डिप्रेशन : डिप्रेशन के तीन मामलों में से एक का कारण बैक्टीरिया हो सकते हैं। जो आंत से निकलकर खून में मिल जाते हैं। इसके पीछे आंत का कहीं से क्षतिग्रस्त होना या झिल्ली का कमजोर पडऩा होता है।
सिजोफे्रनिया : ये दिमागी दौरे से जुड़ी घातक बीमारी है। चूहों पर हुई रिसर्च के अनुसार बैक्टीरिया दिमाग के विकास पर असर डाल सकते हैं। इसी कारण सिजोफ्रेनिया जैसा मेंटल डिस्ऑर्डर होता है।
पार्किंसन :
वैज्ञानिक तंत्रिका तंत्र से जुड़ी इस दिमागी बीमारी के प्रकोप में भी बैक्टीरिया की भूमिका देखते हैं। उनके अनुसार पीडि़त लोगों के पेट के बैक्टीरिया स्वस्थ लोगों से बिल्कुल अलग होते हैं। इस बीमारी में हाथ-पैरों के मूवमेंट में दिक्कत होती है।
कोलोन कैंसर
आंतों में मीठा पसंद करने वाले बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जिन्हें हम लगातार मीठी चीजें खाकर बढ़ावा देते रहते हैं। इनसे स्थितियां बिगड़े तो कोलोन कैंसर हो सकता है। जो अन्य समस्या पैदा करता है।
ऑटिज्म : यह दिमाग में होने वाला विकार है, जो हमारे सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है। ऑटिज्म की समस्या उन लोगों में ज्यादा देखी गई है जिनमें पेट से जुड़ी दिक्कतें ज्यादा होती हैं।
मोटापा व डायबिटीज :
दोनों समस्याएं पाचनतंत्र से जुड़ी हैं। हमारी गलतियों से पेट का माइक्रो बॉयोम यानी बैक्टीरिया की कॉलोनी में उथल-पुथल मचती है जो मोटापे व डायबिटीज के रूप में उभरता है।
क्रोहन्स : ये आंतों से जुड़ा रोग है। कुछ बुरे बैक्टीरिया की तादाद पेट में इतनी बढ़ जाती है कि वे आंतों की लाइनिंग को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। ऐसे में अच्छे बैक्टीरिया भी इनका विरोध नहीं कर पाते हैं।
आर्थराइटिस : कई शोध से पता चला है कि पेट में मौजूद अच्छे बैक्टीरिया की संख्या यदि कम हो जाए और बुरे बैक्टीरिया की तादाद बढ़ जाए तो वे प्रमुख जोड़ पर असर डालते हंै। जिससे आर्थराइटिस और जोड़दर्द होता है।