसवाड़ा में कुल ४० हजार पाइप का स्टॉक पड़ा था। जिसकी विभागीय स्तर पर जांच हो चुकी थी। जिसके बाद कलक्टर ने आनन फानन में संबंधित एसडीओ को इनकी क्वालिटी की जांच और काउंटिंग के लिए निर्देश दिए। अधिकारी भी कलक्टर के निर्देश पर पहुंचे, लेकिन पाइप के ढेर देखकर उनका सिर चकरा गया। चूंकि निर्देश था इसलिए किसी भी तरह से कार्य होना था। सरकारी महकमे को भी इस काम में लगाया गया। आहोर एसडीएम का कहना है कि हमनें इनकी गिनती करवाई। ऐसे में गौर करने वाली बात यह है कि ४० हजार पाइप के ढेर की काउंटिंग इन अधिकारियों ने किस तरह से जांची होगी और उसके बाद इसकी रिपोर्ट में क्वालिटी का आकलन किस तरह से किया गया होगा।
विभिन्न स्तर पर होती है जांच
इधर, विभागीय अधिकारियों की मानें तो इन पाइपों की विभिन्न स्तर पर पहले ही जांच होती है। पहले स्तर पर कंपनी की ओर से इनकी जांच होती है। उसके बाद थर्ड पार्टी की ओर से निरीक्षण भी होता है। उनके बाद ही यह फाइनल स्टेज पर काम में लिया जाता है।
ऐसे अटका मामला
विभागीय जानकारी के अनुसार कलक्टर ने प्रोजेक्ट में पाइप लाइन के उपयोग में रोक के निर्देश जारी किए थे। कलक्टर का कहना था कि पाइप लाइन यूपीवीसी (अन प्लास्टिसाइड पोलिविलाड क्लोराइड) के स्थान पर पीवीसी (प्लास्टिसाइड पोलिविलाड क्लोराइड) है। जबकि नर्मदा प्रोजेक्ट के अधिकारियों का कहना है कि इस पर केवल मार्क नहीं था, जबकि पाइप यूपीवीसी ही है। इसकी जांच भी हो चुकी है। जयपुर से विजिलेंस टीम ने भी इसकी जांच की और उसके बाद सेंपल दिल्ली में लेब में जांच के लिए भी भेजा गया है।
देरी से जारी हुई परमिशन
प्रोजेक्ट के लिए ईसी (एक्साइज एक्समक्शन सर्टिफिकेट) हाथों हाथ जारी होना चाहिए। लेकिन प्रशासन की ओर से इसमें देरी की गई। करीब डेढ़ माह तक मामला अटकाया गया। अधिकारियों का कहना था कि पाइप लाइन की विभिन्न स्तर पर जांच के बाद ही यहां पहुंचे थे, लेकिन अनाकरण ही अब फिर से मामला अटकाया गया। इसके कारण काम भी देरी से शुरू होगा। यह प्रोजेक्ट वैसे ही देरी से चल रहा है और सरकार भी इस पर फोकस कर रही है, 267 गांवों से जुड़े इस प्रोजेक्ट में देरी का खामियाजा आमजन को ही भुगतना पड़ेगा।
इनका कहना
कलक्टर के निर्देश पर उम्मेदाबाद में 9 हजार पाइप लाइन की क्वालिटी की जांच के साथ साथ उनकी काउंटिंग करवाई गई थी। जांच में पाइप संख्या के अनुरूप पाए गए थे।
– राजेंद्रसिंह सिसोदिया, एसडीएम, जालोर
निर्देश पर भैंसवाड़ा में पाइपों की गिनती कर जांच की गई थी। उसके बाद रिपोर्ट भेज दी गई थी।
– प्रकाशचंद्र अग्रवाल, एसडीएम, आहोर
नहीं कर सकते जांच
नियमानुसार एसडीएम इस तरह से जांच नहीं कर सकते। यदि गड़बड़ी की आशंका भी हो तो किसी एक्सपर्ट पैनल या लेब में जांच करवाई जानी चाहिए। कलक्टर ने पाइप की क्वालिटी को लेकर ऑब्जेक्शन लगाया था, लेकिन पाइप विभिन्न स्तर पर टेस्टिंग के बाद ही पहुंचते हैं। विजिलेंस भी जांच कर चुकी है और सेंपल जांच के लिए नई दिल्ली लेब में भी भेजा गया है।
– केएल कांत, एसई, नर्मदा परियोजना
शिकायत मिली थी
नर्मदा परियोजना में उपयोग में लिए जाने वाले पाइप को लेकर शिकायतें मिल रही थी। जिसके बाद संबंधित एसडीओ को इसकी जांच के लिए निर्देशित किया गया था। पाइप के प्रत्येक मीटर पर यूपीवीसी लिखा होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं था।
– एलएन सोनी, कलक्टर, जालोर
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