बता दें कि समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में शिवपाल यादव का प्रमुख योगदान रहा है। वजह यह कि वह जमीनी नेता रहे और जमीन से जुड़े नेताओं के बीच उनकी अच्छी खासी पैठ मानी जाती है। संगठन कैसे चलाना है यह कोई भी शिवपाल यादव से सीख सकता है। इसमें उनको महारत हासिल है। संगठन की मजबूती और चुनाव संचालन के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं रहा है। यह बात कई बार उन्होंने साबित भी की है। 2012 का विधानसभा चुनाव इसका ज्वलंत परिणाम है जिसमें उन्होंने अपनी चाणक्य नीति की बदौलत ही सपा को पूर्ण बहुमत दिलाया जिसके बाद अखिलेश यादव को सीएम की कुर्सी नसीब हुई।
अब लंबे समय से समाजवादी पार्टी में घुटन महसूस कर रहे शिवपाल ने जब नई पार्टी समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा का गठन कर ही लिया है तो वह अपनी पुरानी पार्टी से जुड़े अपने लोगों को एक-एक कर नई पार्टी से जोड़ने लगे हैं। उन्हें महत्वपूर्ण पद सौपने लगे हैं। इससे समाजवादी पार्टी में भी खलबली मची है। खास यह कि शिवपाल उन लोगों को ही फिलहाल तवज्जो दे रहे हैं जिनका जनाधार बेहतर है, जो जमीन से जुड़े नेता है। इसके अलावा शिवपाल का ध्यान इस बात पर भी है कि केवल यादवों को जोड़ कर नई पार्टी खडी नहीं हो सकती है। लिहाजा वह हर जाति, वर्ग और संप्रदाय को जोड़ने की नीति पर काम कर रहे हैं।
अब 24 घंट पहले ही समाजवादी पार्टी की जमीनी कार्यकर्ता और कद्धावर महिला नेता रीबू श्रीवास्तव ने समाजवादी पार्टी छोड़ कर समाजवादी सेक्य्लर मोर्चा ज्वाइन कर बड़ा झटका दिया था कि अगले ही दिन शिवपाल ने देवेंद्र सिंह को बनारस मंडल का प्रभारी बना कर जोरदार झटका दे दिया है।
बताया जा रहा है कि देवेंद्र सिंह संगठन चलाने के माहिर हैं। शिवपाल की शागिर्दी में उन्होंने उनसे वो सारे गुर सीखे हैं जिसकी बदौलत संगठन को मजबूती प्रदान की जा सकती है। जमीन से जुड़े नेता है। उनका संगठन संचान का तजुर्बा ही रहा कि चुनाव के दौरान उन्हें बनारस का प्रभारी बनाया गया था। अब वह समाजवादी सेक्यूलर पार्टी से जु़ड़ चुके हैं। केवल जुड़े ही नहीं बल्कि उन्हें बनारस मंडल का प्रभारी नियुक्त कर दिया गया है। इससे समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा से जुड़े लोगों का हौसला बुलंद हुआ है। वो कहते हैं कि देवेंद्र के मंडल प्रभारी बनने के बाद चारों जिलों में तो मोर्चा सफल होगा ही साथ ही इसका असर आस-पास के जिलों पर भी पड़ेगा। शिवपाल यादव की अनदेखी करना सपा नेतृत्व के लिए अब महंगा साबित होगा। इसका असर आगामी लोकसभा चुनाव में दिखना तय है।