बता दें कि मृतक की शवयात्रा की तैयारी के समय एक ओर चीख-पुकार मची हुई थी तो दूसरी ओर गांव के कई युवक व बडे़-बूढ़े अर्थी उठाने के लिए पहुंच गए थे। मृतक के परिजनों को ऐसे में दो-तीन युवक अनजान लगे, लेकिन वे जिस प्रकार मृतक के जीजा अजय को ढांढस बंधा रहे थे, उन्हें लगा वे उनके जान-पहचान के होंगे। जबकि, अजय उन्हें मृतक संजय का मित्र समझकर व्यवहार कर रहा था। इस बीच अर्थी उठी तो वे कंधा देने भी पहुंच गए।
अर्थी के साथ कुछ दूर चलने के बाद उनमें से एक ने पैदल-पैदल स्कूटी लेकर चल रहे अजय से कहा कि वह भी अर्थी को कंधा दे ले। जीजा होने के कारण वह कुछ झिझका तो उसने दुहाई दी कि जवान मौत है। इसलिए कोई गलत बात नहीं होगी। आपको भी कंधा देना चाहिए। इतनी बात पर अजय ने स्कूटी उसे पकड़ा दी और खुद कंधा देते हुए अर्थी के साथ चलने लगा। स्कूटी की चाभी उसी में लगी हुई थी। श्मशान पहुंच कर जब उसने स्कूटी की चाबी वापस मांगनी चाही तो वह युवक और उसके साथ दिखाई दे रहे दो अन्य युवक गायब थे। बाद में जब परिजनों से इन युवकों के बारे में पूंछा गया तो पता चला कि वे न तो अजय के जानकार थे, और न ही संजय (मृतक) के दोस्त।