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वाराणसी

गंगा जल के चिकित्सकीय गुणों पर BHU में हो शोधः अनुप्रिया

गंगा व अन्य नदियों के प्रदूषण पर बीएचयू के चिकित्सा विज्ञान संस्थान में राष्ट्रीय संगोष्ठी। बीएचयू के वीसी ने कहा, सभ्यता, संस्कृति एवं नदियां ही मानव

वाराणसीAug 22, 2017 / 11:22 pm

Ajay Chaturvedi

गंगा के जल औषधीय गुणों पर आधारित संगोष्ठी

बीेेएचयू में संगोष्टी को संबोधित करती अनुप्रिया पटेल

वाराणसी. गंगा जल के चिकित्सकीय गुणों का वर्णन हमारे शास्त्रों में वर्णित है। वो कोई कपोल कल्पना नहीं अपितु ये तथ्य ब्रिटिश इंडिया में ही 1896 व 1910 में प्रमाणित किया जा चुका है। यह कहना है केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल का। उन्होंने कहा कि फेज थिरेपी के शोध के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के भी सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। ऐसे में दोनों ही संस्थाओ को इस विषय पर तेजी से कार्य करने की जरूरत है। राज्यमंत्री पटेल ने कहा कि गंगा जल में पाए जाने वाले विषाणु, निर्देशित मिसाइल की तरह मानव के लिए हानिकारक बैक्टीरिया को ही मारते हैं। ये नाभिकीय बोम्ब की तरह नहीं बल्कि जो भी इनकी जद में आया सब साफ, जैसा की एंटी बायोटिक दवा करती है। ऐसे में मानव के लिए उपयोगी इन गंगा जल जीवियों पर अधिक शोध करने की जरूरत है। वह काशी हिन्दू विश्व विद्यालय स्थित चिकित्सा विज्ञान संस्थान द्वारा गंगा नदी में स्थित कीटाणु खाने वाले विषाणु विषयक दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रही थीं। यह आयोजन स्वतन्त्रता भवन में हुआ।
इस मौके पर केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन एस कुलस्ते ने कहा कि गंगा की पवित्रता को पुनर्स्थापित करना मोदी सरकार की प्राथमिकता है। इसी क्रम में गंगा मंत्री उमा भारती व संघ के कृष्ण गोपाल जी ने यह मन्तव्य वयक्त किया की क्यों न गंगा जल के चिकत्सकीय गुणों का वैज्ञानिक परीक्षण किया जाए। कहा कि समस्त भारतीय तीर्थो पर विभिन्न नदियों में स्नान का इतना महात्म्य क्यों है। प्रमुख रूप से गंगा जल में इसका वैज्ञानिक विश्लेषण किया जा सके। इसी भावना के तहत काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में इस प्रथम अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। कुलस्ते ने मध्य प्रदेश की नर्मदा नदी के किनारे 06 करोड़ पौधे लगा कर नर्मदा को पुनर्जीवित करने के कार्यक्रम की सराहना की। कहा की गंगा तभी पवित्र हो सकती है जब समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी अंतरात्मा को शुद्ध कर अपने समाजिक दाइत्वों का निर्वहन करे। अनुभव के आधार पर यह प्रमाणित किया जा चुका है कि गंगा जल में संक्रामक रोगों को ठीक करने की क्षमता है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए काशी हिन्दू विश्व विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर जी सी त्रिपाठी ने कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप ही नहीं विश्व की अनेक सभ्यताएं एवं संस्कृतिया नदियों के किनारे ही परिपक्व हुई हैं। इन वैश्विक नदियों ने ही मानव जीवन का संवाहन उत्तरोतर प्रगति के साथ किया है। इन सभी में मां गंगा को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। गंगा में मानव जीवन के संरक्षण के समस्त जैविक एवं रासायनिक तत्व अभिसिंचित हैं तथा ये सभी पूर्ण रूपेण अपनी नैसर्गिक शक्तियों के साथ विद्यमान हैं। हमारे ऋषि-मुनियों ने इनका परिचय समाज को धर्मं की भाषा में दिया, जिसे सरलता से प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन चर्या में समाहित कर सके। उन्होंने कहा की गंगा जल के गुणों में व्याप्त सभी चिकित्सकीय गुणों को वैज्ञानिकता का प्रमाण देने के लिए आज शोध की आवश्यकता है। इसके लिए काशी हिन्दू विश्व विद्यालय से अधिक उपयुक्त संस्थान अन्यत्र कही नहीं है। दुर्भाग्य का विषय है की इतिहास के पन्नो में दर्ज 400 से अधिक नदियां विभिन्न कारणों से विलुप्त हो चुकी हैं। इनमें शहरों का अनियंत्रित विकास भी एक मूल कारण है। उद्घाटन सत्र की सम्मानित अतिथि इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च की सचिव, महा निदेशक डॉ सोम्या स्वामीनाथन ने कहा कि गंगा जल में पाए जाने वाले कीटाणु, खाने वाले विषाणु (बैक्टेरियोफासेस ) पर अनुसंधान के लिए एक प्रोजेक्ट की स्वीकृति मंत्रालय ने कल ही दे दी है। इस प्रोजेक्ट में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली, काशी हिन्दू विश्व विद्यालय, नीरी नागपुर एवं भारतीय चिकत्सा अनुसंधान परिषद नई दिल्ली सामूहिक रूप से विभिन्न विषयों पर एक साथ समन्यव स्थापित कर कार्य करेंगे। डॉ स्वामीनाथन ने कहा कि यह अत्यन्त प्रसन्नता का विषय है कि काशी हिन्दू विश्व विद्यालय में आयुर्वेद संकाय, चिकित्सा विज्ञान संकाय, विज्ञान संस्थान एवं भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान सब एक साथ ही हैं। ऐसे में यह विश्व विद्यालय शोध के लिए सर्वथा उपयुक्त संस्थान है। डॉ स्वामीनाथन ने चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. वी के शुक्ला से कहा कि चिकित्सा विज्ञान संस्थान में एक समेकित शोध केंद्र की स्थापना की संभावनाओं पर प्रस्ताव प्रस्तुत करें। इस समेकित केंद्र में जीवनचर्या जन्य व्याधियों पर आयुर्वेद एवं आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विशेषज्ञों द्वारा विज्ञान संस्थान के साथ मिलकर मानव कल्याणार्थ शोध हो सके।
इस मौके पर आयोजन सचिव प्रो. गोपाल नाथ ने प्रतिनिधियों से आह्वान किया कि शोध विषयो में यह भी समाहित करने की आवश्यकता है कि माघ मेल में कल्प वास का क्या कोई वैज्ञानिक आधार है। गंगा जल वर्षों तक सड़ता क्यों नहीं। क्यों लोग घरो में गंगा जल का छिडकाव करते है। उद्घाटन समारोह में भारी संख्या में प्रतिभागी, विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। सत्र का संचालन प्रो गोपाल नाथ ने किया जबकि प्रो वी के शुक्ला ने आभार जताया।

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