22 साल की उम्र में आए थे भारत
बता दें कि सत्यानंद महज 22 साल के थे जब अमरीका से शिमला आए थे। उस समय यहां लैप्रोसी रोगों का बोलबाला था। ऐसे में उन्होंने इन मरीजों की सेवा करनी शुरू कर दी। लेकिन उनके परिजनों को यह पसंद नहीं था। उनके पिता उन्हें एक बिजनेसमेन के रूप में देखना चाहते थे। ऐसे में स्टोक्स ने हिमाचल में अमेरिकी सेब की खेती करने का फैसला किया, इसके पीछे का कारण यह था कि यहां कि जलवायु अमरीका जैसी ही थी।
मां ने खरीद के दी थी जमीन
फिर क्या था उन्होंने साल 1916 में फिलेडेल्फिया से सेब के कुछ पौधे और बीज मंगवाए और खेती शुरू कर दी। अपने बेटे की इस काम में लगन को देखते हुए उनकी मां ने 200 एकड़ जमीन भी खरीद कर दे दी और बाद में उन्होंने यहीं की एक स्थानीय राजपूत-ईसाई लड़की से शादी भी कर ली। शायद कभी सत्यानंद ने भी नहीं सोचा रहा होगा कि उनका ये फैंसला इतना कारगर साबित होगा लेकिन आज हिमाचल में सेब की खेती किसी आर्थिक क्रांति से कम नहीं है। आज यहां के सेब पूरी दुनिया में मशहूर हैं और उनकी खासी डिमांड भी है।
बहू हैं हिमाचल की दिग्गज नेता
इतना ही नहीं अमेरिकी नागरिक होने के बावजूद भारत की आजादी के लिए उन्होंने लड़ाई लड़ी। साल 1919 में जलियावाला बाग हत्याकांड ने उन्हें भीतर तक हिला दिया था। इसके बाद उन्होंने ज्वाइन कर ली और महात्मा गांधी ने उन्हें पंजाब प्रोविंस कमिटी का मेंबर बना दिया। इस दौरान उनको कई बार जेल भी जाना पड़ा। हालांकि यह अपनी आखों से आजाद भारत नहीं देख सके और 1946 में लंबी बीमारी के बाद इतना निधन हो गया। आज भी इनके सेब के बगीचे हैं। बता दें कि कांग्रेस की दिग्गज नेता विद्या स्टोक्स सत्यानंद की ही बहू हैं।