तीज की कथा
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक हरियाली तीज की व्रत कथा स्वंय शिवजी ने माता पार्वती को उनका पिछला जन्म याद दिलाने के लिए सुनाई थी। भगवान शिव ने मां पार्वती से कहा था कि हे पार्वती, कई वर्षों पहले तुमने मुझे पाने के लिए हिमालय पर्वत पर घोर तप किया था। कठिन हालात के बावजूद भी तुम अपने व्रत से नहीं डिगी और तुमने सूखे पत्ते खाकर अपना व्रत जारी रखा जो की आसान काम नहीं था। शिवजी ने पार्वतीजी को कहा कि जब तुम व्रत कर रही थी तो तुम्हारी हालात देखकर तुम्हारे पिता पर्वतराज बहुत दुखी थे, उसी दौरान उनसे मिलने नारद मुनि आए और कहा कि आपकी बेटी की पूजा देखकर भगवान विष्णु बहुत खुश हुए और उनसे विवाह करना चाहते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक हरियाली तीज की व्रत कथा स्वंय शिवजी ने माता पार्वती को उनका पिछला जन्म याद दिलाने के लिए सुनाई थी। भगवान शिव ने मां पार्वती से कहा था कि हे पार्वती, कई वर्षों पहले तुमने मुझे पाने के लिए हिमालय पर्वत पर घोर तप किया था। कठिन हालात के बावजूद भी तुम अपने व्रत से नहीं डिगी और तुमने सूखे पत्ते खाकर अपना व्रत जारी रखा जो की आसान काम नहीं था। शिवजी ने पार्वतीजी को कहा कि जब तुम व्रत कर रही थी तो तुम्हारी हालात देखकर तुम्हारे पिता पर्वतराज बहुत दुखी थे, उसी दौरान उनसे मिलने नारद मुनि आए और कहा कि आपकी बेटी की पूजा देखकर भगवान विष्णु बहुत खुश हुए और उनसे विवाह करना चाहते हैं।
पर्वतराज ने नारद मुनि के इस प्रस्ताव को तुरंत स्वीकार कर लिया. लेकिन जब इस प्रस्ताव की जानकारी पार्वती को हुई तो पार्वती बहुत दुखी हुई क्योंकि पार्वती तो पहले ही शिवजी को अपना वर मान चुकी थीं। मान्यताओं के अनुसार शिवजी ने पार्वती से कहा कि,’तुमने ये सारी बातें अपनी एक सहेली को बताई. सहेली ने पार्वती को घने जंगलों में छुपा दिया। इस बीच भी पार्वती,शिव की तपस्या करती रहीं।’ तृतीया तिथि यानि हरियाली तीज के दिन पार्वती रेत का शिवलिंग बनाया। पार्वती की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर शिवलिंग से शिवजी प्रकट हो गए और पार्वती को अपने लिए स्वीकार कर लिया। कथानुसार,शिवजी ने कहा कि ‘पार्वती,तुम्हारी घोर तपस्या से ही ये मिलन संभंव हो पाया। जो भी स्त्री श्रावण महिने में शुक्ल पक्ष की तृतीया को मेरी इसी श्रद्धा से तपस्या करेगी, मैं,उसे मनोवांछित फल प्रदान करूंगा।’ मान्यता के अनुसार पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए 107 जन्म लिए. मां पार्वती के कठोर तप और उनके 108वें जन्म में भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया, तभी से इस व्रत का आरंभ हुआ. देवी पार्वती ने भी इस दिन के लिए वचन दिया कि जो भी महिला अपने पति के नाम पर इस दिन व्रत रखेगी, वह उसके पति को लंबी आयु और स्वस्थ जीवन का आशीर्वाद प्रदान करेंगी। भविष्यपुराण में उल्लेख किया गया है कि तृतीय के व्रत और पूजन से सुहागन स्त्रियों का सौभाग्य बढ़ता है और कुंवारी कन्याओं के विवाह का योग प्रबल होकर मनोनुकूल वर प्राप्त होता है।