भारत के किसी भी कस्बे, नगर या बड़े शहर के नौजवानों जैसे ही युवा हैं। लीडरशिप कैम्प में भाग ले रहे ये सम्पन्न परिवारों से हैं, धूप का डिजायनर चश्मा पहनते हैं। पर ये हिंदू विचारधारा से प्रभावित हैं और उसी लहजे में बात करते हैं। इनके हिसाब से जो इस विचारधारा को नुकसान पहुंचाए या उससे सहमति नहीं रखे, उसे सबक सिखाने में कोई बुराई नहीं है।
पिछले कुछ माह में भारत में वायरल वीडियो ने मॉब लिंचिंग (भीड़ के हिंसक होने) की एक नई समस्या खड़ी कर दी है। आलोचक इसके लिए बीजेपी के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी निशाने पर लेते रहे हैं। लेकिन क्या देश के युवाओं की यही एकमात्र समस्या है जो उन्हें घेरे हुए है। उनमें बढ़ते गुस्से की जडं़े काफी गहरी हैं जिनका फैलाव राष्ट्रवादी विचारधारा और मौजूदा सरकार से भी आगे है।
भारत में 25 वर्ष से कम उम्र वाले युवाओं की आबादी लगभग 60 करोड़ है जिनकी पहले की तुलना में तकनीक और शिक्षा तक पहुंच ज्यादा है। लेकिन अब भी लाखों युवा नौकरी के लिए भटक रहे हैं और भविष्य में उम्मीद नहीं के बराबर दिखाई देती है। इसके साथ ही 3.7 करोड़ सरप्लस अविवाहित पुरुषों की समस्या को भी भूलना नहीं चाहिए जिसमें कई पीढिय़ों से चली आ रही कन्या भ्रूण हत्या की मानसिकता ने देश में लिंगानुपात को गड़बड़ा दिया है। पुत्र संतान के मोह ने कई दशकों से सामाजिक ताने बाने को भी हिलाया है। बीजेपी की एक महिला नेता ने एक टीवी चैनल से बातचीत में कहा कि लोगों में नौकरी नहीं मिलने के कारण निराशा है। एक तरह का गुस्सा लोगों और समुदायों में फैल रहा है जो कि उनकी आसपास की परिस्थितियों की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप भी है।
गौरतलब है कि लेबर मार्केट में हर माह लगभग 10 लाख लोग बढ़ जाते हैं जिन्हें नौकरी की आस रहती है। इनमें अधिकतर को अंग्रेजी बोलने-लिखने में दिक्कत होती है और नौकरी के लिए जरूरी कार्य कौशल भी नहीं होता है। देश की अर्थव्यवस्था पर नजर रखने वाली रिसर्च फर्म सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के आंकड़ों के अनुसार देश में पिछले वर्ष 18 लाख अतिरिक्त नौकरियां सृजित हुईं हालांकि प्रधानमंत्री मोदी का कहना है कि पिछले साल नई नौकरियों की संख्या करीब सात लाख थी। युवाओं को भविष्य को लेकर किसी ठोस आधार न दिखने के कारण अधिकांश का झुकाव विशेष विचारधारा के संगठनों की तरफ हो रहा है जहां उन्हें एक उद्देश्य दिखाई पड़ता है। ऐसे संगठनों से जुड़े युवाओं का काम सोशल मीडिया पर संदेश फैलाना है।
23 वर्षीय राम कुमार ने एक प्रमुख संगठन के लीडरशिप कैम्प में हिस्सा लिया जहां महिलाओं की सुरक्षा और धर्मांतरण रोकने की ट्रेनिंग दी गई। कुमार कॉलेज छात्र है किराये पर टेंट देने का काम भी करता है। इनका साथी 22 वर्षीय गौरव शर्मा लॉ का स्टूडेंट है। आगरा में पला-बढ़ा है। ताजनगरी से होने के बावजूद वह ताज को ऐतिहासिक स्मारक से ज्यादा विदेशी शासकों के आक्रमण की दास्तां से जोडकऱ देखता है। कुमार कहता है कि बचपन में वह शर्मीला था लेकिन राष्ट्रवादी मुहिम से जुडऩे के बाद अब उसमें आत्मविश्वास बढ़ा है। संगठन ने सिखाया है कि हमारे लिए क्या सही है और हमें समाज के लिए क्या करना है।
हालांकि इन सबसे जुडऩे से पहले वह मोरल पुलिसिंग कर चुका है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार आने के बाद इन लोगों में सरकारी कार्रवाई का भय भी कम हुआ है जिसका पता इन दोनों की बातों से भी चलता है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी राज्य सरकारों को कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्ती बरतने के निर्देश दे चुके हैं। इन युवाओं के मन में पीडि़त होने की भावना गहरी है और ये पुरातन गौरव का बखान करने वाले वाट्सऐप ग्रुप्स के साथ उन वेबसाइट्स पर भी काफी समय बिताते हैं जो कि मुगल व ब्रिटिश राज के पहले की भारतीय सभ्यता को महिमामंडित करते हैं। आलोचकों का कहना है कि 1947 से पहले भी समुदायों में विभाजन की खाई थी लेकिन सोशल मीडिया इसे बढ़ा रहा है। गौरव जैसे युवाओं को वर्तमान में कॅरियर को लेकर जो चुनौतियां झेलनी पड़ रही हैं उसकी वजह वे ऐसे स्कूलों में अपनी शिक्षा को मानते हैं जहां हिंदी माध्यम से पढ़ाया जाता है और अंग्रेजी नाममात्र के लिए है। ऐसे युवकों के कई सहपाठी अब संघर्ष कर रहे हैं, कोई सब्जियां बेच रहा है तो कोई मजदूरी कर रहा। इनमें से कुछ छात्रों को सेना में नौकरी मिल गई। हो सकता है कि उनके अन्य साथियों को ये मौका न मिल सके।
डेमोग्राफर क्रिस्टोफर गुइलमोटो का अनुमान है कि लैंगिक असंतुलन से भारत में चार करोड़ सरप्लस पुरुषों को 2020 से 2080 के बीच अविवाहित रहना पड़ सकता है। गौरव को लव मैरिज न कर पाने का अफसोस है लेकिन अब उसने घरवालों की असहमति के बावजूद विवाह न करने का फैसला कर लिया है।
एनी गोवेन, दक्षिण व पश्चिम एशिया में इन्हें रिपोर्टिंग का अनुभव है। (वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)