scriptसंत वही होता जो स्वार्थ नहीं परार्थ के लिए जीता है | Saints were the ones who did not have the selfishness for altruism | Patrika News
चेन्नई

संत वही होता जो स्वार्थ नहीं परार्थ के लिए जीता है

– आचार्य पन्नालाल की जन्म जंयती मनाई

चेन्नईSep 18, 2018 / 01:14 pm

Santosh Tiwari

altruism,Saints,soul,Selfishness,

संत वही होता जो स्वार्थ नहीं परार्थ के लिए जीता है

चेन्नई. एमकेबी नगर जैन स्थानक में श्री जैन संघ के तत्वावधान एवं साध्वी धर्मप्रभा और स्नेहप्रभा के सानिध्य में आचार्य पन्नालाल की जन्म जंयती, अन्नदानम, सामूहिक एकासना, दया और सामायिक दिवस के रूप में मनाई गई। महिला मंडल के गायन से शुरू हुए इस समारोह में स्वागत भाषण अध्यक्ष पवन तातेड़ ने दिया। इस अवसर पर साध्वी धर्मप्रभा ने कहा वे एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व को लेकर प्रकट हुए थे। उनके हृदय में स्वस्थ समाज और आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण की तड़प थी। वे समाज और व्यक्ति को उस बिंदु तक ले जाना चाहते थे जहां वैषम्य का अभाव हो, गतानुगतिकता न हो और मानव चेतनायुक्त होकर अपने सामाजिक और राष्ट्रीय दायित्व का निर्वाह करने में सक्षम हो। उन्होंने कभी भी सिद्धांतों से सौदेबाजी करना स्वीकार नहीं किया। उन्होंने सिद्धांतों के ढांचे को पवित्र जीवन के सौंदर्य से सुसज्जित और सुडौल किया। अपने जीवन में उन्होंने कई स्थानों पर बलि प्रथा बंद करवाई और पुरानी रूढिय़ों का उन्मूलन किया।
साध्वी ने कहा उन्होंने अपने जीवन में ये साबित कर दिया कि एक संत युगों का शिक्षक होता है। संत वही होता है जो कभी स्वार्थ के लिए नहीं परार्थ के लिए जीता है। उसका हृदय मक्खन की तरह कोमल होता है यानी दीन एवं जरूरतमदों के दुखों को देखकर वे द्रवित हो जाते थे। इसके बिलकुल विपरीत जब उन पर कष्ट आता है तो वे वज्र के समान कठोर बन जाते है। ऐसे संत दुनिया से जाने के बाद भी अपने कार्यों और गुणों से दुनिया में सदा के लिए अमर हो जाते हैं।
साध्वी स्नेहप्रभा ने कहा ऐसे महापुरुष अपने कर्तव्य से अमर रहते हंै। उन्होंने अपने जीवन में तितिक्षा भाव को अपनाया। बड़े बड़े संकटों में भी धैर्य नहीं छोड़ा। उनकी दूरदर्शिता, गंभीरता, चिंतनशीलता और वाक्पटुता विलक्षण थी। वे निर्भीक व्यक्तित्व के स्पष्ट वक्ता थे जो जीवनभर रूढिय़ों से लड़ते रहे। समाज में ज्ञान, शिक्षा, स्वाध्याय के प्रचार के लिए उन्होंने पहल की। श्रमण संघ के संगठन में उन्होंने योगदान दिया। बारह वर्ष की आयु में संयम ग्रहण करके अपना जीवन समाज में फैली हुई बुराई को दूर करने में लगा दिया। वे निंदा या अपमान से कभी भी भय नहीं खाते थे। इस अवसर पर मधु बोहरा, महावीर तांतेड़, पप्पीलता लूणावत, रमेश सुराना, राजेश चौरडिय़ा, त्रिशला बहू मंडल, गौतमचंद मूथा और संजू छल्लाणी ने भी विचार प्रकट किए। समारोह का संचालन सज्जनलाल सुराणा ने किया।

Home / Chennai / संत वही होता जो स्वार्थ नहीं परार्थ के लिए जीता है

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो