विनय गुण अपनाने वाला ही सच्चा साधक
मानव को हमेशा विनम्र रहना चाहिए। विनय का गुण अपनाने वाला ही सच्चा साधक होता है। जब भी समय मिले मानव को ईश्वर की आराधना करना चाहिए। विनय मानव के जीवन का श्रेष्ठ आभूषण है। यह शांति का मूल मंत्र है। इससे मानव जीवन सुखी व समृद्ध बनेगा।
विनय गुण अपनाने वाला ही सच्चा साधक
बाड़मेर. संसार का वास्तविक स्वरूप यही है कि जो शत्रु है वो मित्र बन जाएगा और जो मित्र है वो शत्रु बन जाएगा। संसार में कोई भी संबंध चिरस्थायी नही है। यह बात विनयकुशल मुनि ने आराधना भवन में धर्मसभा में कही।
उन्होंने कहा कि मानव को हमेशा विनम्र रहना चाहिए। विनय का गुण अपनाने वाला ही सच्चा साधक होता है। जब भी समय मिले मानव को ईश्वर की आराधना करना चाहिए। विनय मानव के जीवन का श्रेष्ठ आभूषण है। यह शांति का मूल मंत्र है। इससे मानव जीवन सुखी व समृद्ध बनेगा। मानव को चाहिए कि वह जीवन में विनयशीलता का गुण अपनाए। गुरु का आशीर्वाद पाने के लिए भी साधक का विनयशील होना जरूरी है। जो व्यक्ति सरल, सहज और सौम्य होता है, उसका समाज में हर जगह सम्मान होता है।
मुनि ने कहा कि ज्ञान जब बोध रूप में परिणित होता है तब ही जीव का कल्याण कर सकता है। बोध प्रकट होने पर जीव के भीतर अद्भुत संवेदना की अनुभूति व स्पंदना होगी। तब तक जीव में संवेदना नही होगी तब तक ज्ञान बोध रूप में परिणित नही होगा। मुनि ने कहा कि आर्य संस्कृति में कभी भी ज्ञान, कला व पक्के अनाज को पैसों के बदले नही बेचा जाता था। शिक्षा, चिकित्सा और भोजन का कभी भी व्यवसाय नही किया जाता था।
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