इस अमेरिकी विशेषज्ञ जो आर्किटेक्ट भी है और टाउन प्लानर भी। उन्होंने बनारस को काफी नजदीक से देखने, समझने की कोशिश की है। दो दिनों तक शहर का चप्पा-चप्पा छान मारा। पैदल भी घूमा शहर के व्यस्ततम इलाकों में। स्थानी अधिकारियों संग विचार विमर्श भी किया। अब तक लागू योजनाओं की जानाकरी हासिल की। उसके बाद जिले के आला अफसरों को कुछ सुझाव भी दिए।
अमेरिका के आर्किटेक्ट व प्रख्यात टाउन प्लानर माइकल किंग दो दिन बनारस में रहे। इस दौरान यहां के ट्रैफिक सिस्टम को अच्छी तरह जाना-परखा। माइकल किंग गुरुवार की रात ज्ञानवापी से मैदागिन तक पैदल घूमें। यहां की संकरी गलियों में भी गए। इस तरह से जाम से निबटने का तरीका खुद समझा। उसके बाद अफसरों को समझाया। उन्होंने अफसरों को जाम के कारण बताए, फिर समस्या से निबटने का सलीका बताया। उन्होंने कहा कि रेंगते हुए ट्रैफिक से जाम की समस्या का समाधान कभी नहीं निकल सकता। कहा कि जाम की समस्या से निबटने के लिए शहर के अलग-अलग हिस्सों के लिए अलग-अलग मोबिलिटी प्लान बनाना होगा।
माइकल ने स्मार्ट सिटी का काम देख रहे विशेषज्ञों के साथ बैठक की। उसमें बताया कि बनारस प्राचीन शहर है। यहां सड़कों व फुटपाथ की डिजाइन कॉस्मोपॉलिटन शहरों की तरह नहीं हो सकती। कहा कि सड़कों को चौड़ा करने की बजाए ट्रैफिक को चैनलाइज करना होगा, ताकि ट्रैफिक रूके नहीं। अलग-अलग रफ्तार के वाहनों को अलग-अलग सड़कों से गुजारना होगा।
माइकल ने स्पस्ट तौर पर कहा कि हर तरह के वाहन एक साथ एक ही रोड पर चलते रहेंगे तो सबसे धीमी रफ्तार से चलने वाले वाहन के बराबर ही सभी वाहनों को चलना होगा। इससे निजात पाना है तोवन-वे लूप बनाया जाय। साथ ही कुछ रास्तों को अलग-अलग समय पर नो ह्वीकल जोन घोषित किया जाए।
बता दें कि 1997-98 में शहर के ट्रैफिक सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए तत्कालीन मुख्य नगर अधिकारी हरदेव सिंह ने भी यह व्यवस्था लागू करने की कोशिश की थी। उन्होंने भी कहा था कि जब तक ट्रैफिक फास्ट नहीं होगा तब तक जाम की समस्या से निजात नहीं मिल पाएगा। लेकिन जब तक वह अपनी योजना को अपनी जामा पहना पाते उनका तबादला हो गया। उसके बाद वह योजना ठंडे बस्ते में डाल दी गई। अब अमेरिकी एक्सपर्ट ने हरदेव सिंह की लाइन को ही खींचने की कोशिश की है।