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व्यवस्थित खेल मैदान तक नहीं दिला पाए जिम्मेदार….

locationउज्जैनPublished: Nov 22, 2018 01:06:16 pm

Submitted by:

Lalit Saxena

चुनावी परीक्षा पास होने के लिए इस बार फिर राजनीतिक दल और प्रत्याशी खिलाडि़यों की चिंता का पाठ रट रहे हैं लेकिन…

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आशीष एस. सक्सेना@उज्जैन. दशहरा मैदान, क्षीरसागर, नानाखेड़ा स्टेडियम… कहने को खिलाड़ी तैयार करने की कर्म भूमि है, लेकिन जिम्मेदारों ने इनकी चिंता पाली है तो सिर्फ धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक या सरकारी आयोजनों के लिए। कभी किसी ने खिलाडि़यों के लिए इन्हें तैयार करने का ठोस प्रयास नहीं किया। अब तक सिर्फ जरूरत समझने, वादे करने और कागजी योजनाएं तैयार करने तक ही प्रयासों का दायरा सिमटा है। चुनावी परीक्षा पास होने के लिए इस बार फिर राजनीतिक दल और प्रत्याशी खिलाडि़यों की चिंता का पाठ रट रहे हैं लेकिन वाकई खिलाडि़यों की सुविधा के लिए कार्य होंगे, पुराने कड़वे अनुभवों ने इस पर प्रश्न चिह्न लगा रखा है।

संभागीय मुख्यालय होने के बावजूद शहर में एक भी व्यवस्थित खेल मैदान या सुविधायुक्त खेल स्टेडियम नहीं है। खेल क्षेत्र में मूलभूत जरूरत की यह मुख्य कमी तब है, जब शहर में न सिर्फ खेल मैदान तैयार करने के लिए खाली जमीनें हैं बल्कि कुछ इसके लिए आरक्षित तक हैं। विभिन्न विधाओं के खिलाड़ी लंबे समय से स्टेडियम व व्यवस्थित खेल मैदान की मांग रहे हैं बावजूद जिम्मेदारों ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इसके विपरीत विभिन्न कार्यक्रमों के लिए जरूर मैदानों को तैयार करने के लिए जरूर हर साल लाखों रुपए खर्च किए गए। इतना ही नहीं कार्यक्रमों के लिए मैदानों की हालत तक खराब करने में कमी नहीं छोड़ी गई है। नतीजतन जिम्मेदारों की नजरअंदाजी के चलते अब भी शहर में खेल मैदान और स्टेडियम की दरकार बनी हुई है।

दावे और मैदानों की हकीकत
नानाखेड़ा स्टेडियम
उज्जैन विकास प्राधिकरण की नानाखेड़ा स्थित करीब २२ एकड़ रिक्त भूमि पर सर्वसुविधायुक्त राष्ट्रीय स्तर का खेल स्टेडियम बनाने की योजना है। इसके लिए पूर्व में प्रस्ताव तैयार होने के साथ ही कुछ महीने पहले भी मय ड्राइंग डिजाइन ५५ करोड़ ८९ लाख रुपए का प्रस्ताव दिया गया था। तब राशि की कमी नहीं आने देने और आवश्यक कार्रवाई का आश्वासन दिया लेकिन परिणाम अभी भी सिफर ही है। राजनीतिक खींचतान में योजना कागजों से बाहर नहीं आ सकी। स्टेडियम की जमीन खेल की जगह धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक कार्यक्रम और सभाओं के उपयोग में आ रही है। वर्तमान में यह स्थान बदतर स्थिति में वीरान पड़ा है।

स्पोट्र्स एरिना
महानंदा नगर में स्पोट्र्स एरिना बनाया गया है। खेल विभाग की ओर से इसका संचालन किया जाता है, इसके बावजूद अपेक्षित सुविधाएं नहीं हैं। यहां रनिंग ट्रेक पर राख बिछाई जाती है। जनवरी बाद से मैदान में धूल उडऩे की समस्या शुरू हो जाती है, जिससे खिलाडि़यों को श्वास संबंधी समस्या होने लगती है। जून से बारिश का मौसम शुरू होने के कारण अक्टूबर तक पानी भराव व कीचड़ होने से खिलाड़ी पूरी तरह मैदान का उपयोग नहीं कर पाते।

क्षीरसागर
नगर निगम ने क्षीरसागर स्टेडियम को थोड़ा विकसित किया है। यहां कुश्ती एरिना, मंच, दर्शक दीर्घा आदि का निर्माण किया है। इससे थोड़ी सुविधा बढ़ी है लेकिन फिर भी यह स्टेडियम इस मानक स्तर का नहीं है कि यहां राष्ट्रीय स्तर की व्यवस्थित प्रतियोगिता हो सकें। शाम के बाद यहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लग जाता है।

दशहरा मैदान
दशहरा मैदान व्यवस्थित खुली जगह है, लेकिन इसे व्यवस्थित खेल मैदान के रूप में विकसित नहीं किया गया। यहां न बाउंड्रीवॉल है और नहीं खिलाडि़यों के अन्य आवश्यक सुविधा। निजी खेल एसोसिएशन ने अपने स्तर पर कुछ इंतजाम जुटा रखे हैं। इस मैदान ने कई अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी दिए हैं, लेकिन १५ अगस्त, २६ जनवरी या अन्य आयोजनों के दौरान मैदान में चूरी बिछा दी जाती है। इससे खिलाड़ी घायल हो जाते हैं और कई दिनों तक प्रैक्टिस नहीं कर पाते हैं। इसके अलावा इस मैदान का उपयोग कार ड्राइविंग सीखने में भी होता है।

माधव कॉलेज
माधव कॉलेज शहर के पुराने खेल मैदानों में से एक है इसके बावजूद इसकी स्थिति खासी खराब है। बारिश में यहां एक-डेढ़ फीट तक पानी जमा रहता है। इसका उपयोग करने के लिए खिलाडि़यों को कुछ महीने ही मिलते हैं।

यूनिवर्सिटी ग्राउंड
देवासरोड पर स्थित यूनिवर्सिटी ग्राउंड भी उपेक्षा का शिकार है। लाखों रुपए खर्च कर यहां खिलाडि़यों के लिए कक्ष, दर्शक दीर्घा आदि का निर्माण किया गया था। रखरखाव की कमी के कारण कक्ष खुले पड़े रहते हैं और इनका अवैध कार्यों में अधिक उपयोग होता है। यहां चारों ओर गंदगी फैली रहती हैं। ग्राउंड में न बाउंड्रीवॉल है न खेल विशेष के लिए पर्याप्त सुविधाएं।

पॉलीटेक्निक कॉलेज
देवासरोड स्थित पॉलीटेक्निक कॉलेज का ग्राउंड है। हाल में यहां लाखों रुपए खर्च कर चेंजिंग रूम, दर्शक दीर्घा आदि का निर्माण किया गया है। प्रयास यह भी किया गया था कि इसे महिला खिलाडि़यों के लिए आरक्षित रखा जाएगा, लेकिन यह योजना पूरी तरह साकार नहीं हो सकी। खेल मैदान पर सुविधाओं की कमी है वहीं इसका पर्याप्त उपयोग नहीं हो रहा है।

सुविधाओं के अभाव में खिलाड़ी
ज्यादातर खेल मैदानों पर स्वच्छ सुविधाघरों की कमी है।
खेल मैदानों पर पेयजल व सादे पानी की व्यवस्थाएं नहीं होती है।
ज्यादातर खेल मैदानों पर खिलाडि़यों के लिए विश्राम या चेंजिंग रूम की कमी हैं। इससे महिला खिलाड़ी अधिक परेशान होती हैं।
व्यवस्थित खेल मैदानों की कमी के कारण कई निजी एसोसिएशन उद्यानों में खिलाडि़यों को प्रैक्टिस करवाने को मजबूर हैं।
इनडोर गेम्स में उज्जैन के खिलाडि़यों के काफी नाम कमाया है लेकिन इसमें भी सुविधाओं की कमी है। बैडमिंटन के लिए गिनती के कोर्ट ही उपलब्ध हैं और खिलाडि़यों को प्रैक्टिस के लिए कम समय मिलता है। कई बार घंटों इंतजार तक करना पड़ता है।

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