वायु प्रदूषण की स्थिति गहराने संबंधीम्ब आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए प्रदेश में कार्यरत संस्था क्लाइमेट एजेंडा ने बनारस के 20 विभिन्न स्थानों पर वायु गुणवत्ता की निगरानी की। निगरानी में प्राप्त आंकड़ों के विश्लेषण के फलस्वरूप एक बार फिर सभी 20 स्थानों पर हुई निगरानी के दौरान प्राप्त हुए आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्वच्छता मानकों की तुलना में अत्यधिक खराब अवस्था में पाए गए।
वायु प्रदूषण के आंकड़ों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए क्लाइमेट एजेंडा की मुख्य अभियानकर्ता एकता शेखर ने पत्रिका को बताया कि दिवाली बाद के प्रदूषण स्तर के सन्दर्भ में बनारस शहर का डी एल डब्ल्यू क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रदूषित रहा, जहां पी एम 2.5 का स्तर 504 यूनिट पाया गया वहीं पी एम 10 का स्तर 711 यूनिट पाया गया. पी एम 2.5 और पी एम 10 का यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) के स्वच्छता मानकों की तुलना में 17 और 12 गुणा अधिक प्रदूषित है। शहर में दूसरे नंबर पर सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र लंका रहा जहां पी एम 2.5 और पी एम 10 का स्तर क्रमशः 424 और 630 यूनिट रहा जो कि डब्ल्यूएचओ के मानकों की तुलना में क्रमशः 14 गुणा और 10 गुणा अधिक प्रदूषित है।
एकता शेखर ने बताया कि डी एल डब्ल्यू और लंका क्षेत्र के बाद रविन्द्रपुरी तीसरे स्थान पर (पी एम 2.5 – 372, पी एम 10- 584), भोजुबीर चौथे स्थान पर (पी एम 2.5 – 342, पी एम 10- 487) और शिवपुर क्षेत्र पांचवे स्थान (पी एम 2.5 – 330, पी एम 10- 522) पर पाया गया।
वायु प्रदूषण के आंकड़ों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए क्लाइमेट एजेंडा की मुख्य अभियानकर्ता एकता शेखर ने पत्रिका को बताया कि दिवाली बाद के प्रदूषण स्तर के सन्दर्भ में बनारस शहर का डी एल डब्ल्यू क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रदूषित रहा, जहां पी एम 2.5 का स्तर 504 यूनिट पाया गया वहीं पी एम 10 का स्तर 711 यूनिट पाया गया. पी एम 2.5 और पी एम 10 का यह स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू एच ओ) के स्वच्छता मानकों की तुलना में 17 और 12 गुणा अधिक प्रदूषित है। शहर में दूसरे नंबर पर सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र लंका रहा जहां पी एम 2.5 और पी एम 10 का स्तर क्रमशः 424 और 630 यूनिट रहा जो कि डब्ल्यूएचओ के मानकों की तुलना में क्रमशः 14 गुणा और 10 गुणा अधिक प्रदूषित है।
एकता शेखर ने बताया कि डी एल डब्ल्यू और लंका क्षेत्र के बाद रविन्द्रपुरी तीसरे स्थान पर (पी एम 2.5 – 372, पी एम 10- 584), भोजुबीर चौथे स्थान पर (पी एम 2.5 – 342, पी एम 10- 487) और शिवपुर क्षेत्र पांचवे स्थान (पी एम 2.5 – 330, पी एम 10- 522) पर पाया गया।
सरकारी विभाग सोते रहे
उन्होंने बताया कि दिवाली से पहले से ही बढ़ते स्मॉग की परिस्थतियों को दिवाली पर हुई आतिशबाजी ने और बढ़ा दिया और शहर की आबोहवा की स्थिति चिंतनीय हो गयी. इस सन्दर्भ में राज्य प्रदूषण नियंत्रण विभाग की वाराणसी इकाई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति की आशंका पहले से होते हुए भी विभाग की ओर से कोई भी सलाह अथवा निर्देश नहीं जारी किये गए. पटाखों की बिक्री व जलाने के सन्दर्भ में किसी अनिवार्य निर्देश के अभाव में यह स्थिति पैदा हुई, और एक बार फिर यह साबित हुआ कि वायु प्रदूषण के गंभीर खतरों से बचने के लिए जिला प्रशासन के पास कोई भी ठोस योजना अब तक नहीं है.
चिकित्सक की राय
प्रदूषण स्तर का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे बताते हुए शहर के जाने माने सीओपीडी विशेसग्य और वरिष्ठ चिकित्सक डॉ आर एन वाजपेयी ने कहा “ बारूद, कोयला, डीजल, पेट्रोल और कचरा आदि के जलने से पी एम 2.5 कणों का निर्माण होता है, जबकि शहर में लगातार उड़ रही धुल से पी एम 10 कण बनते हैं. ये दोनों ही कण मानव स्वास्थ्य पर बहुत ही खराब प्रभाव डालते हैं। एक तरफ जहां पी एम 2.5 श्वसन प्रक्रिया के माध्यम से हमारे फेफड़े पर सीधा हमला करता है जिससे हार्ट अटैक, उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक आदि का खतरा पैदा होता है। वहीं दूसरी ओर पी एम 10 कणों से त्वचा की बीमारियां, एलर्जी आदि रोग बढ़ते हैं। पहले से बीमार लोगों को और ज्यादा प्रभावित करने के साथ साथ वायु प्रदूषण का यह स्तर उन बच्चों और बूढों को भी अत्यधिक प्रभावित करता है जो पहले से किसी स्वास्थ्य समस्या से ना भी जूझ रहे हों। उन्होंने बताया कि दिवाली के दौरान हुई अनियंत्रित आतिशबाजी ने शहर के अन्दर स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति का निर्माण कर दिया है और शहर के लगभग सभी अस्पताल सी ओ पी डी मरीजों से भरे पड़े हैं।” डॉ वाजपेयी ने यह मांग की कि शहर के लिए जिला प्रशासन को जल्द ही एक स्वच्छ हवा योजना का निर्माण करना चाहिए और उसका अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
उन्होंने बताया कि दिवाली से पहले से ही बढ़ते स्मॉग की परिस्थतियों को दिवाली पर हुई आतिशबाजी ने और बढ़ा दिया और शहर की आबोहवा की स्थिति चिंतनीय हो गयी. इस सन्दर्भ में राज्य प्रदूषण नियंत्रण विभाग की वाराणसी इकाई की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि वायु प्रदूषण की वर्तमान स्थिति की आशंका पहले से होते हुए भी विभाग की ओर से कोई भी सलाह अथवा निर्देश नहीं जारी किये गए. पटाखों की बिक्री व जलाने के सन्दर्भ में किसी अनिवार्य निर्देश के अभाव में यह स्थिति पैदा हुई, और एक बार फिर यह साबित हुआ कि वायु प्रदूषण के गंभीर खतरों से बचने के लिए जिला प्रशासन के पास कोई भी ठोस योजना अब तक नहीं है.
चिकित्सक की राय
प्रदूषण स्तर का मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के बारे बताते हुए शहर के जाने माने सीओपीडी विशेसग्य और वरिष्ठ चिकित्सक डॉ आर एन वाजपेयी ने कहा “ बारूद, कोयला, डीजल, पेट्रोल और कचरा आदि के जलने से पी एम 2.5 कणों का निर्माण होता है, जबकि शहर में लगातार उड़ रही धुल से पी एम 10 कण बनते हैं. ये दोनों ही कण मानव स्वास्थ्य पर बहुत ही खराब प्रभाव डालते हैं। एक तरफ जहां पी एम 2.5 श्वसन प्रक्रिया के माध्यम से हमारे फेफड़े पर सीधा हमला करता है जिससे हार्ट अटैक, उच्च रक्तचाप, स्ट्रोक आदि का खतरा पैदा होता है। वहीं दूसरी ओर पी एम 10 कणों से त्वचा की बीमारियां, एलर्जी आदि रोग बढ़ते हैं। पहले से बीमार लोगों को और ज्यादा प्रभावित करने के साथ साथ वायु प्रदूषण का यह स्तर उन बच्चों और बूढों को भी अत्यधिक प्रभावित करता है जो पहले से किसी स्वास्थ्य समस्या से ना भी जूझ रहे हों। उन्होंने बताया कि दिवाली के दौरान हुई अनियंत्रित आतिशबाजी ने शहर के अन्दर स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति का निर्माण कर दिया है और शहर के लगभग सभी अस्पताल सी ओ पी डी मरीजों से भरे पड़े हैं।” डॉ वाजपेयी ने यह मांग की कि शहर के लिए जिला प्रशासन को जल्द ही एक स्वच्छ हवा योजना का निर्माण करना चाहिए और उसका अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।