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भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने के लिए चाहिए वैदिक ज्ञान-विज्ञानः गुलाब कोठारी

locationवाराणसीPublished: Aug 25, 2017 11:14:00 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को सबसे पहले खुद को जानने की सलाह दी।

बीएचयू

बीएचयू में गुलाब कोठारी

वाराणसी. राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कहा कि भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने के लिए चाहिए वैदिक ज्ञान-विज्ञान। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय के संस्थापक महामना पंडित मदन मोहन मालवीय की सोच भी यही थी न कि मौजूदा आधुनिक विज्ञान। प्रधान संपादक ने कहा कि महामना भारत को विश्वगुरु और सोने की चिड़िया बनाना चाहते थे। यह तभी संभव था जब छात्र-छात्राओं को उस ढंग की शिक्षा मिले। वह चाणक्य पैदा करना चाहते थे जो अपनी शिखा को खोलकर तपस्या करे और देश को उच्च शिखर पर पहुंचा सके। उन्होंने सवाल किया कि आज कितने लोग हैं जो चाणक्य बनना चाहते हैं। यहां उन्होंने विख्यात साहित्यकार महादेवी वर्मा का उल्लेख किया और बताया कि वह वेद का अध्ययन करना चाहती थीं लेकिन तब उनके लिए यह संभव नहीं था, फिर भी वह घर के कमरे में छिप कर वेद का अध्ययन करती रहीं। फिर उनके लिए ऐसे विद्वान को तलाशा गया जो उन्हें वेद का अध्ययन करा सके। फिर उनके गुरु ने मुंडन कराया शिखा रखी और तब महादेवी को वेद का अध्ययन कराया। श्री कोठारी शुक्रवार को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के यूथ, मीडिया एंड सोशल रिस्पांसिबिलिटी विषयक विशेष व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने छात्र-छात्राओं को सबसे पहले खुद को जानने की सलाह दी और कहा कि जो खुद को नहीं जान सकता वह दूसरों को क्या जानेगा।
श्री कोठारी ने कहा कि आज हम पांच हजार साल पूर्व के वैदिक ज्ञान का तिरस्कार कर दूसरे रास्ते पर जा रहे हैं जहां ज्ञान नहीं। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक ने बीएचयू में वेद विज्ञान का पाठ्यक्रम लागू करने की सलाह दी और कहा कि इसके लिए उनसे जो भी मदद हो सकती है वह करेंगे। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय में वेदों का अध्ययन हो, विद्यार्थी उस पर शोध करें। कहा कि युवाओं में कुछ कर गुजरने की क्षमता है। लेकिन लोग उन पर अंगुली उठा रहे हैं। कहा कि शिक्षा व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली होनी चाहिए लेकिन हो क्या रहा है? आज शिक्षा नौकरी और पेट पालने के लिए हो गई है। यह सही नहीं। श्री कोठारी ने टीवी और इंटरनेट के बीच फर्क बताते हुए कहा कि एक वक्त था जब टीवी आई तो शनिवार और रविवार को लोग जिस घर में टीवी होता था वहां सिनेमा देखने पहुंचता था। सारे घर के लोग एक साथ एक कमरे में जुटते थे। ये जुड़ाव था लेकिन उसके बाद जब इंटरनेट आया तो लोग एकाकी होने लगे। इससे परिवार टूटने लगा। हालात यह हो गए कि पड़ोस के फ्लैट में कौन रहता है हमें नहीं पता होता। ये है इंटनेट की उपलब्धि। इसके बाद मोबाइल आया तो हालात और भी बदतर हो गए। उन्होंने कहा कि इंफारमेशन टेक्नॉलजी ने हमें एक दूसरे से अलग कर दिया है।
उन्होंने कहा कि हमें सोचना होगा कि हम दूसरे के लिए क्या कर सकते हैं। लेकिन हम तो पश्चिमी सोच के पीछे भागे जा रहे हैं, जहां कुछ भी नहीं, न योग है न वेद है। कहा कि इसके बिना संस्कृति कैसी। बताया कि दो साल पहले विद्यापीठ में मैने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए बताया था कि वे कैसे खुद को कैसे जानें क्योंकि खुद को जाने बिना दूसरों को नहीं जान सकते। श्री कोठारी ने शिखर से जोड़ने के लिए तीन बातें बताईं, कहा कि मन लगा कर सुनें, बुद्धि, शरीर को ढीला छोड़ दें। बताया कि व्यक्तित्व के चार भाग हैं, मेरा शरीर, इसके अंतर्गत मै नहीं, मेरा मन, मेरी बुद्धि इसके अलावा चौथा है मेरी आत्मा। कहा कि शरीर मन से जुड़ा है, जबकि मृत्यु मोक्ष से। मानों नर से नारायण के लिए पैदा होते हैं। उन्होंने शरीर कैसे काम करता है यह भी बताया, कहा कि जिस तरह से एक बीज में पेड़ दिखता है, उस बीज का एक लक्ष्य, एक सपना होता है पेड़ बनना। उस बीज को इसकी चिंता नहीं होती कि वह कैसे पेड़ बनेगा वह एक लक्ष्य के साथ अपने सपने को साकार करने में जुटा होता है। कहा कि बीज को कोल्ड स्टोरेज में रख दें तो उसका सपना पूरा नहीं होगा। बीज को जमीन में गड़ना होगा। ठीक उसी तरह खुद का निर्माण करना है तो अपने अस्तित्व को भूलना होगा। बीज की तरह जमीन में गड़ने की तैयारी करनी होगी। यह चिंता छोड़ कर कि छाया किसे मिलेगी, फल कौन खाएगा। कहा कि इससे आगे दूसरा विचार है कि जब पेड़ बन गया तो बीज का कहां गया, उसका तो अस्तित्व समाप्त हो गया। यह चिंता नहीं चिंतन की चीज है। बताया कि दरअसल बीज पेड़ नहीं बनाता, पेड़ तो उस बीज के साथ जुड़े धरती के प्राण बनाते है। यह प्राण ही पेड़ से जुड़ा रहता है। ये प्राण ही मातृ-पितृ देव हैं। बताया कि हम पेड़ हैं जिसे बड़ माता-पिता का प्राण करता है। उन्होंने 45 मिनट के सारगर्भित उद्बोधन में प्रकृति, सूर्य और चंद्र, जन्म जन्मांत के भेदों को भी स्पष्ट किया। उन्होंने जीवन के निर्माण की प्रक्रिया भी बताई। ध्वनि की उपयोगित, मंत्रों की विशिष्टता, शरीर व मन की तमाम प्रक्रियाओं का भी विस्तार से वर्णन किया। सुःख-दुःख के कारण भी बताए।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जीसी त्रिपाठी ने श्री कोठारी के सारगर्भित व्याख्यान को विश्वविद्यालय के अनुरूप बताया। कहा जो यह सही है कि जो खुद के बारे में ठीक से विचार नहीं कर सकता वह परिवार, समाज और राष्ट्र के लिए क्या विचार कर पाएगा। पहले खुद को समझना ही होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों में गुरुओं को छात्र-छात्राओं को निरंतर कुछ न कुछ बताना होगा। कहा कि शिक्षण संस्थान बहस के लिए नहीं होते, बहस तो कोर्ट में होती है, शिक्षण संस्थान में संवाद और शास्त्रार्थ होना चाहिए। उन्होंने 70 साल से लागू शिक्षा नीति पर सवाल खड़ा किया और कहा कि यह शिक्षा नीति की देन है कि हम पिछड़ा होने की होड़ में लगे हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता समाजविज्ञान संकाय के प्रमुख प्रो. मंजीत चतुर्वेदी ने की जबकि मुकेश मिश्र ने आभार जताया और डॉ प्रशां कुमार ने संचालन किया। इससे पूर्व यूनेस्को चेयर फॉर पीस के समन्वयक प्रो. प्रियंकर उपाध्याय ने विषय प्रस्तावना रखने के साथ श्री कोठारी के व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला।
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