किडनी में छोटे-छोटे छिद्र होते हैं जो फिल्टर का काम करते हैं। एफएसजीएस बढऩे से इन छिद्रों का आकार बढ़ जाता है। ऐसे में फिल्टर का काम ठीक से नहीं होता और शरीर के अन्य हिस्सों में जाने वाला प्रोटीन यूरिन से बाहर निकल जाता है।
शरीर में सूजन, भूख न लगना, यूरिन कम या न कर पाना आदि।
इन्हें है अधिक खतरा
अधिक वजन वाले लोग, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के मरीज, मेडिकल हिस्ट्री व धूम्रपान करने वाले लोगों को इसका खतरा अधिक रहता है।
जरूरी जांचें
सबसे पहले विशेषज्ञ यूरिन की रुटीन जांच कराते हैं। जरूरत पडऩे पर किडनी फंक्शन टैस्ट और बायोप्सी भी करवाते हैं। इस रोग का इलाज दवाओं से संभव है लेकिन इसमें सालभर तक का समय लगता है।
वजन नियंत्रित रखें, ज्यादा से ज्यादा पानी व तरल पदार्थ लें। नमक कम खाएं और खाने में ऊपर से न डालें। धूम्रपान और शराब से पूरी तरह तौबा करें। रोजाना वॉक, साइक्लिंग, योग और प्राणायाम करें। डॉ. संजीव गुलाटी नेफ्रोलॉजिस्ट, नई दिल्ली
अमरीका में हुए दो अध्ययनों से पता चला है कि एसिड रिफ्लक्स और हार्ट बर्न का इलाज करने वाली दवाओं (जिन्हें सामान्य भाषा में एसिडिटी की दवा कहते हैं) प्रोटोन पंप इनहिबीटर्स (पीपीआई) को ज्यादा खाने से किडनी संबंधी रोगों का खतरा बढ़ सकता है। 10,482 वयस्कों पर 15 साल निगरानी रखने के बाद वैज्ञानिकों ने पाया, पीपीआई लेने वालों में क्रॉनिक किडनी डिजीज का खतरा अन्य लोगों के मुकाबले 20 से 25 फीसदी ज्यादा था।