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किसी भी मिशन से पहले वैज्ञानिक करते हैं ये अजीबो-गरीब काम, जानिए क्यों

Published: Jul 22, 2019 01:20:24 pm

Submitted by:

Prakash Chand Joshi

आज चंद्रयान-2 को भेजा जाएगा अंतरिक्ष में
दुनिया की नजर है भारत पर

chandrayaan 2

नई दिल्ली: भारत आज इतिहास रचने को पूरी तरह तैयार है और वो इससे महज कुछ घंटे ही दूर है। सोमवार को दोपहर 2:43 मिनट पर भारत पहली बार चांद पर लैंटर और रोवर उतारने के लिए ‘चंद्रयान-2’ ( Chandrayaan 2 ) को अंतरिक्ष के लिए रवाना करेगा। हालांकि, ये 15 जुलाई को होना था लेकिन कुछ खामियों के चलते ये नहीं हो सका। बहरहाल वैज्ञानिकों ( scientists ) ने खामियों को दूर करते हुए ‘चंद्रयान-2’ को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी पूरी कर ली है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वैज्ञानिक किसी मिशन से पहले कई अजीबो-गरीब मान्यताओं को पूरा करते हैं।

 

chandrayaan 2

13 नंबर अशुभ, करते हैं यहां पूजा

दुनिया में कई लोग अपने लिए 13 अंक को अशुभ मानते हैं। ऐसा ही कुछ कई अंतरिक्ष एजेंसियां भी मानती हैं। 13 नंबर को किसी भी मिशन में इस्तेमाल नहीं किया जाता है। हालांकि, अमेरिका ( America ) ने चांद की सतह पर उतारने के लिए अपोलो-13 यानि 13 नंबर का इस्तेमाल किया था। लेकिन ये मिशन विफल रहा और इसके बाद किसी भी मिशन को 13 नंबर का टैग कभी नहीं दिया गया। वहीं इसरो ( ISRO ) के प्रमुख वैज्ञानिक आंध्र प्रदेश ( Andhra Pradesh ) के तिरुमाला में प्रसिद्ध भगवान वेंकटेश्वर की पूजा करते हैं। यही नहीं यहां वो रॉकेट का एक छोटा मॉडल भी चढ़ाते हैं और ये सब इसलिए किया जाता है ताकि मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया जा सके। इसमें सबसे खास बात ये है कि महज भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ही ऐसा नहीं करती बल्कि नासा , रूसी वैज्ञानिकों समेत दुनियाभर के वैज्ञानिक मिशन में सफलता हासिल करने के लिए कई धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।

chandrayaan 2

मूंगफली खाना शुभ

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ( nasa ) अपने किसी भी मिशन को तभी लॉन्च करती है, जब जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी में बैठे हुए वैज्ञानिक मूंगफली खाते हैं। दरअसल, साल 1960 में रेंजर मिशन 6 बार फेल हुआ। वहीं सातवां मिशन सफल हुआ तो कहा गया कि लैब में कोई वैज्ञानिक मूंगफली खा रहा था इसलिए इसे सफलता मिली। तब से ही ये प्रथा चली आ रही है। वहीं रूसी अंतरिक्ष यात्री यान में सवार होने से पहले जिस बस में लॉन्च पैड तक जाते हैं। उसके पिछले दाहिने पहिए पर मूत्र त्याग करते हैं। ये परंपरा तब शुरू हुई 12 अप्रैल 1961 को जब यूरी गगारिन अंतरिक्ष ( space ) में जाने वाले थे। उन्हें बहुत तेज पेशाब लगी थी। उन्होंने बीच रास्ते में बस रुकवा कर पिछले दाहिने पहिए पर मूत्र त्याग दिया। उनका मिशन सफल रहा।

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