ये निर्णय इसलिए सही है क्योंकि पाकिस्तान हमेशा दोहरी नीति अपनाता रहा है। अमरीका का ये फैसला उसे ये बताने के लिए काफी है कि उसकी रणनीति उसी के ऊपर भारी पड़ रही है। अमरीका ने ये फैसला अफगानिस्तान युद्द के बाद लिया, क्योंकि वे पाकिस्तान की नापाक हरकत से परेशान हो चुका था। अफगानिस्तान में युद्ध लडऩे के साथ पाक की मदद कर रहा था लेकिन पाकिस्तान उसी के खिलाफ उसी के पैसे से आतंकियों की नई पौध को तैयार कर रहा था।
अमरीका के राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने पाकिस्तान को सुधारने के लिए उस दौर में पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे डॉ. परवेज मुशर्रफ के साथ कई बार वार्ता की लेकिन हालात नहीं सुधरे। राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी इसमें कोर कसर नहीं छोड़ी। एक मोटी रकम सहायता राशि के रूप में दी जिससे वहां के आर्थिक हालात सुधर सकें। इसके साथ ओबामा ने पाकिस्तान को सैन्य सहायता भी दी। इसके एवज में अमरीकी सेना को अफगानिस्तान में युद्ध करने का मौका मिला। इसकी बदौलत उसने अलकायदा जैसे आंतकी संगठन को खत्म करने में सफलता मिली।
पाकिस्तान चीन के साथ अपने गहरे रिश्ते स्थापित करेगा जिससे वाशिंगटन के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है। 2016 में इस्लामाबाद ने सैना के लिए 63 फीसदी उपकरणों की खरीदारी बीजिंग से की थी। चीन अब अमरीका और पाकिस्तान के बीच पैदा हुए मतभेद का फायदा उठाकर भारत और अमरीका के बीच बढ़ती हुई नजदीकियों को करारा जवाब देने की नापाक कोशिश करेगा पर भारत को इससे सतर्क रहना होगा ।