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पराली का धुआं देता है कैंसर को दावत

locationवाराणसीPublished: Nov 19, 2018 05:21:02 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

जहरीली गैसें कार्बन मोनोआक्साइड लाल कणों से क्रिया करके खून की आक्सीजन ले जाने की क्षमता घटाती हैं।

खेतों में जलता कृषि अपशिष्ट

खेतों में जलता कृषि अपशिष्ट

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. पराली जलाने से निकलने वाला धुआं मानव स्वास्थ्य के लिहाज से अत्यंत हानिकारक है। इससे वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मिथेन गैसों की मात्रा बढ़ जाती है। एक टन नाड़ अथवा पराली जलाने पर हवा में 03 किलो कार्बन कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1500 किलो कार्बन डाईऑक्साइड, 200 किलो राख और 2 किलो सल्फर डाईऑक्साइड फैलते हैं। इससे लोगों की त्वचा एवं सांस संबंधी तकलीफें बढ़ जाती हैं। खेतों में आग लगाने से उसके इर्द-गिर्द दूर-दूर तक धुआं फैल जाने से वायुमंडल में गर्मी पैदा होती है। वातावरण बुरी तरह प्रदूषित होकर चारों ओर गहरा धुंधलका छा जाता है।
दी क्लाइमेट एजेंडा के सीनियर रिसर्चर धीरज कुमार दबगरवाल ने पत्रिका को बताया कि पराली जलाने से जहरीली गैसें कार्बन मोनोआक्साइड लाल कणों से क्रिया करके खून की आक्सीजन ले जाने की क्षमता घटाती हैं। इसके साथ ही कार्बन डाइआक्साइड आंखों तथा सांस की नली में जलन पैदा करती है। इसके अतिरिक्त सल्फर आक्साइड तथा नाइट्रोजन आक्साइड फेफड़ों, खून, त्वचा तथा श्वसन क्रिया पर सीधा असर करती है, जोकि कैंसर जैसी बीमारियों को निमंत्रण देता है। उक्त जहरीली गैसों के प्रकोप का शिकार सबसे अधिक बच्चे होते हैं, ये गर्भवती महिलाओं पर भी बहुत बुरा प्रभाव डालती है। इसके अतिरिक्त हर तरह का प्रदूषण हमारी पृथ्वी के गिर्द घेरा डाले बैठी ओजोन परत में छेद करता है, जिसका परिणाम यह होता है कि सूरज की जो किरणें ओजोन परत से छन कर हमारी धरती को रोशन करती हैं और हमें विटामिन डी उपलब्ध करवाती हैं, वे सीधी धरती पर पहुंचने लगती हैं जिसका मनुष्य के साथ-साथ पशु-पक्षियों को भी खतरनाक हद तक नुक्सान पहुंचता है।
पराली जलाने से हर साल सर्दियों के मौसम में विशेषकर वायु प्रदूषण की समस्या अत्यंत बढ़ जाती है और इस वर्ष भी अभी से ही राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण से बीमारियों की आशंका जताई जाने लगी है। इस बाबत क्लाइमेट एजेंडा की मुख्य कार्यकर्ता एकता शेखर ने पत्रिका से बातचीत में कहा कि आमतौर पर यह धारणा है कि पराली जलाने से केवल दिल्ली और आसपास का ही वातावरण प्रभावित होता है। ऐसा इसलिए है कि पंजाब और हरियाणा में खेतों का क्षेत्रफल बड़ा है। लेकिन हकीकत यह है कि इससे यूपी भी बुरी तरह से प्रभावित होता है। लेकिन यहां खेतों का क्षेत्रफल कम होने से इसका अंदाजा नहीं चलता। उन्होंने बताया कि तीन साल पहले ही हम लोगों ने इसे लेकर यूपी सरकार से पराली जलाने पर रोक लगाने की मांग की थी लेकिन तब ध्यान नहीं दिया गया।

धीरज ने बताया कि दरअसल पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की समस्या इतनी गंभीर हो जाती है कि दिल्ली तक इसका असर दिखाई देता है। मौजूदा मौसम में ठंडक बढ़ने के साथ ही हवा भी प्रदूषित होती जा रही है। वर्तमान में हवा में पीऍम-2.5 व पीऍम-10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर पॉल्यूटेंट की मात्रा केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के मानक से लगातार ज्यादा चल रहा है (11-नवम्बर -18-नवम्बर -18)। मानक में 50 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर वाली मात्रा को शुद्ध कहा गया है। मगर वाराणसी शहर में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स (एक्यूआई) 300 से ऊपर चल रहा है स्थिति इतनी है की नाक और गले का इन्फेक्शन, सीने में जकडन, कफ आना, छींकना, नाक बहना, सांस फूलना, दिल का रोग, फेफड़े का चिरकालिक बीमारियाँ, फेफड़े का कैंसर, श्वांस संबंधी बीमारियाँ, अस्थमा, टी0 वी0, ह्रदय घात, आदि प्राण घातक समस्याएं की समस्या लगातार बढ़ते जा रही है।
उन्होंने बताया कि एक रिपोर्ट के अनुसार एक एकड़ में 2.5 से लेकर 3 टन तक पराली की पैदावार होती है, जिसे जलाने से लगभग 32 किलो यूरिया, 5.5 किलो डी.ए.पी. तथा 51 किलो पोटाश जलकर राख हो जाती है। इसके साथ ही कृषि के लिए सहायक मित्र कीड़े भी मर जाते हैं, जिससे धरती की उपजाऊ शक्ति में भारी कमी आती है। इससे पूर्व सड़कों के किनारे लगे कितने ही पेड़ पराली को लगी आग की भेंट चढ़ जाते हैं। पहले के समय में छोटी मक्खी का शहद आम मिल जाता था मगर जब से पराली जलाने की रिवायत चली है, उससे शहद की अनगिनत मक्खियां मर चुकी हैं जिसके परिणामस्वरूप आज शुद्ध शहद मिलना बहुत मुश्किल हो गया है। इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे पक्षी, जैसे कि चिडिय़ां आदि हमारे समाज से अलोप होती जा रही हैं तथा अन्य बहुत सारे पक्षी तथा जीव-जंतुओं की भी मौत हो जाती है।
एक अनुमान के अनुसार पराली जलाने से हर वर्ष किसानों का लगभग 500 करोड़ रुपए का नुक्सान होता है। इसके अतिरिक्त पराली के धुएं तथा आग के कारण सड़कों पर सफर करने वाले कितने ही मुसाफिर दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि पराली जलाने की समस्या के साथ निपटना अकेले राज्य सरकार के बस की बात नहीं बल्कि यह समस्त देश के लिए एक गम्भीर चिंता का विषय है। इसके समाधान के लिए राज्य तथा केन्द्र सरकार दोनों को ही सांझे रूप में मिलजुल कर कार्य करने की जरूरत है और साथ ही दोनों सरकारों को किसानों के सभी हितों को ध्यान में रखते हुए सुचारू तथा उचित समाधान खोजने चाहिएं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस धरती पर हम रहते हैं, इसके पर्यावरण तथा वातावरण की संभाल करना सरकारों का ही काम नहीं है बल्कि इसको दूषित होने से बचाने के लिए हम सभी को भी प्रयास कर अपना योगदान डालने की जरूरत है।-
वाराणसी शहर में एयर क्वॉलिटी इंडेक्स के औसत आकड़े

कैंट/महमूरगंज
दिनाक पीऍम2.5 (ug/m3) पीऍम10 (ug/m3) पीऍम2.5 (ug/m3) पीऍम10 (ug/m3)
11-नवम्बर -18 234 498 238 511
12-नवम्बर -18 223 489 228 501
13-नवम्बर -18 201 445 210 475
14-नवम्बर -18 187 398 201 458
15-नवम्बर -18 246 460 252 474
16नवम्बर -18 154 282 161 294
17-नवम्बर -18 96 234 100 242
18-नवम्बर -18 132 275 141 275
अर्दली बाज़ार

दिनाक पीऍम2.5 (ug/m3) पीऍम10 (ug/m3)
11-नवम्बर -18 224 440
12-नवम्बर -18 212 428
13-नवम्बर -18 186 385
14-नवम्बर -18 166 387
15-नवम्बर -18 187 362
16नवम्बर -18 152 338
17-नवम्बर -18 141 304
18-नवम्बर -18 175 330

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड मानक
पूर्वनिर्धारित मानक Pm2.5 :- 60µg/m3
पूर्वनिर्धारित मानक Pm10 :- 100µg/m3

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