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उज्जैन

विश्व गौरैया दिवस: घर से दूर होती जा रही हमारी चिडिय़ा

कम हो रही गौरैया की चहचहाटआज से लगभग 15 साल पहले तक नन्ही सी चिडिय़ा गौरैया सुबह सवेरे ची-ची, चूं-चूं करती दिखाई दे जाती थी, लेकिन आज लोग इसकी आवाज तक सुनने को तरस रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में यह चिडिय़ा बड़ी संख्या में पाई जाती थी, लेकिन खेतों में रसायनिक दवाओं के उपयोग के कारण यह चिडिय़ा बेमौत मरने लगी।

उज्जैनMar 19, 2022 / 06:32 pm

anil mukati

विश्व गौरैया दिवस: घर से दूर होती जा रही हमारी चिडिय़ा

कम हो रही गौरैया की चहचहाट

अनिल मुकाती
उज्जैन. भारत समेत विश्वभर में इस प्रजाति की चिडिय़ा की संख्या में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ही गौरैया की आबादी में करीब 70 फीसदी की गिरावट आई है। धरती से किसी भी पक्षी या जीव-जंतु का लुप्त होना भोजन श्रखला पर भी बड़ा असर डालता है, ऐसे में किसी एक पक्षी या जीव के लुप्त होने से मानव जीवन के साथ ही पृथ्वी पर भी गहरा संकट मंडरा सकता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। 20 मार्च को गौरैया दिवस मनाए जाने का मुख्य उद्देश्य गौरैया पक्षी का संरक्षण करना और इन्हें लुप्त होने से बचाना है, ताकि भविष्य में यह एक इतिहास का पक्षी बनकर ना रह जाए।

यह है गौरैया

गौरैया का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस है। यह पासेराडेई परिवार का हिस्सा है। इसे हाउस स्पैरो या घरेलू चिडिय़ा भी कहते हैं। यह 15 सेंटीमीटर की होती है। इसका अधिकतम वजन 32 ग्राम तक होता है। यह कीड़े और अनाज खाकर अपना जीवनयापन करती है।

ये बन रहे पक्षीराजन

रोज सुबह छत पर रखते हैं पानी और दाना

वेदनगर निवासी बबीता पाटीदार अपने घर की छत पर सकोरे में पक्षियों के लिए नियमित रूप से पानी और दाना रखती हैं। उनके इस काम में पुत्र डुग्गु और रिदम भी उनकी मदद करते हैं। बबीता का कहना है कि पक्षियों के लिए हम कम से कम इतना तो कर ही सकते हैं। साथ ही पड़ोसियों और रिश्तेदारों को भी पक्षियों के लिए दाना-पानी रखने के लिए कहते हैं, ताकी भीषण गर्मी में पानी के लिए पक्षियों को भटकना ना पड़े।

नियम बन गया है पक्षियों को पानी पिलाना

विवेकानंद कॉलोनी निवासी सौम्या जोशी बताती हैं कि वे रोजाना ही घर के बाहर सकोरे में पानी भरकर रखती हैं। जब पक्षी वहां आकर पानी पीते हैं तो उन्हें देखकर काफी सुकून महसूस होता है। अपने दोस्तों को भी घर पर पक्षियों के लिए दाना-पानी का इंतजाम करने के लिए कहते हैं। इसके अलावा पौधे भी लगाते हैं, जहां पक्षी अपना घौंसला बना सके।

बहुत अच्छा लगता है पक्षियों को पानी पीते देखकर

विवेकानंद कॉलोनी निवासी अंजली श्रीवास्तव को पक्षियों को पानी पिलाने में बहुत आनंद आता है। वे रोजाना सुबह उठकर सबसे पहले सकोरे में पानी भरकर रखती हैं। साथ ही गेहूं और ज्वार के दाने में रखती है।
ये प्रयास भी

श्रद्धालु ने बनाया पक्षी घर

मंगलनाथ मंदिर परिसर में गुजरात के एक श्रद्धालु ५१ फीट ऊंचा पक्षी घर बनाया है। इस पक्षी घर में करीब ३५० घौसले बन सकते हैं। यहां पर मंदिर के पुजारियों की ओर से रोजाना दाना और पानी डाला जाता है। पक्षीघर बनने से यहां पक्षियों का बसेरा हो गया है। सुबह शाम उनकी चहचहाट से श्रद्धालुओं को आनंद की अनुभूति होती है।

नगर निगम ने पार्क में किया इंतजाम

नगर निगम ने भी कोठी रोड पर स्थित पार्क में पक्षियों के लिए पानी और दाना रखने के लिए एक विशेष प्रकार के लकड़ी के घर बनाए हैं। इनमें नगर निगम के साथ ही समाजसेवी लोग भी पानी और दाना रखकर जाते हैं।

लोक अदालत में बांटे सकोरे और अनाज

पक्षियों के लिए विभिन्न सामाजिक संगठन और महिला मंडल काम कर रहे हैं। ये संगठन विभिन्न आयोजनों को लोगों को सकोरे भेंट करते हैं। इसी प्रकार १२ मार्च को आयोजित नेशनल लोक अदालत के दौरान जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से लोगों को सकोरे और अनाज उपलब्ध करवाया गया।

इसलिए घट रही गौरैया की सख्या
भोजन-पानी की कमी: गौरैया अनाज और कीड़े-मकोड़े खाती है, जो पहले तालाब और खेतों में आसानी से मिल जाया करते थे। लेकिन खेतों में रसायनिक दवा और गर्मी में जलाशय सूखने के कारण पक्षी को उसकी खुराक नहीं मिल पाती।
रहने के लिए जगह नहीं: गौरैया घरेलू पक्षी है। इसलिए यह चिडिय़ा इंसानों के आसपास ही घौंसला बनाती है, लेकिन कई लोग घौंसलों को उजाड़ देते हैं।
वृक्षों की कमी: तेजी से कटते जंगल और शहरों और गांवों में पेड़ों की कमी के कारण चिडिय़ा के लिए प्राकृतिक आवास तथा वातावरण में कमी आ रही है।
वायु प्रदूषण: बढ़ता वायु प्रदूषण भी इन पंछियों के लिए मुसीबत बन रहा है। आसमान में उड़ान के दौरान ये प्रदूषित हवा के संपर्क में आते हैं। कई जानलेवा प्रदूषक इनके शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते है, और कुछ पक्षी प्रदूषित हवा में सांस ना ले पाने के कारण दम तोड़ देते हैं।
रेडिएशन: मोबाइल रेडिएशन पक्षियों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। मोबाइल टॉवरों से निकली रही हानिकारक तरंगें इंसानों सहित पशु-पक्षियों पर काफी गहरा और बुरा असर डाल रही है। तरंगों के कारण गौरैया की प्रजनन क्षमता पर भी असर हुआ है। इस कारण इनकी जनसंख्या नहीं बढ़ रही।
गौरैया संरक्षण के उपाय
गौरैया संरक्षण के लिए हम अपनी छत पर दाना-पानी रखें, अधिक से अधिक पेड़- पौधे लगाएं, उनके लिए कृत्रिम घोंसलों का निर्माण करें। गौरैया आपके घर के किसी कोने में घौंसला बनाती है तो उसे तोड़े नहीं, दूसरों को गौरैया संरक्षण के प्रति जागरूक करें।

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