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भीलवाड़ा

चौंकिए मत, अब पानी में पिंजरा उतार पालेंगे जलपरी

पानी की गहराई में नवाचार, वो भी गहराई के बीच में पिंजरों का जाल बिछाकर। जी हां,एेसा ही नवाचार प्रदेश के भीलवाड़ा जिले में मत्स्य पालन को लेकर हो रहा है। इसका कारण दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण के साथ ही मत्स्य की ग्रोथ बढ़ाना है। जिले में नवाचार का केन्द्र बना हुआ है मांडलगढ़ क्षेत्र स्थित जैतपुरा बांध। इस नवाचार से रोजगार के अवसर बढ़ेगे वहीं मत्स्य उत्पादन भी बढ़ेगा। देश में भीलवाड़ा जिला पिंजडा मत्स्य पालन केन्द्र का सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादन केन्द्र साबित होगा।

भीलवाड़ाOct 13, 2019 / 12:01 pm

Narendra Singh Solanki

Do not be surprised, now mermaid will remove cage in water

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नरेन्द्र वर्मा
भीलवाड़ा। पानी की गहराई में नवाचार, वो भी गहराई के बीच में पिंजरों का जाल बिछाकर। जी हां,एेसा ही नवाचार प्रदेश के भीलवाड़ा जिले में मत्स्य पालन को लेकर हो रहा है। इसका कारण दुर्लभ प्रजातियों के संरक्षण के साथ ही मत्स्य की ग्रोथ बढ़ाना है। जिले में नवाचार का केन्द्र बना हुआ है मांडलगढ़ क्षेत्र स्थित जैतपुरा बांध। इस नवाचार से रोजगार के अवसर बढ़ेगे वहीं मत्स्य उत्पादन भी बढ़ेगा। देश में भीलवाड़ा जिला पिंजडा मत्स्य पालन केन्द्र का सबसे बड़ा मत्स्य उत्पादन केन्द्र साबित होगा।
मत्स्य विभाग की पहल के बाद जैतपुरा में केज कल्चर (पिंजडा मत्स्य पालन) अपनाया जा रहा है। जिससे मत्स्य पालक के लिए आजीविका व रोजगार के अवसर बन सकेंगे। केज कल्चर मे मत्स्य पालन तालाब मे तैरते एक बन्द पिंजरे में किया जाता है। इस तकनीक की मदद से छोटे से क्षैत्र में अधिक मछलियों का पालन किया जा सकता है और ये सुरक्षित भी है क्योकि इसमें न तो बडी मछलिया छोटी मछलियो का शिकार कर सकती है और ना ही चोरी होने का डर रहता है। महंगी किस्मों के पालन से अधिक मुनाफ ा मिलता है।
नीली क्रांति से दुर्लभ प्रजातियों को जीवन दान
भारत सरकार की केन्द्रीय सेक्टर योजना नीली क्रान्ति योजनान्तर्गत के तहत भीलवाड़ा में पिंजडा मत्स्य पालन कार्य इसी साल रोहतक के मत्स्य पालक कुलदीप सिंह की टीम ने जैतपुरा बांध पर शुरू किया है। इसके लिए बांध के बीच में २४ केज लगाए गए है। यहां मत्स्य की दुर्लभ प्रजाति पंगेशियस (पंगास) मछली तिलापिया, जयंति, रोहु, मुरेल, झींगा आदि का पालन किया जाएगा। केज कल्चर के जरिए सामान्य तौर पर ५० किलो प्रति मीटर क्यूब का औसत उत्पादन किया जा सकता है। पंगेशियस मछली से १००-१२० किलोग्राम प्रति मीटर क्यूब का उत्पादन किया जा सकता है। इन्हे ३० फीसदी तक प्रोटीनयुक्त फ्लोटींग फ ीड दिया जाता है।
पांच मीटर की गहराई
५-७ मीटर गहराई वाले तालाब व बांधर में केज लगाया जा सकता है। सामान्यत: फ्लोटिंग पिंजरो का इस्तेमाल किया जाता है जिसमे करीब ३ मीटर पिंजरा पानी मे डूबा रहता है एवं १ मीटर सतह से उपर दिखायी देता है। ये पिंजरे गेल्वेनाइज्ड आयरन व प्लास्टिक आदि से बनाए जाते है।
यूं रखनी होती सावधानी
मछली किस्म की स्थानीय बाजार में मांग हो और बेहतर कमत मिले, मछली जो स्थानीय वातावरण में होने वाले बदलाव को सहन कर सके। मछली की वह किस्म जो बाहरी स्त्रोत से दिए गये भोजन को सीमित जगह में आसानी से ग्रहण कर सके। तथा हेण्डलिंग यानी जाल बदलने के समय, जाल साफ करने के दौरान एक जगह से दूसरी जगह स्थानान्तरित करते समय मछली तनाव मे ना आए।
ये मिलेगा सबसे फायदा
केज कल्चर उपयोगी केज कल्चर प्रणाली का इस्तेमाल मछली पालक के लिए परम्परागत तरीके की तुलना में अधिक सुविधाजनक व सस्ता है। इसमे अधिक मात्रा मे मछलियों का संचय व उत्पादन किया जा सकता है। यह पानी को स्वतंत्र प्रवाह होने देता है जिससे बहाव के साथ केज की गन्दगी दूर हो जाती है। इसमे मछलियों का रखरखाव, देखभाल, सेम्पलिंग और उन्हें पकडऩा आसान होता है, तालाब में उपलब्ध क्षैत्र का पूरा इस्तेमाल होता है। प्रबन्धन के लिए कम मजदूरो की जरूरत होती है वही तालाब के निर्माण की तुलना में सस्ता पडता है। देश में १५ राज्यों ने जलाशयो में पिंजरा मछली पालन को बडे स्तर पर अपना रखा है।
डॉ.अनिल जोशी, जिला मत्स्य विकास अधिकारी, भीलवाड़ा

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