1980 में पृथ्वी थिएटर का पहला हाउसफुल शो, गत्ते का लगाना पड़ा बोर्ड
भोपाल। शहीद भवन में चल रहे चार दिवसीय दिनेश ठाकुर स्मृति समारोह का शनिवार को समापन हो गया। अंतिम दिन नाटक ‘हाय मेरा दिल’ का मंचन हुआ। इस नाटक का पहला शो 1978 में कानपुर में हुआ था। नाटक का यह 1145वां शो था। राजस्थान के लेखक रणवीर सिंह ने 1978 में ‘अफसोस हम न होंगे’ कहानी लिखी थी। दिनेश ठाकुर ने इसका नाम ‘हाय मेरा दिल’ रखकर शो शुरू किए। 1980 में इसका शो पृथ्वी थिएटर में हुआ।
ये शो हाउसफुल था, उस समय पृथ्वी थिएटर के पास हाउसफुल का बोर्ड नहीं था, आनन-फानन में गत्ते को बोर्ड लगाकर दर्शकों को शो फुल होने की सूचना देना पड़ी। पृथ्वी थिएटर का यह पहला हाउसफुल शो था। ग्रुप ने भोपाल में पहली बार इस नाटक का मंचन किया।
200 कलाकार कर चुके हैं काम दिनेश ठाकुर ने करीब 1000 शो तक मुख्य किरदार का रोल अदा किया। 2008 में उन्होंने लास्ट शो किया था। पिछले चालीस शो से अमन गुप्ता लीड किरदार कर रहे हैं। वे अब तक करीब 500 शो कर चुके हैं। वहीं, इस नाटक की डायरेक्टर प्रीता माथुर भी करीब 700 शो का हिस्सा बन चुकी है। नाटक में डॉक्टर का किरदार निभाने वाले एससी माखिजा 800 शो के बाद 77 वर्ष का होने के कारण हट गए। पिछले 500 शो से जुड़े शंकर अय्यर अब ये किरदार निभा रहे हैं। अब तक इस नाटक में 200 से ज्यादा कलाकार काम कर चुके हैं। दर्शकों की तीसरी पीढ़ी इसे देखने आती है।
शो मस्ट गो ऑन डायरेक्टर प्रीता बताती हैं कि 2010 में नाटक के पृथ्वी थिएटर में दो शो थे। एक सीन के दौरान फोन आया कि दिनेश जी की तबीयत इतनी खराब है कि उन्हें आईसीयू में भर्ती करना पड़ा है। ये सुनकर आंखों से आंसू आ गए, अगले ही पल मुझे सेट पर कॉमेडी दृश्य में शामिल होना था। मैं ये दृश्य किया। इंटरवल में हमारी पूरी टीम रोने लगी। हमें ये शो पूरे करने थे क्योंकि दिनेश हमेशा कहते थे चाहे कुछ हो जाए शो मस्ट गो ऑन। टीम जब अस्पताल पहुंची तो उन्होंने तपाक से पूछा कि शो देखने कितने दर्शक आए थे।
वहम बन जाता है झगड़े का कारण नाटक की मूल कथा पति-पत्नी के बीच की कहानी है। इसका संदेश है कि वहम न करे तो अच्छा है। जो ऐसा करता है और वहम पाल लेता है तो उसके परिणाम ठीक नहीं होते हैं। उसकी दुर्दशा हो जाती है। नाटक के मुख्य पात्र मदन मोहन अग्रवाल को वहम की बीमारी है। डॉक्टर की बात सही ढंग से नहीं सुनने के कारण उसे वहम हो जाता है कि उसे दिल की बीमारी है और वह कुछ समय बाद मरने वाला है।
वह पत्नी उषा की चिंता में उलझ जाता है। पत्नी को पूरी बात बताकर उसकी शादी की तैयारी करता है। बाद में जब उसे पता लगता है कि वह पूरी तरह से ठीक है तो पुरानी उलझनों को सुलझाने में लग जाता है। उसके बदले हुए व्यवहार को देखकर पत्नी उस पर शक करने लगती है कि उसका किसी के साथ अफेयर है। इसी उलझन में हास्य पैदा होता है जो दर्शकों को न सिर्फ हंसाता है बल्कि शक और वहम न करने की सीख भी देता है।
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