डॉक्टर्स की माने तो तिली अस्पताल और बीएमसी के आसपास की कॉलोनी में कुत्ते ज्यादा ङ्क्षहसक हो गए हैं। कहीं न कहीं ये जानवर अस्पताल परिसर में रखे मेडिकल वेस्ट के कचरा कचरादानों तक पहुंच जाते हैं और मेडिकल वेस्ट खा लेते हैं। बीएमसी में ही करीब 25-30 कुत्ते बने रहते हैं जो समय-समय पर आसपास की कॉलोनियों में भी इलाका बना लेते हैं। जिला अस्पताल के पीछे तरफ भी अवारा कुत्तों का जमावड़ा बना रहता है। यह कुत्ते गाय, बकरी व शुअर के बच्चों को जिंदा खा जाते हैं और इंसानी बच्चों पर हमले करने में भी पीछे नहीं रहते।
बीएमसी डॉक्टर्स की माने तो विगत दिनों नगर निगम कमिश्नर के साथ हुई बैठक में भी डॉक्टर्स ने यह चिंता जाहिर की थी। जिसमें निगम अधिकारी ने बताया था कि कुत्तों की नशबंदी के लिए करीब 17 हजार प्रति कुत्ता का खर्च आता है। यानि इंसानी नसबंदी से मंहगा कुत्ता की नसबंदी कराना होता है। इसके अलावा यदि बजट जुटा भी लिया जाए तो नसबंदी अभियान के बाद समाज सेवी संस्थाएं एक्टिव हो जाती हैं। कोर्ट, कचहरी, नोटिस का जवाब देने में अधिकारियों को भी पसीना छूट जाता है। ऐसे में अधिकारी भी पशु अधिकार का हवाला देकर अपनी जिम्मेदारी से इतिश्रि कर लेते हैं।
जिला अस्पताल में जहां हर दिन 25-30 मरीज पहुंचते हैं, वहीं बीएमसी में भी 15-20 रेबीज इंजेक्शन का उपयोग हो रहा है। इसके अलावा मकरोनिया, बंडा, शाहगढ़, गढ़ाकोटा, रहली, खुरई, बीना, देवरी, राहतगढ़ सहित तमाम नगरीय क्षेत्र की अस्पताल में प्रतिदिन डॉग बाइट के 5-6 औसत मरीज पहुंचते हैं।
प्रो. डॉ. सर्वेश जैन, सदस्य बीएमसी रेसीडेंट कॉम्पलेक्स समिति।