अन्य शहर में भी लगातार उजागर अजमेर में आयकर विभाग के अफसरों ने कुछ कारोबारियों के घरों-प्रतिष्ठानों में तीन लॉकर-बैंक खाते खंगाले। कारोबारियों के यहां लाखों-करोड़ों रुपए नकद और अघोषित सम्पत्ति मिली। कुछ ‘सम्पत्ति ’ का तो हिसाब-किताब भी नही मिला। एक अफसर तो कार में लाखों के कैश और महंगे मोबाइल के साथ पकड़ गए। इससे पहले एक जज और पुलिस महकमे के अफसर काले कारनामा करने से नहीं चूके। ब्यावर में तो जनता की सेवक और नगर परिषद अध्यक्ष ही रुपए लेते रंगे हाथ पकड़ गई। जयपुर में एक महिला पुलिसकर्मी रिश्वत में लाखों रुपए मांग बैठी। ऐसे मामले प्रदेश के जोधपुर, अलवर, बीकानेर, उदयपुर या किसी अन्य शहर में भी लगातार उजागर होते रहे हैं।
अच्छी खासी पगार मिल रही
अगर अफसरों-कर्मचारियों की बात करें तो केंद्र और राज्य सरकार से उन्हें अच्छी खासी पगार मिल रही है। सातवां वेतनमान लागू होने के बाद तो तनख्वाह जबरदस्त बढ़ चुकी है। फिर भी कई अफसरों-कार्मिकों का ऊपरी कमाई से मोहभंग नहीं हुआ है। कई दफ्तरों में खास कार्मिकों को मलाईदार सीट पर बैठाया जाता है। लेन-देन में अफसरों और साहब का ध्यान रखना इनकी पहली प्राथमिकता होती है। काली कमाई वसूलने और उसे ठिकाने तक पहुंचाने में इनका अहम योगदान रहता है।
अगर अफसरों-कर्मचारियों की बात करें तो केंद्र और राज्य सरकार से उन्हें अच्छी खासी पगार मिल रही है। सातवां वेतनमान लागू होने के बाद तो तनख्वाह जबरदस्त बढ़ चुकी है। फिर भी कई अफसरों-कार्मिकों का ऊपरी कमाई से मोहभंग नहीं हुआ है। कई दफ्तरों में खास कार्मिकों को मलाईदार सीट पर बैठाया जाता है। लेन-देन में अफसरों और साहब का ध्यान रखना इनकी पहली प्राथमिकता होती है। काली कमाई वसूलने और उसे ठिकाने तक पहुंचाने में इनका अहम योगदान रहता है।
ऊपरी कमाई में कोई कमी नहीं दो साल पहले नोटबंदी को भी भ्रष्टाचार-कालेधन के खात्मे से जोड़ा गया था। लेकिन रिश्वतखोरों पर रत्ती भर असर नहीं पड़ा है। उनकी ऊपरी कमाई में कोई कमी नहीं आई है। कानून कुछ सख्त हुए तो भ्रष्टाचार के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। कई जगह तो ठेले, पान-चाय, परचूनी दुकान वाले यह कामकाज संभाले हुए है। करोड़ों के जमीन के सौदे गरीब मजदूरों-किसानों के फर्जी दस्तावेजों पर हो रहे हैं।
लाखों-करोड़ों के ‘लेन-देन ’ ईमानदारी का पाठ स्कूल-कॉलेज और विश्वविद्यालयों की किताबों में ही सिमट रहा है। लोग ईमानदारी से ज्यादा भ्रष्टाचार-रिश्वतखोरों के किस्से याद रखने लगे हैं। परीक्षा में उत्तीर्ण, पुलिस के चालान और बड़े मामलों में गिरफ्तारी से बचने के लिए लाखों-करोड़ों के ‘लेन-देन ’ हो रहे हैं। कई जगह तो सौदेबाजी संगठित उद्योग बन चुकी है। मर्यादा, नैतिक मूल्य, संस्कार और अनुशासन धीरे-धीरे विलोपित हो रहे हैं। इन सिद्धांतों को अपनाए रखने वालों पर तंज कसे जाते हैं। ईमानदारी को उनका तथाकथित आवरण बताकर पर शक किया जाता है।
बेहद सख्त कानून वास्तव में भ्रष्टाचार और कालाधन कैंसर सरीखा रोग है। यह दबे पांव बढकऱ देश-प्रदेश को पीछे धकेल रहे हैं। इनको रोकने के लिए प्रयास भी ईमानदारी से ही करने होंगे। रिश्वत, काली कमाई को नकारने, काम के प्रति वफादारी और नैतिक जिम्मेदारी समझने पर ही यह संभव है। हालांकि इसके खिलाफ आवाज उठाने वालों (व्हीसल ब्लोअर) को जान देकर कीमत चुकानी पड़ी है। लेकिन भ्रष्टाचार का खात्मा तभी होगा जबकि विकसित देशों की तरह बेहद सख्त कानून होंगे। सजा को कम कराने, दोषियों को बचाने, ऊपर तक फायदा पहुंचाने जैसी अंदरूनी दांवपेंच बंद होंगे। तब देश भ्रष्टाचार मुक्त बनकर चहुंमुखी विकास कर पाएगा।