यह भी पढ़ें नई नवेली दुल्हन को बैलगाड़ी पर बैठाकर लाया दूल्हा, इलाके में दिनभर रही चर्चा, देखें वीडियो संसदीय कार्य राज्यमंत्री उठा चुके हैं सवाल रेनबो हॉस्पिटल के सभागार में पत्रिका से बातचीत में चन्द्रशेखर उपाध्याय ने बताया- दो मार्च, 2015 को बीकानेर के सांसद और केन्द्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348 में संशोधन का प्रश्न उठाया था। संविधन के अनुच्छेद 348 के तहत यह व्यवस्था है कि न्यायालय के फैसले अंग्रेजी भाषा में होंगे। अनुच्छेद 349 यह कहता है कि भारतीय संविधान लागू होने के 15 वर्ष बाद अनुच्छेद 348 में संशोधन करना अनिवार्य था। इस दृष्टि से 1965 में संशोधन हो जाना चाहिए था।
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ह भी पढ़ें CAA जिसने पढ़ लिया, वह विरोध नहीं कर सकता 10 लाख हस्ताक्षर कराएंगे नरेन्द्र मोदी को भारत का प्रधानमंत्री बने हुए पांच वर्ष सात माह 18 दिन बीत गए। इस विषय पर हिन्दी वालों को पांच मिनट का भी समय नहीं मिला है। हमें पुनः वहीं लौटना होगा, जहां से यह अभियान प्रारंभ किया था। पुनः जनजागरण अभियान शुरू करने जा रहे हैं। प्रथम चरण में उत्तर प्रदेश से 10 लाख हस्ताक्षर कराने की योजना है। एक लाख हस्ताक्षर का लक्ष्य आगरा से रखा है, क्योंकि आगरा हिन्दी आंदोलन की आद्य भूमि है। डॉ. देवी सिंह नवार को प्रांत अध्यक्ष नियुक्त किया है। वे कर्यकारिणी घोषित करेंगे।
उत्तराखंड में काम पूरा करा दिया उत्तराखंड में मैंने काम पूरा करा दिया है। 12 अक्टूबर 2013 को अनिल चौधऱी बनाम राज्य में पहला प्रतिशपथ पत्र हिन्दी भाषा में दाखिल हो गया। जब मैं मुख्यमंत्री को विशेष कार्याधिकारी विधिक था, राजाज्ञा जारी करा दी और सम्पूर्ण वाद कार्यवाही हिन्दी में कराई। 2013 में हरिद्वार की जन्म प्रमाणपत्र के संबंध में हिन्दी में याचिका स्वीकृत करा दी। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में हिन्दी में कार्य प्रतीकात्मक शुरू कर दिया है, लेकिन हिन्दी में काम नहीं हो रहा है। सरकारी वकीलों ने हिन्दी में काम करना शुरू कर दिया। वहां 60 प्रतिशत नोटिस हिन्दी में आ रहे हैं। एक व्यक्ति के रूप में मुझे जो काम करना था, कर दिया।
संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए अनुच्छेद 348 में संशोधन भारत की संसद को करना है, जो मेरे वश में नहीं है। भारत के प्रधानमंत्री को करना है। मेरा प्रधानमंत्री से आग्रह है कि दोनों सदनों का विशेष सत्र बुलाएं। संपूर्ण संसद सामूहिक संकल्प पारित करे और अनुच्छेद 348 में एक पंक्ति का संशोधन होना है। हमारा यह कहना है कि न्यायालय के फैसले हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में हों, जिनकी लिपि हमारे पास है। यह सवाल उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने और अर्जुन राम मेघवाल ने उठाया है। संसद के पटल पर है यह प्रकरण। संसदीय कार्य राज्यमंत्री के संज्ञान में है। फिर भी संशोधन न करना संसद की अवमानना है। तत्काल संशोधन किया जाना परम आवश्यक है।
राज्यपाल हिन्दी में कार्यवाही करा सकते हैं उन्होंने बताया कि जिला न्यायालयों से लेकर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक में फैसले अंग्रेजी में होते हैं। जिला न्यायालयों में कहीं-कहीं हिन्दी में होते हैं। 90 प्रतिशत वादकारी अपनी मूल भाषा वाला है, अंग्रेजी वाला नहीं। मैं महाराष्ट्र के राज्यपाल से मिला। राज्यपाल को धारा 348 में विशेष प्रावधान है कि राष्ट्रपति की अनुज्ञा से राज्य में हिन्दी में वाद कार्य भी प्रारंभ करा सकते हैं। राज्यपाल कम से कम यह काम तो तत्काल कर सकते हैं। इस मौके पर डॉ. देवी सिंह नरवार, डॉ. सुरेन्द्र सिंह, डॉ. योगेन्द्र सिंह, योगेन्द्र सिंह चाहर आदि मौजूद थे।