scriptस्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी से करते कैंसर कोशिकाओं पर वार | Tiriyotactic radiosurgery attack cancer veins | Patrika News

स्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी से करते कैंसर कोशिकाओं पर वार

Published: Aug 22, 2018 05:27:25 am

मुंबई के कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल में हाल ही इस पद्धति से कैंसर के इलाज की शुरुआत हुई है। इस मौके मौजूद पर पत्रिका संवाददाता ने…

Cancer

Cancer

मुंबई के कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी हॉस्पिटल में हाल ही इस पद्धति से कैंसर के इलाज की शुरुआत हुई है। इस मौके मौजूद पर पत्रिका संवाददाता ने अस्पताल के प्रमुख कैंसर रोग विशेषज्ञों से जाना कि कैसे इस तकनीक से कैंसर कोशिकाओं को पहचान कर इलाज होता है।

कैंसर के इलाज की कीमौथैरेपी एवं रेडियोसर्जरी में दवाओं के हाई डोज व रेडिएशन के साइड इफेक्ट मरीज को झेलने पड़ते हैं क्योंकि इनमें कैंसरग्रस्त कोशिकाओं के साथ शरीर के हैल्दी सेल्स भी नष्ट हो जाते हैं।

ऐसे में शक्तिशाली एक्स-रे किरणों से सिर्फ कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को ही बिना ऑपरेशन के नष्ट करने की स्टीरियोटैक्टिक रेडियोसर्जरी (सर्जरी नाम इसलिए क्योंकि असर वैसा ही) मरीजों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आई है।

क्या है स्टीरियोटैक्टिक रेडियो सर्जरी

 

इसमें इलाज से पूर्व एवं उसके दौरान कम्प्यूटर पर जीपीएस तकनीक की मदद से कैंसरग्रस्त कोशिकाओं एवं ट्यूमर की सही स्थिति का पता लगाकर सिर्फ प्रभावित हिस्से पर ही शक्तिशाली एक्स-रे से हाई डोज रेडिएशन देते हैं। सामान्य रेडियो सर्जरी में आधे से एक घंटे का समय लगता है जबकि इस तकनीक में रेडिएशन का एक सेशन 15 से 30 मिनट में पूरा हो जाता है।

मरीज की स्थिति व कैंसर के फैलाव के अनुसार सेशन की संख्या (लगभग १ से 5) व अवधि में बदलाव संभव। इसमें किसी तरह की चीर-फाड़ न होने से मरीज जल्द ही सामान्य दिनचर्या शुरू कर सकता है। इलाज का असर जांचने के लिए ट्रीटमेंट के तीन महीने बाद सीटी, एमआरआई व पैट स्कैन करवाकर देखते हैं कि कैंसर कहां तक खत्म हुआ है।

साइड इफेक्ट कब

साइडइफेक्ट की आशंका तभी रहती है जब रेडिएशन की हाई डोज किन्हीं कारणों से सही हिस्से के अलावा दूसरी जगह पर भी दे दी गई है या ऐसे मरीज जिनमें इम्युनो रेस्पोंस (प्रतिरोधी तंत्र) की समस्या हो।

स्वस्थ कोशिकाओं को बचाते हुए कैंसरग्रस्त ट्यूमर पर टारगेट

मरीज को मशीन पर लेटाकर जीपीएस कैमरे व कम्प्यूटर की मदद से कैंसरग्रस्त हिस्से की पहचान कर ट्यूमर की वास्तविक लोकेशन पर ही हाई डोज रेडिएशन की एक्स-रे किरणें दी जाती हंै।

खिसकते ट्यूमर्स टै्रक

फेफड़े व ब्रेस्ट कैंसर के मरीज में सांस लेने के साथ ट्यूमर खिसकने एवं मरीज के हिलने पर भी जीपीएस से ट्यूमर्स की लोकेशन पता कर रेडिएशन दिया जा सकता है। बांये ब्रेस्ट कैंसर वाली महिलाओं में फेफड़े व दिल को भी नुकसान से बचाना संभव।

दिखती 3डी तस्वीर

इसकी मशीन एमआरआई जैसी होती है जिस पर मरीज को लेटाकर किसी भी कोण से रेडिएशन डोज को शरीर के भीतर पहुंचाते हैं। ट्यूमर्स की 3डी तस्वीर से उनके आकार व स्वस्थ हिस्से का सीटी इमेजिंग से पता लगाते हैं।

इन कैंसर में है उपयोगी

मस्तिष्क, रीढ़, फेफड़े, ब्रेस्ट, आंत, मलमार्ग की ग्रंथियां, प्रोस्टेट एवं शरीर के वे हिस्से या ऐसे मरीज जिनकी अधिक आयु, कमजोरी या अन्य बीमारियों के कारण परंपरागत सर्जरी करना या रेडिएशन देना मुश्किल है।

छोटे ट्यूमर में कारगर

१ से ३ सेमी के ट्यूमर में इससे उपचार, 3 सेमी से बड़े ट्यूमर सर्जरी से निकाले जा सकते हैं।

एक साथ २० टारगेट

एक से ज्यादा अंगों में कैंसर का फैलाव है तो इसमें एक साथ 20 जगहों पर इलाज संभव।

रेडिएशन ले चुके तो…

जिस भाग में रेडिएशन हो चुका है वहां एक साल तक इससे इलाज नहीं। पर दूसरी जगह कैंसर के फैलाव में यह थैरेपी ले सकते हैं।

किरणों की ताकत

सामान्य रेडिएशन से आठ से दस गुना अधिक। इसमें 10 से 18 ग्रे यूनिट तक डोज देना संभव जबकि परंपरागत रेडिएशन डोज 1.8 से 2 ग्रे यूनिट तक होती है।

ट्रेंडिंग वीडियो