दादूपुर-नलवी नहर परियोजना को यमुनानगर,अम्बाला और कुरूक्षेत्र जिलों के 225 गांवों की जमीन की सिंचाई और भूमिगत जलस्तर बढाने के दोहरे उद्येश्य से लागू की गई थी। परियोजना के जरिए करीब एक लाख हैक्टेयर जमीन की सिंचाई का लक्ष्य रखा गया था। परियोजना के तहत नहरों और सडकों का निर्माण किया जा चुका है। सरकार ने परियोजना को सिंचाई की जरूरत पूरी करने में नाकामयाब मानते हुए इसे समाप्त करने और अधिग्रहण की गई जमीन वापस लौटाने का फैसला किया था। परियोजना की भूमि कों अधिग्रहण मुक्त करने के लिए विधानसभा में पारित विधेयक को राष्ट्रपति ने मंजूरी दे दी है।
हालांकि किसान संगठनों ने परियोजना को समाप्त करने के फैसले के विरोध में आंदोलन किया था। परियोजना के लिए अधिग्रहण की गई जमीन का मुआवजा अदालत ने किसानों की याचिका पर बढा दिया था और सरकार को यह मंजूर नहीं था। परियोजना बंद करने के फैसले पर सरकार ने यह भी कहा कि किसानों ने इसका स्वागत किया है। परियोजना के लिए अधिग्रहण की गई जमीन के मुआवजे का मामला विभिन्न अदालतों में विभिन्न स्तरों पर विचाराधीन है।
प्रारम्भ में भूमि मुआवजा पांच लाख रूपए प्रति एकड तय था। बाद में यह डेढ करोड रूपए प्रति एकड हो गया। हरियाणा केबिनेट ने बुधवार को अधिग्रहीत भूमि को लौटाने के लिए नीति प्रस्तावित की है जिसके तहत भूमि वापस लेने वाले मालिकों को मुआवजा राशि इसे प्राप्त करने की तिथि से लौटाने की तिथि तक के साधारण ब्याज के साथ लौटानी होगी।
सुरजेवाला ने पश्चिम बंगाल के सिंगूर जमीन अधिग्रहण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वी गोपाल गौड़ा और अरुण मिश्रा की बेंच ने 31 अगस्त 2016 को दिए अपने फैसले में कहा था कि किसानों या भूस्वामियों को मुआवजा सरकार को लौटाने की जरूरत नहीं है क्योंकि उन्होंने 10 साल तक भूमि का उपयोग नहीं किया है। यही शर्तें दादूपुर नलवी नहर परियोजना पर भी पूरी तरह से लागू होती हैं लेकिन भाजपा मंत्रिमंडल के फैसले के अनुसार मूल
मालिक या मालिक या उनके कानूनी वारिस भूमि को कब्जा लेने से पहले उनके द्वारा मुआवजा प्राप्त करने की तिथि से मुआवजा लौटाने की तिथि तक जमा राशि पर देय साधारण ब्याज के साथ मुआवजा लौटाना होगा। उन्होंने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट के सिंगुर मामले में फैसले के अनुसार पूरी तरह गैरकानूनी है।
सुरजेवाला ने कहा कि खट्टर मंत्रिमंडल के फैसले के अनुसार किसानों को बनी हुई नहर और तैयार सड़कों आदि इंफ्रास्ट्रक्चर को हटा कर वापिस अधिग्रहित भूमि को कृषि योग्य बनाने में लगभग 40 लाख रूपया प्रति एकड़ खर्च आएगा लेकिन मंत्रिमंडल ने उस के लिए कोई व्यवस्था नहीं की है। यह किसान पर दोहरी मार है और इससे साफ स्पष्ट है कि भाजपा सरकार की मंशा केवल मामले को लटका कर किसानों को परेशान करने की है।