scriptकरवाचौथ पर इन गांव में मौत की दहशत, करवा का चांद भी नहीं बचा पाता है सुहाग, अब तक एक हजार से अधिक हुईं विधवा, पढ़िये दर्दभरी सच्ची कहानी | Untold story of 1000 widow women on Karwa Chauth latest news | Patrika News

करवाचौथ पर इन गांव में मौत की दहशत, करवा का चांद भी नहीं बचा पाता है सुहाग, अब तक एक हजार से अधिक हुईं विधवा, पढ़िये दर्दभरी सच्ची कहानी

locationआगराPublished: Oct 15, 2019 06:02:02 pm

करवाचौथ का चांद भी नहीं बचा पाता सुहागइन गांव में मौत की दहशत क्यों है?पुरुषों की उम्र औसतन 40 से 45 वर्षपुरुषों की अपेक्षा इन गांव में महिलाओं की संख्या है अधिकसिलोकोसिस नाम की बीमारी ले रही जान

करवा चौथ पर इन गांव में मौत की दहशत, करवा का चांद भी नहीं बचा पाता है सुहाग, अब तक एक हजार से अधिक हुईं विधवा, पढ़िये दिल दहला देने वाली ये सच्ची कहानी

करवा चौथ पर इन गांव में मौत की दहशत, करवा का चांद भी नहीं बचा पाता है सुहाग, अब तक एक हजार से अधिक हुईं विधवा, पढ़िये दिल दहला देने वाली ये सच्ची कहानी

धीरेन्द्र यादव


आगरा। महिलाएं करवाचौथ का चांद देखकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। पूरे दिन निर्जल व्रत रहकर चलनी से पहले चांद और फिर पति का चेहरा देखकर व्रत खोलती हैं। मां करवा से सदा सुहागन का वरदान मांगती हैं। इस व्रत की मान्यता बहुत अधिक है, लेकिन आज जो हम आपको बताने जा रहे हैं, उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। हम आपको एक दो नहीं, बल्कि ऐसे दर्जनों गांव की कहानी बताने जा रहे हैं, जहां करवाचौथ का चांद भी महिलाओं की मांग का सिंदूर नहीं बचा पाता है। ये गांव हैं ब्लॉक जगनेर के, जहां पत्थर खदान का काम होता है।
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इन गांव की है ये कहानी
ये कहानी है ब्लॉक जगनेर के धारा, चोंचा, किकरावली, सोनी खेड़ा, बड़गवां बुर्ज, मुगावत, बसई जगनेर, नयागांव, नौनी की। ये ऐसे गांव हैं, जहां पत्थर खदान का काम होता था। हाल में तो सरकार द्वारा लगाई गई रोक के बाद यहां काम बंद है, लेकिन यहां के गरीब लोगों को सिर्फ पत्थर के कार्य में महारत हासिल है, जिसके चलते ये यहां से पलायन कर, दूसरे स्थानों पर पत्थर खदान का काम करने जा रहे हैं। इन गांव की बात करें, तो इन गांव में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या अधिक है। कारण है कि यहां पुरुष की औसतन आयु 40 से 45 वर्ष के बीच की है। कुछ अन्य पुरुष जो इससे अधिक आयु को पार करते हैं, वो किसी अन्य रोजगार के होते हैं।
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हर गरीब घर में उजड़ा हुआ मांग का सिंदूर
इन गांव की बात करें, तो शायद ही ऐसा कोई घर है, जहां विधवा महिला न हो। ये आलम अधिकतर गरीब घरों का है। ग्राम रोजगार सेवक कल्याण सिंह ने बताया कि जगनेर ब्लॉक की बात करें, तो यहां विधवा महिलाओं की संख्या एक हजार का आंकड़ा पार करती है। उन्होंने बताया कि सिर्फ बसई ग्राम पंचायत में 115 विधवा महिलाएं पेंशन ले रही हैं, इनके अलावा 50 के लिए प्रस्ताव भेजा हुआ। करीब 150 और भी विधवाएं महिलाएं हैं।
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छोटी सी उम्र में हुईं विधवा
यहां की रहने वाली राजो ने बताया कि उनके पति की मृत्यु चार वर्ष पूर्व हुई। उस दौरान पति की उम्र करीब 37 वर्ष थी। पति पत्थर खदान का काम करते थे। देवर भगत भी पत्थर खदान में काम करते थे। दोनों की तबियत कई महीनों तक खराब रही। डॉक्टरों ने बताया कि टीबी है। इलाज हुआ, खाट पर रहे और बाद में मृत्यु हो गई। वहीं यहां की रहने वाली किशनदेवी ने बताया कि उनके पति की मृत्यु शादी के 10 वर्ष बाद हो गई थी। पति पत्थर खदान का काम करते थे। उनको डॉक्टर ने टीबी की बीमारी बताई थी, लंबे इलाज के बाद उनकी मृत्यु हो गई।
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क्या है मौत का कारण
इन गांव में मौत की दहशत क्यों है। क्या टीबी की बीमारी से लोग मर रहे हैं, या कारण कुछ और है। जब इस बारे में हमने उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा से बात की, तो उन्होंने बताया कि दरअसल पत्थर खदान में काम करने वाले इन श्रमिकों को सिलोकोसिस नाम की बीमारी होती है। सिलिका कणों और टूटे पत्थरों की धूल की वजह से सिलिकोसिस होती है। धूल सांस के साथ फेफड़ों तक जाती है और धीरे-धीरे यह बीमारी अपने पांव जमाती है। यह खासकर पत्थर के खनन, रेत-बालू के खनन, पत्थर तोड़ने के क्रेशर में कार्य करने वाले श्रमिकों को होती है। राजस्थान में सिलोकोसिस बोर्ड बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में इस बोर्ड के लिए मांग की जा रही है। सरकार से मांग ये भी की गई है कि तांतपुर में इन श्रमिकों के लिए अस्पताल बनाया जाए। इस मांग को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन सुनवाई नहीं हो रही है।
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