तो 180 दिन के बाद क्या संविधान के अनुच्छेद 226, 227 द.प्र.सं की धारा 482 की हाईकोर्ट की अन्तर्निहित व्यक्तियों व पुनरीक्षा अधिकारी का प्रयोग किया जा सकता है या नहीं। क्या 180 दिन के भीतर अपील दाखिल करने से वंचित रह गये। आरोपी या पीड़ित को कोई अन्य वैधानिक या संवैधानिक फोरम प्राप्त है या नहीं ?
अधिवक्ता विष्णु बिहारी तिवारी व अन्य की जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश डी.बी. भोसले, न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा तथा न्यायमूर्ति यशवन्त वर्मा की पूर्णपीठ कर रही थी। धारा 14 ए में व्यवस्था दी गयी है कि विशेष कोर्ट के निर्णय व आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील होगी। जमानत अर्जी पर पारित आदेश को भी अपील में चुनौती दी जायेगी।
अपील 90 दिन में दाखिल हो सकेगी और इस अवधि के बीत जाने के बाद अगले 90 दिन की देरी कोर्ट माफ कर सकेगी। कुल 180 दिन बीत जाने के बाद पीड़ित को न्याय पाने का अवसर मिलेगा या नहीं। इसी गंभीर मुद्दे पर बहस की गयी। याची की तरफ से वरिष्ठ रवि किरण जैन, राजीव लोचन शुक्ला, विष्णु बिहारी तिवारी व कई अन्य राज्य सरकार के अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल व भारत सरकार के अपर सॉलीसिटर जनरल शशि प्रकाश सिंह ने पक्ष रखा।
याचियों का कहना है कि जब न्याय के दरवाजे बंद हो गये हो तो संविधान के तहत हाईकोर्ट अपनी अन्तर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। सरकार का कहना है कि त्वरित न्याय देने के लिए बने कानून के उपबंधों को कड़ाई से लागू किया जाय। 180 दिन के बाद हाईकोर्ट को अपील की देरी की माफी देने का अधिकार नहीं है।
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