परिजनों का नाम डिलिटेड
दीक्षित सी. सोलंकी ने बताया कि जब वे चिकपेट के पास मतदान करने पहुंचे तो उनका नाम था लेकिन परिजनों का नाम नदारद था। परिवार वालों ने जब सूची देखी तो उनका नाम डिलिटेड था। सोलंकी ने बताया कि परिवार के दस लोग मतदान नहीं कर पाए। पूछताछ के बाद यहां नाम हो सकता है, वहां देख लीजिए जैसा जवाब मिलने पर उन्होंने आसपास के बूथों के चक्कर लगाए लेकिन नाम डिलिटेड होने के कारण मताधिकार का प्रयोग करने की इच्छा धरी की धरी रह गई। सोलंकी ने कहा कि कई सीनियर सिटीजन इधर से उधर धक्के खाते रहे। गांधीनगर विधानसभा क्षेत्र में कई लोगों को यह समस्या आई है। तेज धूप में इस बूथ से उस बूथ तक चक्कर लगाने के बाद थक हारकर लोग घर लौट गए। मौके पर मौजूद मतदान कर्मी भी नाम हटाए जाने की कोई तर्कसंगत वजह नहीं बता पाए।
बिना वोट दिए लौटना पड़ा
कब्बनपेट के एक बूथ पर मताधिकार के प्रयोग के लिए गईं वर्षा के. जैन, उनके पति कुलदीप ओ. जैन को भी मन मसोस कर रह जाना पड़ा। कुलदीप ने बताया कि बूथ पर गए तो पता चला कि नाम डिलिटेड था। कई घंटों की मशक्कत के बाद बिना वोट दिए लौटना पड़ा। हालांकि, विधानसभा के समय उन्होंने वोट किया था। जैन ने बताया कि 10-12 अन्य लोग भी नाम गायब होने से परेशान थे। इनमें सभी लोग राजस्थानी मूल के थे। हैरानी की बात तो यह है कि एक ही परिवार के कुछ लोगों के नाम थे और कुछ लोगों के नाम गायब थे। शहर के कई अन्य इलाकों में भी मतदाताओं को ऐसी समस्याओं का सामना करना पड़ा।
खामियों को सुधारा जाए
ट्रेड एक्टिविस्ट सज्जनराज मेहता ने बताया कि सुबह ही कई परिचितों के फोन आए। चिकपेट व अक्कीपेट के कई मित्र नाम गायब होने से परेशान थे। इस तरह के मामले का पता चलते ही मीडिया को सूचना दी गई। नेताओं को फोन करने पर भी बात नहीं बनी। इनमें से कई लोग अपना पूर्व निर्धारित कार्यक्रम छोडक़र मतदान करने पहुंचे थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें राजस्थान जाना था लेकिन उन्होंने मतदान करना ज्यादा जरूरी समझा था। मेहता ने कहा कि मतदाताओं के साथ बड़े पैमाने पर अन्याय हुआ है। इस तरह की खामियों को सुधारे बिना मत प्रतिशत बढ़ाने की कोशिश अधूरी एवं महज दिखावा ही बनी रहेगी।