उन्हो ने कहा साधना के क्षेत्र में गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है, क्योंकि उनके अनुग्रह के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता. जीवन रहस्यों का उद्घाटन केवल गुरु ही करने में सक्षम होते हैं. जिस प्रकार नेत्रहीन व्यक्ति को संसार का अनुपम सौन्दर्य दिखाई नहीं दे सकता, उसी प्रकार जब तक गुरु हमें प्रकाश नहीं देगा, उसका मार्गदर्शन हमें नहीं मिलेगा, तब तक आंखें रहते हुए भी हमें चारों ओर अंधकार ही नजर आएगा. हम सही रास्ते पर नहीं चल सकेंगे. गुरु की महिमा के बारे में संत कबीर कहते हैं कि,गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोक्ष,गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष .मनु महाराज ने गुरु को ही वास्तविक अभिभावक बताया है. उनके हिसाब से विद्या माता के रूप में शिष्य को जन्म देती और बड़ा करती है. गुरु उस विद्या से आगे शिष्य को जीने लायक और जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त करने लायक सामर्थ्य प्रदान करता है. लौकिक माता-पिता तो बच्चे को जन्म देकर उसका पालन-पोषण ही करते हैं, जबकि उसके विकास में सहायता करने वाला, उसे सन्मार्ग पर चलाने वाला गुरु ही होता है. वही मनुष्य का कल्याण कर उसके लिए मुक्ति का द्वार खोलता है. मनु ने तो विद्या को माता तथा गुरु को पिता बताया है.