मिली जानकारी के अनुसार नवजात शिशुओं का जीवन बचाने में इस चिकित्सा इकाई को महत्वपूर्ण माना जाता है। हर माह डेढ़ सौ से अधिक बच्चे इस इकाई में भर्ती होते हैं। विदिशा जिले के अलावा आसपास जिलों के नवजात शिशु भी यहां उपचार के लिए आते हैं। चिकित्सा के पर्याप्त संसाधन एवं चिकित्सा टीम 24 घंटे इस इकाई में उपलब्ध रहती है, लेकिन कुछ माह से बच्चों की मौतें बढऩे का आंकड़ा सामने आना लगा है।
अगस्त में 13 व अक्टूबर में 18 मौतें
इस इकाई में अगस्त माह में 170 नवजात भर्ती हुए हैं जिनमें 13 बच्चों की जान नहीं बचाई जा सकी। वहीं सितंबर माह में इस इकाई में दर्ज बच्चों की संख्या 181 रही इनमें 14 बच्चों की मौत हुई है और अक्टूबर माह में कुल 177 नवजातों में 18 शिशुओं की मौत होना सामने आया है। इस तरह अगस्त माह से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
इस इकाई में अगस्त माह में 170 नवजात भर्ती हुए हैं जिनमें 13 बच्चों की जान नहीं बचाई जा सकी। वहीं सितंबर माह में इस इकाई में दर्ज बच्चों की संख्या 181 रही इनमें 14 बच्चों की मौत हुई है और अक्टूबर माह में कुल 177 नवजातों में 18 शिशुओं की मौत होना सामने आया है। इस तरह अगस्त माह से मौत का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है।
ऐसे बच्चे होते हैं भर्ती
चिकित्सकों के मुताबिक जन्म के समय शिशु का कम वजन होना, कम दिन का शिशु होना, जन्म के बाद शिशु का न रोना, संक्रमण संबंधी समस्या, पीलिया होना, श्वांस लेने तकलीफ होना जैसी स्थितियों में नवजात शिशुओं को इस इकाई में भर्ती किया जाता है।
चिकित्सकों के मुताबिक जन्म के समय शिशु का कम वजन होना, कम दिन का शिशु होना, जन्म के बाद शिशु का न रोना, संक्रमण संबंधी समस्या, पीलिया होना, श्वांस लेने तकलीफ होना जैसी स्थितियों में नवजात शिशुओं को इस इकाई में भर्ती किया जाता है।
यह है संसाधन व चिकित्सा स्टॉफ
इस इकाई में 4 डॉक्टर, करीब 19 नर्स, 20 बार्मर, 10 फोटो थेरेपी मशीनें हैं। वर्तमान में इस इकाई में 36 बच्चे भर्ती हैं। सभी मशीनों पर बच्चे हैं और कुछ उपचाररत बच्चे इस इकाई में अपनी माताओं के पास है। चिकित्सा में पदस्थ चिकित्सकों का कहना है कि अब बच्चों को रेफर करने की बजाय यहीं पर उनका उपचार करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
इस इकाई में 4 डॉक्टर, करीब 19 नर्स, 20 बार्मर, 10 फोटो थेरेपी मशीनें हैं। वर्तमान में इस इकाई में 36 बच्चे भर्ती हैं। सभी मशीनों पर बच्चे हैं और कुछ उपचाररत बच्चे इस इकाई में अपनी माताओं के पास है। चिकित्सा में पदस्थ चिकित्सकों का कहना है कि अब बच्चों को रेफर करने की बजाय यहीं पर उनका उपचार करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
यह मान रहे कारण
इस इकाई की प्रभारी मयूरा का कहना रहा कि वे सिविल सर्जन की अनुमति के बिना कोई जानकारी नहीं दे पाएंगी। वहीं इकाई के चिकित्सक डॉ. सुरेंद्र सोनकर ने बताया कि शिशुओं का कम वजन व कम समय में जन्म लेना मौत का मुख्य कारण सामने आ रहा है। कुछ शिशु ऐसे भी आते हैं जिनके उपचार का समय ही नहीं मिल पाता और मौत हो जाती है।
इस इकाई की प्रभारी मयूरा का कहना रहा कि वे सिविल सर्जन की अनुमति के बिना कोई जानकारी नहीं दे पाएंगी। वहीं इकाई के चिकित्सक डॉ. सुरेंद्र सोनकर ने बताया कि शिशुओं का कम वजन व कम समय में जन्म लेना मौत का मुख्य कारण सामने आ रहा है। कुछ शिशु ऐसे भी आते हैं जिनके उपचार का समय ही नहीं मिल पाता और मौत हो जाती है।
-एसएनसीयू में शिशुओं की मौतें बढऩे जैसी स्थिति मेरे सामने नहीं आई। इस संबंध में जानकारी ली जाएगी। कारणों का पता किया जाएगा। -डॉ. शशि ठाकुर, सीएमएचओ