scriptबलरामपुर में विश्वविद्यालय निर्माण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के बाद हाईकोर्ट में दायर दूसरी याचिका भी हुई खारिज | Balrampur news | Patrika News
यूपी न्यूज

बलरामपुर में विश्वविद्यालय निर्माण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के बाद हाईकोर्ट में दायर दूसरी याचिका भी हुई खारिज

बलरामपुर में शक्तिपीठ मां पाटेश्वरी देवी के नाम से बनने वाले राज्य विश्वविद्यालय की विधिक बाधाएं समाप्त हो गई हैं। जिला प्रशासन की मेहनत रंग लाई। जिससे विश्वविद्यालय बनने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में दायर दोनों याचिकाएं खारिज हो गई हैं।

बलरामपुरApr 17, 2024 / 12:52 pm

Mahendra Tiwari

जिलाधिकारी बलरामपुर अरविंद सिंह

बलरामपुर में विद्यालय निर्माण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दिया था। अब हाई कोर्ट में दायर दूसरी याचिका मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली बेंच ने जिला मजिस्ट्रेट एवं शासन के तर्कों को सही ठहराते हुए खारिज कर दी।
बलरामपुर में शक्तिपीठ मां पाटेश्वरी देवी के नाम से बनने वाले राज्य विश्वविद्यालय की विधिक बाधाएं समाप्त हो गई हैं। जिला प्रशासन की मेहनत रंग लाई। जिससे विश्वविद्यालय बनने का रास्ता साफ हो गया है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में दायर दोनों याचिकाएं खारिज हो गई हैं।
विश्वविद्यालय का निर्माण बलरामपुर के बजाय मंडल मुख्यालय के जनपद में हो इसको लेकर योजित की गई दूसरी याचिका उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी है। अब विश्वविद्यालय बलरामपुर में ही बनेगा इसका रास्ता एकदम साफ हो गया है। बताते चले कि विश्वविद्यालय बलरामपुर के बजाय मंडल मुख्यालय के जिले में बने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पहले ही खारिज हो चुकी है। जिला मजिस्ट्रेट ने इस मामले में प्रभावी कानूनी विशेषज्ञों एवं स्वयं के विवेक से न्यायालय में तथ्यों के साथ दमदार पैरवी की। जिसके परिणाम स्वरुप न्यायालय का सुखद फैसला बलरामपुर के हक में आया है। अब विश्वविद्यालय बलरामपुर में ही बनेगा।
इन तथ्यों के साथ सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय में हुई पैरवी, मिला हक

उच्च न्यायालय में जिला मजिस्ट्रेट अरविन्द सिंह ने कानूनी बिंदुओं और भौतिक तथ्यों के आधार पर मां पाटेश्वरी देवी विश्वविद्यालय बलरामपुर का बचाव करते हुए एक बहुत ही तीखा तर्क दायर किया गया। जिसमें यह तथ्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि संविधान के तीन अंग कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका अच्छी तरह से स्थापित संवैधानिक सिद्धांत, जनादेश और तीन विंगों की सीमाओं को परिभाषित करते हैं। एक क़ानून जब तक कि वह संविधान के किसी भी प्रावधान के दायरे से बाहर न हो, रिट कोर्ट की समीक्षा का विषय नहीं हो सकता। दिसंबर 2023 में इसे प्रभावी बनाने के लिए यूपी विधानसभा ने एक कानून संशोधित किया गया था। इसी प्रकार कार्यकारी सार्वजनिक नीति न्यायपालिका का क्षेत्र नहीं है। जब तक कि नीति संविधान के किसी प्रावधान के दायरे से बाहर न हो या इसमें किसी गलत इरादे की बू न आती हो। यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ। जिला प्रशासन ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि भारत संघ की सार्वजनिक नीति के अनुसार, बलरामपुर एक आकांक्षी जिला है। रजिस्ट्रार की नियुक्ति के बाद विश्वविद्यालय अब एक पूर्ण उपलब्धि बन गया है।
बलरामपुर प्रशासन का तर्क तीनों जनपदों के मध्य बांध विश्वविद्यालय

उच्च शिक्षा का अधिकार संविधान या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी केस कानून के अनुसार मौलिक अधिकार Fundamental Right नहीं है। इसलिए यह रिट सुनवाई योग्य नहीं है। क्योंकि यह याचिकाकर्ता के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई अधिकार नहीं है। तथा यह एक जनहित याचिका नहीं बल्कि एक निजी हित याचिका है। जिला मजिस्ट्रेट एवं जिला प्रशासन ने कहा कि जिले में माँ पाटेश्वरी देवी राज्य विश्वविद्यालय, बलरामपुर के निर्माण स्थल से जनपद गोण्डा की सीमा की दूरी लगभग 5 किमी एवं जनपद श्रावस्ती की सीमा की दूरी लगभग 14 किलोमीटर है। क्रमशः लगभग 5 मिनट में गोण्डा बार्डर एवं 15 मिनट में श्रावस्ती बार्डर स्थित है। इस प्रकार देवी पाटन मण्डल में स्थापित किया जा रहा राज्य विश्वविद्यालय, मण्डल के अन्य तीनों जनपदों के मध्य में होने के साथ-साथ उनसे निकटतम जुड़ा हुआ है। इसलिए विपक्षियों ने सस्ती लोकप्रियता के लिए याचिका दायर की गई है। जो कि निरस्त किये जाने योग्य है। इसी आधार पर एक अधिवक्ता ने विश्वविद्यालय जनपद बलरामपुर के बजाय मंडल मुख्यालय के जनपद में बने, जिसको लेकर सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय में योजित दोनों याचिकाएं खारिज हो गईं हैं।

Home / UP News / बलरामपुर में विश्वविद्यालय निर्माण को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट के बाद हाईकोर्ट में दायर दूसरी याचिका भी हुई खारिज

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो