उनहोंने पत्रिका से बातचीत में कहा है कि अगर सम्मानजनक सीटें मिलती हैं और बीजेपी उनकी बात मानती है तो वह उसके साथ जा सकती हैं। बताते चलें कि अपना दल के संस्थापक सोने लाल पटेल की राजनैतिक विरासत के लिये वर्चस्व की जंग के चलते अपना दल टूट चुकी है और अनुप्रिया पटेल अपना दल (सोनेलाल) के नाम से नई पार्टी बना चुकी हैं, जो यूप विधानसभा चुनावों में बीजेपी के साथ थी, जबकि कृष्णा पटेल की अपना दल ने भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा था।
अपना दल प्रमुख कृष्णा पटेल ने पत्रिका से दावा किय है कि वह बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के सम्पर्क में हैं और इस संबंध में उनसे बातचीत चल रही है। अगर बात बनती है और भाजपा उन्हें सममानजनक सीट व उनकी बातों को महत्व देती है तो उन्हें बीजेपी के साथ जाने में कोई गुरेज नहीं। मां कृष्णा पटेल का यह दांव बेटी अनुप्रिया को सियासी पटखनी देने के लिये अहम माना जा रहा है। फिलहाल चर्चा में यह भी है कि किसी पार्टी से गठबंधन हो जाने पर मां कृष्णा पटेल बड़ी बेटी अनुप्रिया के खिलाफ छोटी बेटी पल्लवी पटेल को मिर्जापुर से चुनाव लड़ा सकती हैं। उनकी पार्टी इसके लिये कवायद भी कर रही है।
बताते चलें कि अपना दल ने 2014 में भाजपा के साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा और मिर्जापुर से अनुप्रिया पटेल व प्रतापगढ़ से कुंवर हरिवंश सिंह पार्टी के टिकट पर जीतकर आए। अनुप्रिया के सांसद बनने के बाद उन्हें वाराणसी की रोहनिया विधानसभा सीट से इस्तीफा देना पड़ा। उपचुनाव में इस सीट पर पार्टी ने कृष्णा पटेल को लड़ाया, लेकिन वह समाजवादी पार्टी से हार गयीं। इस दौरान परिवार में राजनैतिक वर्चस्व को लेकर शुरू हुई खींचतान के बाद कृष्णा पटेल ने अनुप्रिया को पार्टी से निकाल दिया। बाद में अनुप्रिया पटेल अपना दल (सोनेलाल) के नाम से पार्टी बनाकर बीजेपी के साथ ही रहीं और यूपी विधानसभा चुनाव में 12 सीटों पर लड़कर नौ पर जीत हासिल की।
अब पहले पार्टी अध्यक्ष अशीष पटेल और फिर अनुप्रिया पटेल ने बीजेपी से नाराजगी जाहिर कर यह कहते हुए अधिक सीटों की मांग कर दी कि 2014 के बाद उनकी पार्टी की ताकत बढ़ी है। अब देखना यह होगा कि अनुप्रिया पटेल इस सियासी संकट से कैसे निपटती हैं, क्योंकि उनके हटते ही विकल्प बनने के लिये कृष्णा पटेल अपनी पार्टी के साथ खड़ी हैं और बीजेपी को पटेल वोटों को साधने के लिये पटेलों की एक पार्टी की जरूरत है जो दोनों में से कोई भी हो फर्क नहीं पड़ेगा।