संकट मोचन फाउंडेशन की गंगा लैब के आंकड़े बताते हैं कि गंगा में बैक्टीरियल प्रदूषण उच्च होने की वजह से इसकी धुंधली तस्वीर सामने आई है। शोध के अनुसार मुताबिक, पीने के पानी में कोलीफॉर्म ऑर्गनिज्म 50 एमपीएन/100 मिली या इससे कम होना चाहिए। वहीं नहाने के पानी में कोलीफॉर्म 500 एमपीएन प्रति 100 मिली होना चाहिए, जबकि बीओडी में यह 3 एमजी प्रति लीटर से कम होना चाहिए।
फाउंडेशन के आंकड़े बताते हैं कि गंगा नदी के जल में कोलीफॉर्म जनवरी 2016 में 4.5 लाख (अपस्ट्रीम) और 5.2 करोड़ (डाउनस्ट्रीम) से फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ और 14.4 करोड़ हो गया है। इसी तरह बीओडी लेवल भी जनवरी 2016 से फरवरी 2019 तक 46.8-54 एमजी/l से 66-78 एमजी/l हो गया है। फाउंडेशन के अध्यक्ष और आईआईटी बीएचयू प्रो विश्वंभर नाथ मिश्रा ने बताया, ‘गंगा जल में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की अधिक संख्या मानव स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी है।’
ये प्रियंका गांधी की सियासत की अलग स्टाइल है। वह भीड़ से अलग छोटे-छोटे समूहों से कनेक्ट करती हैं। इसी के तहत उन्होंने प्रयागराज से वाराणसी तक की यात्रा के लिए गंगा का रास्ता चुना है। वह इस दौरान 18 से 20 मार्च तक रास्ते भर गंगा की मौजूदा हालात से परिचित होंगी। गंगा और गंगा किनारे के लोगों की हालत जानेंगी। इसके पीछे एक सोच पिता राजीव गांधी द्वारा 1986 में वाराणसी से शुरू गंगा सफाई अभियान से कनेक्टिविटी भी है। हालांकि जैसे नरेंद्र मोदी 2014 में गंगा पुत्र बन कर आए थे वैसे ही अब प्रियंका गंगा पुत्री की तरह आ रही हैं। प्रयागराज से काशी तक की यात्रा के बीच लोगों से फीडबैक लेने के बाद कांग्रेस इसे 2019 के चुनाव में बड़ा मुद्दा बना सकती है। वैसे कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ने अब तक गंगा पर सियासत ही की है ईमानदारी से काम किसी ने नहीं किया।
सरकार चाहे जिसकी हो, कोई भी नेता हो, सियासत से गंगा स्वच्छ नहीं हो सकतीं। इसके लिए हमें खुद जागरूक होना होगा। पहले हम खुद गंगा में सीवेज या अन्य कचरा न गिराएं, अगर उसके बाद भी कचरा गिर रहा है तो संबंधित विभाग पर दबाव बनाएं। आज की तारीख में शोधन क्षमता 412 एमएलडी हो गई है जबकि 300 एमएलडी कचरा प्रतिदिन निकल रहा है। ऐसे में संबंधित कार्यदायी एजेंसियों पर दबाव बनाने की जरूरत है। आखिर जब हमरे पास पर्याप्त संसाधन हो गए तो फिर क्यों हो रहा प्रदूषण। जहां तक प्रदूषण का सवाल है तो फिलहाल तो जल स्वच्छ दिख रहा है अब टेक्निकली तो एक्सपर्ट ही बताएंगे कि क्या हालत है। लेकिन यहां भी संकट मोचन फाउंडेशन की गंगा लैब और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लैब के रिपोर्ट में अगर भारी अंतर है तो इसके पीछे के कारणों का भी पता लगाना होगा।