यहीं रामबाग में विराजेगा देवलोक
इसी देवलोक में देवी-देवता निवास करेंगे। दूसरी ओर रावण जन्म लेने के साथ ही यज्ञ कर अजर-अमर होने का वरदान हासिल कर अत्याचार आरंभ करेगा। दुनिया भर के श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रामनगर की विख्यात रामलीला के लिए शाही सवारी का ट्रायल लिया गया।
पूर्व काशिराज परिवार के वंशज कुंवर अनंत नारायण की निकलेगी शाही सवारी
रवरिवार को अनंत चतुर्दशी की शाम काशिराज परिवार के वंशज कुंवर अनंत नारायण सिंह बग्घी पर सवार होकर रामबाग पहुंचेंगे। इस शाही सवारी के आगे बनारस स्टेट के निशान के साथ डंका बजेगा। देर शाम रावण जन्म के साथ रामलीला आरंभ होगी। रामनगर की रामलीला के लिए लाव -लश्कर सज गया है। देर शाम बनारस स्टेट के निशान, डंका के साथ शाही सवारी निकलने के लिए रिहर्सल किया गया। रविवार की शाम पांच बजे किले के मुख्य द्वार पर डंका बजेगा और राजा की शाही सवारी लीला स्थल के लिए निकल जाएगी।
शेषनाग का विशालकाय पुतला सजा
रामनगर की रामलीला के लिए रंग-बिरंगे पुतले भी तैयार हो गए। मोर-हंसों के जोड़े रंग-रोगन कर लिए गए। पहाड़ भी तैयार हो गया। रामबाग पोखरे के क्षीर सागर में जहां भगवान विष्णु विराजेंगे, वहां सजाने के लिए शेषनाग के विशालकाय पुतले को राजू के नेतृत्व में बना लिया गया है। राक्षसों के अलावा रावण की बुर्जियां भी आकर्षण का केंद्र बन गई हैं।
देश के कोने-कोने से इस लीला को देखने पहुंचे श्रद्धालु
इस लीला को देखने के लिए वृंदावन, अयोध्या, हरिद्वार, चित्रकूट, सीतामढ़ी से लेकर देश के अन्य हिस्सों से संतों की टोलियां रामनगर पहुंच गई हैं। धर्मशालाओं के अलावा मोहताज खाने में साधु-संतों के ठहरने की व्यवस्था की गई है। तरह-तरह के वेश में लीला प्रेमी रामनगर की सड़कों पर नजर आने लगे हैं। गंजी, गमछा, अंगौछा के अलावा धोती-कुर्ता में छड़ी लिए लीला प्रेमियों के समूह रामनगर में छा गए हैं।
रामनगर की रामलीला का इतिहास
0-रामनगर के लोग बताते हैं कि महराज महीपनारायण सिंह एक बार चुनार में रामलीला के मुख्य अतिथि के रूप में गए थे। वह रामलीला स्थल पर कुछ विलंब से पहुंचे तब तक धनुष भंग हो चुका था। उनको इस बात का काफी मलाल था। 1855 में उन्होंने रामनगर की लीला को खुद शुरू कराई।
0-महराजा महीपनारायण सिंह का बेटा उदित नारायण सिंह एक बार बुखार से तप रहा था। महराज ने लीला में प्रभु राम से मनाया कि जल्दी ठीक कर दें। तभी लीला में राम ने एक माला महराज की ओर फेंका, उन्होंने माला उदित के माथे के नीचे रख दिया। सुबह युवराज पूरी तरह स्वस्थ हो गए।
0-इस लीला के जरिए देश भर से साधु-संतो को इकठ्ठा किया जाता था। महराज द्वारा सभी को दान-पुण्य किया जाता था। ताकि काशी में कभी विपत्तियां न आएं। अब परम्परा खत्म सी हो गई है।
0-रामनगर में आज भी अलग-अलग जगहों अयोध्या, जनकपुर, अशोक वाटिका, लंका बनाया जाता है। धनुषयज्ञ, राज्याभिसेख, सीताहरण, रावणवध अद्भुत दृश्यों का मंचन आज भी महराजा के सामने ही होता है।
0-रामनगर की लीला महीने भर (31 दिन) चलती है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्दशी से लेकर अश्विन पूर्णिमा तक चलती है।
0-प्रतिदिन शाम को पांच बजे बिगुल बजता है। महराज की सवारी निकलती है। लीला सात बजे से रात दस बजे तक चलती है।
0-देश की एक मात्र रामलीला है, जो 1855 से पेट्रोमैक्स की लाइट में होती है।
0-राज्याभिषेक के दिन रातभर गद्दी पर बैठ दर्शन देते हैं भगवान राम
0-कोई वाद्ययंत्र का प्रयोग लीला में नहीं होता, संवाद और ओपन थियेटर का सबसे बड़ा केंद्र है
0-रामनगर की लीला में मुकुट का खास महत्व होता है। स्वरूप भगवन जब मुकुट धारण करते है, तो देवत्य के रूप में अराधना होती है। इसीलिए राज्याभिसेख के दिन महराज पैदल चलकर लीलास्थल पर आते हैं।
0-रावण वध से अनोखी परम्परा जुड़ी है। राम का बाण लगते ही रावण जमीन पर गिर जाता है। थोड़ी देर बाद मुखौटा उतारकर भगवान राम का चरण बंदन करता है।
0-राज्याभिषेक के दिन भगवान राम रातभर गद्दी पर बैठकर लोगों को दर्शन देते हैं।
0न बिजली की रोशनी और न ही लाउडस्पीकर। साधारण सा मंच और खुला आसमान। काशी को यूं ही दुनिया का 'सबसे प्राचीन शहर' नहीं कहा जाता है। यहां आते ही आधुनिकता पीछे छूट जाती है।
0-21वीं सदी में भी बनारस में कई पुरानी परम्पराएं मौजूद हैं और इन्हीं में से एक है रामनगर की मशहूर रामलीला. काशी के दक्षिण में गंगा के किनारे मौजूद 'उपकाशी' को ही रामनगर कहा जाता है.
0-रामनगर के लोग राम को सबसे बड़ा देवता मानते हैं। काशी क्षेत्र में गंगा के बाएं किनारे पर शिव, जबकि दाहिनी ओर राम के भक्त मौजूद हैं.
0-यह रामलीला आज भी उसी अंदाज़ में होती है और यही इसे और जगह होने वाली रामलीला से अलग करता है। इसका मंचन रामचरितमानस के आधार पर अवधी भाषा में होता है