भारत सरकार की केन्द्रीय सेक्टर योजना नीली क्रान्ति योजनान्तर्गत के तहत भीलवाड़ा में पिंजडा मत्स्य पालन कार्य इसी साल रोहतक के मत्स्य पालक कुलदीप सिंह की टीम ने जैतपुरा बांध पर शुरू किया है। इसके लिए बांध के बीच में २४ केज लगाए गए है। यहां मत्स्य की दुर्लभ प्रजाति पंगेशियस (पंगास) मछली तिलापिया, जयंति, रोहु, मुरेल, झींगा आदि का पालन किया जाएगा। केज कल्चर के जरिए सामान्य तौर पर ५० किलो प्रति मीटर क्यूब का औसत उत्पादन किया जा सकता है। पंगेशियस मछली से १००-१२० किलोग्राम प्रति मीटर क्यूब का उत्पादन किया जा सकता है। इन्हे ३० फीसदी तक प्रोटीनयुक्त फ्लोटींग फ ीड दिया जाता है।
५-७ मीटर गहराई वाले तालाब व बांधर में केज लगाया जा सकता है। सामान्यत: फ्लोटिंग पिंजरो का इस्तेमाल किया जाता है जिसमे करीब ३ मीटर पिंजरा पानी मे डूबा रहता है एवं १ मीटर सतह से उपर दिखायी देता है। ये पिंजरे गेल्वेनाइज्ड आयरन व प्लास्टिक आदि से बनाए जाते है।
मछली किस्म की स्थानीय बाजार में मांग हो और बेहतर कमत मिले, मछली जो स्थानीय वातावरण में होने वाले बदलाव को सहन कर सके। मछली की वह किस्म जो बाहरी स्त्रोत से दिए गये भोजन को सीमित जगह में आसानी से ग्रहण कर सके। तथा हेण्डलिंग यानी जाल बदलने के समय, जाल साफ करने के दौरान एक जगह से दूसरी जगह स्थानान्तरित करते समय मछली तनाव मे ना आए।
केज कल्चर उपयोगी केज कल्चर प्रणाली का इस्तेमाल मछली पालक के लिए परम्परागत तरीके की तुलना में अधिक सुविधाजनक व सस्ता है। इसमे अधिक मात्रा मे मछलियों का संचय व उत्पादन किया जा सकता है। यह पानी को स्वतंत्र प्रवाह होने देता है जिससे बहाव के साथ केज की गन्दगी दूर हो जाती है। इसमे मछलियों का रखरखाव, देखभाल, सेम्पलिंग और उन्हें पकडऩा आसान होता है, तालाब में उपलब्ध क्षैत्र का पूरा इस्तेमाल होता है। प्रबन्धन के लिए कम मजदूरो की जरूरत होती है वही तालाब के निर्माण की तुलना में सस्ता पडता है। देश में १५ राज्यों ने जलाशयो में पिंजरा मछली पालन को बडे स्तर पर अपना रखा है।
डॉ.अनिल जोशी, जिला मत्स्य विकास अधिकारी, भीलवाड़ा