‘एक राष्ट्र-एक ग्रिड’ का हिस्सा
यह परियोजना, केंद्र सरकार की ‘एक राष्ट्र-एक ग्रिड’ का हिस्सा है। इसका उद्देश्य छत्तीसगढ़ के तमनार से गोवा के जेल्डेम तक निर्बाध बिजली आपूर्ति प्रदान करना है। कर्नाटक में 75 किलोमीटर की ट्रांसमिशन लाइनें बिछाई जाएंगी। ये लाइनें प्रादेशिक वन में 38 किमी और काली टाइगर रिजर्व में 6.6 किमी कर दूरी तय करेंगी।
परियोजना की सिफारिश करने वाले अधिकारियों को नोटिस
वन पारिस्थितिकी और पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव (एसीएस) ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) को लिखे गए पत्र में न केवल गोवा-तमनार परियोजना को अस्वीकार करने के लिए कहा है बल्कि पारिस्थितिकी और वन्य जीव संरक्षण पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वालीं इसके बाद की सभी परियोजनाओं को “शुरुआत में ही खत्म” करने के लिए भी कहा है। एसीएस ने अपने 16 मार्च के पत्र में पीसीसीएफ को उन अधिकारियों को नोटिस जारी करने का भी निर्देश दिया, जिन्होंने परियोजना की सिफारिश की थी।
राज्य सरकार ने परियोजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि लाइनें एक अछूते वन क्षेत्र से होकर गुजरती हैं। इसके बाद परियोजना कार्यान्वयन एजेंसी गोवा-तमनार ट्रांसमिशन प्रोजेक्ट लिमिटेड ने केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
25 हजार पेड़ काटने पड़ते
आखिरकार, एजेंसी गणेशगुड़ी सब स्टेशन से पोंडा सब स्टेशन तक मौजूदा 220 केवी केपीटीसीएल कार्यात्मक लाइन पर ट्रांसमिशन लाइन को फिर से संरेखित करने पर सहमत हुई। हालांकि, राज्य सरकार ने दूसरे प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया, क्योंकि लगभग 25,000 पेड़ काटने पड़ते। परियोजना के कार्यान्वयन से हलियाल डिवीजन में 35,445 पेड़ों और दांडेली वन्य जीव डिवीजन में 10,810 पेड़ों की हानि होती। दांडेली काली टाइगर रिजर्व का हिस्सा है। बाघ, तेंदुए, भारतीय गौर, चित्तीदार हिरण, स्लॉथ भालू, किंग कोबरा, हॉर्नबिल और कैसल रॉक नाइट मेंढकों का घर है।
हाथी गलियारे पर भी खतरा
दूसरी ओर, बेलगावी के मुख्य वन संरक्षक ने इस आधार पर परियोजना को खारिज कर दिया कि ट्रांसमिशन लाइनें हाथी गलियारे से होकर गुजरेंगी। इसके लागू होने पर संभाग में लगभग 100 हेक्टेयर वन भूमि या विभिन्न प्रजातियों के लगभग 23,996 पेड़ काटे जाएंगे।
जंगलों का विखंडन, प्राकृतिक आवास का नुकसान होगा
परियोजना के कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप वन क्षेत्रों में देशी वनस्पति समाप्त हो जाएगी और इसके परिणामस्वरूप जंगलों का विखंडन होगा, प्राकृतिक आवास का नुकसान होगा, मानव-वन्यजीव संघर्ष, वन्यजीव गलियारा और एविफ़ुना निवास में वृद्धि होगी। इस पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में पहले से ही रेलवे, राजमार्ग और अन्य सहित कई रैखिक परियोजनाएं हैं। ट्रांसमिशन लाइन जंगल को और विखंडित कर देगी।
– गिरिधर कुलकर्णी, वन्यजीव कार्यकर्ता
बड़े पैमाने पर पेड़ों का विनाश होता
वन अधिकारियों से ट्रांसमिशन लाइन के लिए वैकल्पिक मार्ग तलाशने को कहा है। हमने इस परियोजना को अस्वीकार कर दिया है क्योंकि इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर पेड़ों का विनाश होगा।
– एन. मंजूनाथ प्रसाद, एसीएस