लखनऊ के हज़रतगंज थाने में 29 अक्टूबर 1995 को वादी विजय कुमार यादव की लिखाई गयी रिपोर्ट में उनके पिता लक्ष्मी शंकर यादव की हत्या किये जाने में पूर्व मंत्री अंगत यादव, रामेढ कालिया, सूरज पाल तथा कुछ अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया था। इसी मामले में पवन पाण्डे का नाम बाद में विवेचना में अपराधियों का सहयोग और शरण देने में प्रकाश में सामने आया। जिसके बाद पवन पांडेय के खिलाफ धारा 216 में आरोप पत्र दाखिल हुआ। जबकि अन्य को 147,148,149,302 में आरोपी बनाया गया।
इस मामले में जमानत कराने के बाद पवन पाण्डे न्यायालय में हाज़िर नहीं हुए और उनके खिलाफ 2001 में गैर जमानती वारण्ट हो गया। बाद में 82 का आदेश जारी हुआ। पवन पाण्डेय की तरफ से पक्ष रखा गया कि उनके अधिवक्ता गोविंद नारायण मिश्र जो 2001 में एमएलए हो गए और बाद में मिनिस्टर इसी कारण मुकदमे की जानकारी नहीं हो सकी। न्यायालय द्वारा उनकी इस याचना को खारिज करते हुए जेल भेजे जाने का आदेश दिया साथ ही जेल मैन्युअल के अनुसार पवन पाण्डेय को सुविधा दिए जाने का आदेश किया। सरकार की ओर से अपर जिला शासकीय अधिवक्ता राजेश गुप्ता ने पक्ष रखते हुए ज़मानत का विरोध किया।