अब सवाल ये आता है कि एक ही हवाई जहाज को एक ही सफर तय करने में क्यों वक्त का अंतर आया? तो ये निर्भर करता है जहाज में प्रयोग किए गए ईंधन के क्वालिटी या दक्षता पर। ईंधन ही वो दूसरी वजह है जिसके चलते हवाई जहाज हमेशा प्लेन के भार को लेकर चिन्तित रहते हैं। कोशिश हमेशा उनकी यहीं रहती है कि भार कम से कम रहें और यही कारण है कि लगेज तय सीमा से ज्यादा होने पर वो एक्सट्रा चार्ज करते हैं ताकि उन्हें कोई घाटा न हों।
इसके साथ ही कभी-कभी हमें ये कहा जाता है कि हम निर्धारित स्थान पर समय सीमा से पहले लैंड कर गए हैं तो बता दें कि ऐसा अकसर नहीं होता है और इसके लिए एयरलाइंस अपने टिकिट या डिस्प्ले बोर्ड पर टाइम को थोड़ा बढ़ाकर दिखाते हैं ताकि यात्रियों को लगे कि वाकई में वो तय समय सीमा से पहले ही पहुंच गए है जबकि अंदर का माजरा पहले से ही तय होता है।
बता दें कि धीमी गति से उड़ान भरने पर ईंधन के कम प्रयोग होने से एयरलाइंस को प्रतिवर्ष करोड़ो रूपए का मुनाफा होता है क्योंकि साल 2002 से 2012 के बीच प्रति गैलन ईंधन का मूल्य 0.70 डॉलर से बढ़कर 3 डॉलर हो गई थी।
साल 2008 के एक रिपोर्ट के अनुसार अपने प्रत्येक जहाज के उड़ान में मात्र दो मिनट की देरी से जेट ब्लू नामक हवाई संस्था को प्रतिवर्ष 13.6 मिलियन डॉलर का मुनाफा हुआ।