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भोपाल

अंधविश्वास के नाम पर आज भी स्त्री से हो रहा भेदभाव

शहीद भवन में नाटक अरण्य रूदन का मंचन
 

भोपालJul 22, 2018 / 09:09 am

hitesh sharma

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अंधविश्वास के नाम पर आज भी स्त्री से हो रहा भेदभाव

भोपाल। एडमायर सोसायटी फॉर थिएटर कल्चरल एवं वेलफेयर समिति ने शनिवार को शहीद भवन में नाटक ‘अरण्य रूदनÓ का मंचन किया। 1.20 घंटे के नाटक की डायरेक्टर सिंधु धौलपुरे और लेखक जगदीश त्रिवेदी हैं। नाटक का यह पहला शो है। खास बात यह है कि नाटक में 9 से 14 वर्ष तक के छह बच्चों ने अभिनय किया है। स्लम एरिया में रहने वाले इन बच्चों को दो माह की वर्कशॉप में एक्टिंग की टिप्स दी गई।

नाटक की कहानी एक बच्ची के पहली बार मासिक धर्म होने और ग्रामीण परिवेश में फैले अंधविश्वास पर आधारित है। नाटक के माध्यम से ये मैसेज दिया कि मासिक धर्म होना एक प्राकृतिक क्रिया है, लेकिन समाज और परिवार उसी दिन से उस बच्ची से भेदभाव करने लगता है। उसे किसी चीज को छूने नहीं दिया जाता, घर से बाहर निकलना, यहां तक की किचन में जाना तक प्रतिबंधित कर दिया जाता है। आज भले ही हम खुद को मॉर्डन कहते हैं, लेकिन परंपरा के नाम पर आज भी स्त्री के साथ ऐसा किया जा रहा है।


नाटक की कहानी गांव में रहने वाली निमासा की है, जिसे पहली बार मासिक धर्म आता है। इसे गांव में उत्सव की तरह मनाने की तैयारी की जाती है। पूरे गांव को पता चल जाता है कि निमासा अब बड़ी हो चुकी है। इधर गांव में रहने वाले जमीदार मिरकामसू की नजर उस पर होती है।
वह अंधविश्वासी होने के साथ बहुत क्रूर और दुष्कर्मी भी है। गांव के पंडितों के साथ मिलकर उसे यह बात फैला रखी है कि गांव की छह बच्चियों के साथ रात्रिमुकाम करने से उसके यहां बच्चा हो जाएगा। वह एक-एक कर बच्चियों के साथ दुष्कर्म करता जाता है। वह गांव की एक स्त्री का भी दुष्कर्म करता है, पति के विरोध करने पर उसकी हत्या कर देता है।
बेटी को बचाने मां कर देती है वध
मिरकामसू की पत्नी राजलक्ष्मी भी अपने पति की हरकतों के बारे में जानती है। उसे निमासा में अपनी बेटी नजर आती है। वह उसे बचाने के लिए निमासा की मां लाजो को पैसे और गहने देकर गांव छोडऩे को कहती है, लेकिन जमीदार के लोग उसे ऐसा नहीं करने देते। निमासा को बचाने के लिए वह खुद आत्महत्या कर लेती है।
इधर, जमीदार पत्नी की मौत का जिम्मेदार निमासा को मानता है। पंडित उसे जमीदार के घर लेकर पूजा के बाद रात्रिमुकाम की तैयार कर रहे होते हैं। लाजो वहां आकर जमीदार को मार देती है। गांव वालों से बचने के लिए वह कहती है कि देवी मां ने खुद आकर उसे जमीदार का वध करने के लिए कहा था।
प्ले में हुए शामिल, लेकिन अर्थ नहीं जानते
प्ले में अधिकांश बच्चों ने ही रोल किया। वे मासिक धर्म का मतलब तक नहीं जानते। डायरेक्टर सिंधु धौलपुरे का कहना है कि नाटक में शामिल सभी बच्चे पहली बार स्टेज पर परफॉर्म कर रहे हैं। मंच को बहुत सामान्य रखा गया है, सिर्फ जमीदार का कहना दिखाने के लिए करटन्स का यूज किया गया।

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