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ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते भगवान राम ने अपने परम भक्त हनुमान को दिया था मृत्युदंड, कौन था इसके पीछे?

Published: Sep 22, 2018 05:14:40 pm

Submitted by:

Arijita Sen

प्रभु श्रीराम अपने परम भक्त हनुमान को बहुत चाहते थे, लेकिन इसके बावजूद श्रीराम ने हनुमान को एकबार मृत्युदंड दिया था।

Lord Ram

ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते भगवान राम ने अपने परम भक्त हनुमान को दिया था मृत्युदंड, कौन था इसके पीछे?

नई दिल्ली। हनुमान जी भगवान श्रीराम के परम भक्त हैं यह बात पूरी दुनिया जानती है। श्रीराम के प्रति उनकी भक्ति इस कदर थी जिनका बखान शब्दों में करना असंभव है। प्रभु श्रीराम भी अपने परम भक्त हनुमान को बहुत चाहते थे। इन सबके बावजूद श्रीराम ने हनुमान को एकबार मृत्युदंड दिया था? इस बारे में शायद अधिकतर लोगों को पता नहीं है, लेकिन वाकई में सभी को हैरान कर देने वाले इस वाक्ये के पीछे की वजह क्या थी आज इस बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।

Lord Ram and Hanuman

ऐसा कहा जाता है कि, लंकापति रावण का वध करने के पश्चात जब श्री राम अयोध्या वापस लौटें तो उन्हें वहां का राजा घोषित किया गया। इस पर देवर्षि नारद ने श्री राम के परम भक्त हनुमान जी को सभी ऋषि मुनियों से जाकर मिलने को कहा। हालांकि उन्होंने ऋषि विश्वामित्र से मिलने के लिए बजरंबली को मना कर दिया था। ऐसा नारद जी ने इसलिए किया क्योंकि विश्वामित्र कभी महान राजा हुआ करते थे। नारद जी ने जैसा कहा हनुमान जी ने ठीक वैसा ही किया। नारद जी की आज्ञा का पालन करते हुए वे ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर बाकी सभी ऋषि मुनियों से मिलें। हालांकि इस बात से विश्वामित्र को कोई फर्क नहीं पड़ा।

Lord Ram and Hanuman

इधर जब नारद मुनि को इस बात का पता चला कि, विश्वामित्र को इस बात से कोई आपत्ति नहीं हुई, तो उन्होंने स्वयं विश्वामित्र के पास जाकर बजरंबली के खिलाफ खूब भड़काया। इससे विश्वामित्र अत्यंत क्रोधित हो गए।उन्होंने श्री राम को आदेश दिया कि, वे फौरन हनुमान जी का वध कर दें।

अपने गुरु की आज्ञा का पालन करने के अलावा उनके पास कोई और चारा नहीं था। इसीलिए उन्होंने बजरंबली पर बाण चला दिया, लेकिन बजरंगबली निरंतर राम-राम की माला जपते रहे जिससे राम के प्रहार का उन पर कोई असर नहीं हुआ।

गुरु विश्वामित्र की आज्ञा के अनुसार उन्हें हनुमान का वध करना था इसीलिए उन्होंने हनुमान पर बह्रमास्त्र चलाया।हनुमान जी उस समय भी राम नाम का जप करते रहें जिससे आश्चर्यजनक रूप से ब्रह्मास्त्र भी उनका बाल बांका नहीं कर पाया।

इस कठिन परिस्थिति को देखकर नारद मुनि को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने विश्वामित्र के पास अपनी भूल स्वीकार की।इस प्रकार इस घटना से हनुमान जी ने फिर से अपनी भक्ति का परिचय दिया और राम नाम का जप करके उन्होंने मृत्यु को भी पराजित कर दिया।

 

 

 

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