नाटक की कहानी एक बच्ची के पहली बार मासिक धर्म होने और ग्रामीण परिवेश में फैले अंधविश्वास पर आधारित है। नाटक के माध्यम से ये मैसेज दिया कि मासिक धर्म होना एक प्राकृतिक क्रिया है, लेकिन समाज और परिवार उसी दिन से उस बच्ची से भेदभाव करने लगता है। उसे किसी चीज को छूने नहीं दिया जाता, घर से बाहर निकलना, यहां तक की किचन में जाना तक प्रतिबंधित कर दिया जाता है। आज भले ही हम खुद को मॉर्डन कहते हैं, लेकिन परंपरा के नाम पर आज भी स्त्री के साथ ऐसा किया जा रहा है।
नाटक की कहानी गांव में रहने वाली निमासा की है, जिसे पहली बार मासिक धर्म आता है। इसे गांव में उत्सव की तरह मनाने की तैयारी की जाती है। पूरे गांव को पता चल जाता है कि निमासा अब बड़ी हो चुकी है। इधर गांव में रहने वाले जमीदार मिरकामसू की नजर उस पर होती है।
मिरकामसू की पत्नी राजलक्ष्मी भी अपने पति की हरकतों के बारे में जानती है। उसे निमासा में अपनी बेटी नजर आती है। वह उसे बचाने के लिए निमासा की मां लाजो को पैसे और गहने देकर गांव छोडऩे को कहती है, लेकिन जमीदार के लोग उसे ऐसा नहीं करने देते। निमासा को बचाने के लिए वह खुद आत्महत्या कर लेती है।
प्ले में अधिकांश बच्चों ने ही रोल किया। वे मासिक धर्म का मतलब तक नहीं जानते। डायरेक्टर सिंधु धौलपुरे का कहना है कि नाटक में शामिल सभी बच्चे पहली बार स्टेज पर परफॉर्म कर रहे हैं। मंच को बहुत सामान्य रखा गया है, सिर्फ जमीदार का कहना दिखाने के लिए करटन्स का यूज किया गया।