13 बार भूमिहार जाति से बने सांसद
सबसे पहले 1952 में हुए चुनावों में अलगू राय शास्त्री ने यहां से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की थी। 1957 में घोसी लोकसभा क्षेत्र बनने के बाद सबसे पहले हुए आम चुनावों में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट से उमराव सिंह ने जीत दर्ज की। परंतु उसके बाद हुए चुनाव लगातार 1962 से 1998 तक कुल 11 बार सिर्फ और सिर्फ भूमिहारों के कब्जे में ही यह सीट रही। राजनीतिक पार्टियां भले बदलीं, प्रत्याशी भले बदले लेकिन कब्जा भूमिहार जाति का ही रहा। सवर्ण मतदाताओं में सबसे ज्यादा संख्या राजपूत मतदाताओं की रही, पर उनके हिस्से ये सीट केवल एक बार आई जब 1957 में उमराव सिंह ने यहां से जीत दर्ज की। 2019 से सपा बसपा गठबंधन से एक बार फिर एक भूमिहार ने ताल ठोकी और जीत कर अपनी जाति का परचम लहराया।जहां इस सीट पर कुल 13 बार भूमिहारों का यहां पर कब्जा रहा है वहीं 2 बार चौहान और 2 बार राजभर प्रत्याशियों ने भी यहां से जीत दर्ज की है। घोसी लोकसभा में कुल 20 लाख मतदाता हैं। इनमे से 5 लाख दलित मतदाता , साढ़े तीन लाख मुस्लिम मतदाता, 2 लाख 50 हजार यादव, 2 लाख 30 हजार चौहान,2 लाख राजभर,1 लाख वैश्य तो इतने ही मौर्या जाति के मतदाता भी हैं।सवर्णों में सबसे ज्यादा राजपूत लगभग 1 लाख, 80 हजार भूमिहार तो वहीं इतने ही ब्राह्मण मतदाता भी हैं।