गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि भारतीय इतिहास का पुनर्लेखन भारतीय दृष्टिकोण से होना जरूरी है। यह जिम्मेदारी हमारी है। जो शासन अपने इतिहास को संजोकर नहीं रखता है, लोग उसे भूल जाते हैं। कब कि आज जो इतिहास लिखा जाएगा, उसमें सत्य पर आधारित होगा। वह चिरंजीवी होगा। शाह ने कहा कि सम्राट स्कंदगुप्त को इतिहास में वह स्थान नहीं मिला। अब कुछ शिलालेखों और प्रशस्ति पत्रों के माध्यम से मिल रहा है उसे सहेजने की जरूरत पड़ रही है। इतिहास के बिखरे पन्ने को समेटने की जरुरत है।
शाह ने स्कंदगुप्त के शासनकाल की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि हकीकत में उस समय मगध और वैशाली दो स्तंभ माने जाते थे। दोनों को एक भी स्कन्दगुप्त ने किया। स्कंदगुप्त के प्रराक्रम की जितनी प्रशंसा होनी चाहिए उतनी नहीं हुई। हुणों को रोकने का साहस स्कन्दगुप्त में ही था।
वो हुण जिनसे डर कर चीन तक ने चाइना वॉल खड़ी कर दी क्योंकि वो भी हूंणों के आक्रमण का प्रतिकार करने की क्षमता नहीं रखते थे। ऐसे में उस 40 फीट ऊंची दीवर से चीन तो हूंणों के आक्रमण से बच गया लेकिन यूरोपीय देश नहीं बच सके।
हुणों को देश से मुक्त कराने का पराक्रम स्कंदगुप्त ने दिखाया। हुणों को पहली बार विश्व में कहीं पराजय मिली तो वह भारत में स्कंदगुप्त के हाथों ही मिली। यही कारण है कि स्कंदगुप्त को महान सम्राट माना गया। तब चीन ने भी स्कंदगुप्त के लिए प्रशस्तिपत्र पाटलीपुत्र पहुंचाया।
शाह ने इतिहासकारों का आह्वान किया कि वो आगे आएं और नव इतिहास का सृजन करें। यह कार्य विश्वविद्यालयों में ही हो सकता है। मुझे खुशी होगी कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय इसका नेतृत्व करे। कहा कि भारतीय इतिहास के पुर्लेखन की बहुत जरूरत है ताकि बच्चे अपने गौरवशाली इतिहास को जान सकें। समझ सकें। अभी तो बच्चों को मालूम ही नहीं है कि स्कन्द गुप्त इतना बड़ा सम्राट था। हमारे पास गुप्त काल, मौर्य वंश, शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप जैसे प्रतापी राजाओं के संदर्भ ग्रंथ नहीं है। यह दुःखद है।
कहा कि पूर्वांचल के साथ स्कंदगुप्त का नाता रहा है। अब उसी क्षेत्र में यह संगोष्ठी हो रही है। स्कंदगुप्त के इतिहास को संकलित करने का जो प्रयास आज हो रहा है। वह बहुत जरूरी है।
गृहमंत्री ने अपने संबोधन की शुरुआत पंडित मदन मोहन मालवीय जी को नमन करते हुए की। उन्होंने कहा कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इस सभागार में संबोधन करना मेरे लिए गौरव की बात है। जब मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय के निर्माण की कल्पना की होगी तो किसी को नहीं मालूम कि उनके मन में क्या विचार रहे होंगे। परंतु इतने सालों के बाद यह जरूर दिखाई देता है कि इसने हजारों साल की हिन्दू संस्कृति को अक्षुण्ण रखने का काम किया है। यहां से जो शिक्षा की संस्कृति, शिक्षा का प्रचार, अनेक वह विषय जो लुप्त होने के कगार पर खड़े थे, उन विषयों का न सिर्फ प्रचार बल्कि उनकी पुनः प्राण प्रतिष्ठा इस विश्वविद्यालय ने ऐसे समय की जब इस देश, इस संस्कृति को इसकी जरूरत थी। सैकड़ों सालों की गुलामी के बाद अपराधबोध से युक्त अपने गौरव को दोबारा हासिल करने के लिए कोई व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता केवल एक विश्वविद्यालय ही कर सकता है। इसी बात को माप लेने की दूरदृष्टता महामना में थी और उन्होंने इसकी स्थापना की।
गृहंमंत्री से पहले सीएम योगी ने संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि कोई भी समाज जब अतीत के गौरवशाली इतिहास को विस्मृत करता है तो उसके सामने त्रिशंकु जैसी हालत होती है। महाभारत युद्ध के बाद भारत ने जो वैभव खोया था। उसे गुप्त वंश के समय दोबारा हासिल किया गया। कहा कि हमारे दो हजार साल के इतिहास को तोड़ मरोड़ को पेश करने की कोशिश हुई है।
जम्मू कश्मीर और धारा र370 का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि धारा 370 का हटना आजादी के बाद सबसे साहसिक निर्णय कहा जाएगा। जब इसे संविधान में लाया जा रहा था तब भी आंबेडकर ने इसका विरोध किया था। अब कश्मीर न सिर्फ विकास के रास्ते पर है बल्कि एक भारत श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना की जिस परिकल्पना को चंद्रगुप्त मौर्य और स्कंदगुप्त ने देखा था वह आज मोदी जी के नेतृत्व में पूरी हो रही है।
इस मौके पर केंद्रीय मंत्री डॉ महेंद्र नाथ पांडेय, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना के सचिव डॉ बाल मुकुंद पांडेय, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) के निदेशक प्रो पीके जैन, भारत अध्ययन केंद्र काशी हिंदू विश्वविद्यालय के शताब्दी पीठ आचार्य प्रो कमलेश दत्त त्रिपाठी समेत तमाम विद्वतजन मौजूद रहे। अध्यक्षता बीएचयू के कुलपति प्रो राकेश भटनागर ने की और संचालन भारत अध्ययन केंद्र के प्रमुख प्रो राकेश उपाध्यायन ने किया। बीएचयू की ओर से इस मौके पर अमित शाह को स्कंद गुप्त की कांस्य प्रतिमा और चांदी की तलवार भी भेंट की गई।