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फिर सियासी ताने-बाने में उलझीं मां गंगा

locationवाराणसीPublished: Mar 15, 2019 02:38:38 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

अब प्रियंका गांधी प्रयागराज से वाराणसी तक आएंगी मोटरबोट से, मोटर बोट से ही वह मां गंगा के मुद्दे पर उछालेंगी सवाल।

narandra modi and priyanka gandhi

narandra modi and priyanka gandhi

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. लोकसभा चुनाव आते ही मां गंगा फिर से सियासी ताने-बाने में उलझ गई हैं। बता दें कि 2014 में जब नरेंद्र मोदी बनारस आए थे तो उन्होने कहा था कि मुझे मां गंगा ने बुलाया है। मोदी इस बात को बार-बार दोहराते रहे हैं। लेकिन इन पांच सालों में मां गंगा का आंचल और भी मैला हुआ है। एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार मां गंगा का नाम लेते रहे। वहीं समूचा विपक्ष उनके उस बयान को लेकर उन पर हमला करता रहा। हालांकि इस दौरान अवजल शोधन के तमाम इंतजाम भी हुए। अब 2019 लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। कांग्रेस की ट्रम्प कार्ड प्रियंका गांधी पहली बार पूर्वी उत्तर प्रदेश के दौरे पर आ रही हैं। और उनका यह दौरा भी मां गंगा से जुड़ गया है। ऐसे में सियासी हल्कों में बहस तेज हो गई है कि इस बार भी मां गंगा सियासी ताने बाने में उलझ गई हैं।
मोदी ने 2015 में शुरू की नमामि गंगे परियोजना

वैसे बता दें कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मां गंगा के निर्मलीकरण के लिए नरेंद्र मोदी ने 2015 में अपना ड्रीम प्रॉजेक्ट नमामि गंगे लॉंच किया था तो इसकी डेडलाइन 2019 तय की गई थी। लेकिन पिछले साल केंद्रीय मंत्री ने इसकी डेडलाइन बढ़ाकर मार्च 2020 कर दी गई। वैसे गंगा की सफाई पर इन चार सालों में करीब 20 हजार करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। बनारस में ही गंगा में मलजल न गिरे इसके लिए तमाम योजनाएं शुरू की गईं। दीनापुर में एक अन्य एसटीपी का निर्माण शुरू हुआ, गोइठहां और रमना में भी एसटीपी के निर्माण की प्रक्रिया की प्रक्रिया शुरू हुई। यह दीगर है कि अभी तक इसकी जमीनी हकीकत सामने नहीं आई है।
बैक्टीरियल प्रदूषण उच्च होने से सामने आई धुंधली तस्वीर
संकट मोचन फाउंडेशन की गंगा लैब के आंकड़े बताते हैं कि गंगा में बैक्टीरियल प्रदूषण उच्च होने की वजह से इसकी धुंधली तस्वीर सामने आई है। शोध के अनुसार मुताबिक, पीने के पानी में कोलीफॉर्म ऑर्गनिज्म 50 एमपीएन/100 मिली या इससे कम होना चाहिए। वहीं नहाने के पानी में कोलीफॉर्म 500 एमपीएन प्रति 100 मिली होना चाहिए, जबकि बीओडी में यह 3 एमजी प्रति लीटर से कम होना चाहिए।
बैक्टीरिया की अधिक संख्या मानव स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटीः प्रो विश्वंभर नाथ
फाउंडेशन के आंकड़े बताते हैं कि गंगा नदी के जल में कोलीफॉर्म जनवरी 2016 में 4.5 लाख (अपस्ट्रीम) और 5.2 करोड़ (डाउनस्ट्रीम) से फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ और 14.4 करोड़ हो गया है। इसी तरह बीओडी लेवल भी जनवरी 2016 से फरवरी 2019 तक 46.8-54 एमजी/l से 66-78 एमजी/l हो गया है। फाउंडेशन के अध्यक्ष और आईआईटी बीएचयू प्रो विश्वंभर नाथ मिश्रा ने बताया, ‘गंगा जल में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की अधिक संख्या मानव स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है।’
राजीव गांधी की लाइन को आगे बढ़ाने की कोशिश में प्रियंकाः एके लारी, वरिष्ठ पत्रकार
ये प्रियंका गांधी की सियासत की अलग स्टाइल है। वह भीड़ से अलग छोटे-छोटे समूहों से कनेक्ट करती हैं। इसी के तहत उन्होंने प्रयागराज से वाराणसी तक की यात्रा के लिए गंगा का रास्ता चुना है। वह इस दौरान 18 से 20 मार्च तक रास्ते भर गंगा की मौजूदा हालात से परिचित होंगी। गंगा और गंगा किनारे के लोगों की हालत जानेंगी। इसके पीछे एक सोच पिता राजीव गांधी द्वारा 1986 में वाराणसी से शुरू गंगा सफाई अभियान से कनेक्टिविटी भी है। हालांकि जैसे नरेंद्र मोदी 2014 में गंगा पुत्र बन कर आए थे वैसे ही अब प्रियंका गंगा पुत्री की तरह आ रही हैं। प्रयागराज से काशी तक की यात्रा के बीच लोगों से फीडबैक लेने के बाद कांग्रेस इसे 2019 के चुनाव में बड़ा मुद्दा बना सकती है। वैसे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने अब तक गंगा पर सियासत ही की है ईमानदारी से काम किसी ने नहीं किया।
सरकारें कोई हों, जब तक हम खुद जागरूक नहीं होंगे गंगा निर्मलकरण की बात फिजूलः विनय सिंह, वरिष्ठ पत्रकार
सरकार चाहे जिसकी हो, कोई भी नेता हो, सियासत से गंगा स्वच्छ नहीं हो सकतीं। इसके लिए हमें खुद जागरूक होना होगा। पहले हम खुद गंगा में सीवेज या अन्य कचरा न गिराएं, अगर उसके बाद भी कचरा गिर रहा है तो संबंधित विभाग पर दबाव बनाएं। आज की तारीख में शोधन क्षमता 412 एमएलडी हो गई है जबकि 300 एमएलडी कचरा प्रतिदिन निकल रहा है। ऐसे में संबंधित कार्यदायी एजेंसियों पर दबाव बनाने की जरूरत है। आखिर जब हमरे पास पर्याप्त संसाधन हो गए तो फिर क्यों हो रहा प्रदूषण। जहां तक प्रदूषण का सवाल है तो फिलहाल तो जल स्वच्छ दिख रहा है अब टेक्निकली तो एक्सपर्ट ही बताएंगे कि क्या हालत है। लेकिन यहां भी संकट मोचन फाउंडेशन की गंगा लैब और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लैब के रिपोर्ट में अगर भारी अंतर है तो इसके पीछे के कारणों का भी पता लगाना होगा।
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