काशी के लोगों के लिए सौभाग्य का विषय है कि पहली बार यहां प्रवासी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। प्रवासी भारतीय दिवस के भव्य आयोजन की तैयारियां जोरो पर है। काशी की जनता प्रवासी भारतीयों के यादगार स्वागत के लिए उत्सुक है। विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। बहुत से स्टॉल लग रहे हैं जहां अजब-गजब चीजें प्रदर्शित की जाएंगी। ऐसे में चौबेपुर क्षेत्र के भंदहा कला (कैथी) निवासी 50 वर्षीय नर नाहर पांडेय का जिक्र किया जाना लाजमी है। ये वो शख्स हैं जिनके पास 36 से अधिक देशों की प्रचलित और अप्रचलित मुद्राओं का संग्रह है। उनके संग्रह में 250 से अधिक सिक्के हैं जिनमे अधिकांश तो अपने देश के दुर्लभ सिक्के हैं जो प्रायः अब चलन में नही है। एशिया, अफ्रिका, खाड़ी व यूरोपीय देशों सहित अमेरिका की भी मुद्राओं का संग्रह है।
इन देशों की मुद्राओं का है संग्रह
नर नाहर के पास कनाडा, फ़्रांस, श्रीलंका, ब्रिटेन, नेपाल, भूटान, म्यामार, सऊदी अरब, हांग कांग, अमेरिका, कुवैत, बंगलादेश, पाकिस्तान, स्पेन, चीन, बेल्जियम, इंडोनेशिया, इजिप्ट, जर्मनी, लीविया, रूस, ओमान, सिंगापूर, जाम्बिया, टर्की, नाईजीरिया, ईराक, इरान, कतर आदि देशों के सिक्के भी हैं। भारतीय मुद्रा रुपया के अलावा पॉंड, डालर, शीलिंग, पेंस, रुपिया, टका, गुलट्रम, फ्रैंक, रियाल, दिरहम जैसी मुद्राएं उनके संग्रह में हैं।
नर नाहर के पास कनाडा, फ़्रांस, श्रीलंका, ब्रिटेन, नेपाल, भूटान, म्यामार, सऊदी अरब, हांग कांग, अमेरिका, कुवैत, बंगलादेश, पाकिस्तान, स्पेन, चीन, बेल्जियम, इंडोनेशिया, इजिप्ट, जर्मनी, लीविया, रूस, ओमान, सिंगापूर, जाम्बिया, टर्की, नाईजीरिया, ईराक, इरान, कतर आदि देशों के सिक्के भी हैं। भारतीय मुद्रा रुपया के अलावा पॉंड, डालर, शीलिंग, पेंस, रुपिया, टका, गुलट्रम, फ्रैंक, रियाल, दिरहम जैसी मुद्राएं उनके संग्रह में हैं।
मूलतः कृषक हैं नर नाहर
मूलतः कृषि से जुड़े नर नाहर पांडेय अपने इस शौक के बारे में बताते हैं कि पहला विदेशी सिक्का उन्हें 1980 में मिला मिला था जब वे कक्षा 07 के छात्र थे, स्कूल के सामने आइसक्रीम बेचने वाले ने 10 पैसे का सिक्का समझ कर दिया था। सिक्के पर लिखी भाषा को समझने जिज्ञासा कालांतर में एक शौक बन गई। यहीं से शुरुआत हुई मुद्रा संग्रह की। परास्नातक तक की पढाई के दौरान बहुत सारे सिक्के मिलते गए और संग्रह समृद्ध होता गया। वह बताते हैं कि उन्हें अधिकांश सिक्के दशाश्वमेध घाट के पास से मिले। कई बार तो कई गुना अधिक मूल्य देकर विदेशी सिक्के प्राप्त हुए।
युवा पीढी के लिए है महत्वपूर्ण
मूलतः कृषि से जुड़े नर नाहर पांडेय अपने इस शौक के बारे में बताते हैं कि पहला विदेशी सिक्का उन्हें 1980 में मिला मिला था जब वे कक्षा 07 के छात्र थे, स्कूल के सामने आइसक्रीम बेचने वाले ने 10 पैसे का सिक्का समझ कर दिया था। सिक्के पर लिखी भाषा को समझने जिज्ञासा कालांतर में एक शौक बन गई। यहीं से शुरुआत हुई मुद्रा संग्रह की। परास्नातक तक की पढाई के दौरान बहुत सारे सिक्के मिलते गए और संग्रह समृद्ध होता गया। वह बताते हैं कि उन्हें अधिकांश सिक्के दशाश्वमेध घाट के पास से मिले। कई बार तो कई गुना अधिक मूल्य देकर विदेशी सिक्के प्राप्त हुए।
युवा पीढी के लिए है महत्वपूर्ण
जैसे जैसे सांसारिक जिम्मेदारियां बढ़ीं बचपन का यह शौक कहीं पीछे छूटता गया, बहुत सारे दुर्लभ सिक्के धीरे धीरे गायब भी हो गए, फिर भी बच्चों के लिए उनके संग्रह में अभी भी बहुत कुछ है, जिससे बच्चे अपने देश के प्राचीन सिक्कों और दूसरी मुद्राओं से परिचित हो सकते हैं।