विदेशों में रिसर्च से जूलॉजी की तीन पीढ़ी का डंका
विक्रम विश्वविद्यालय के जूलॉजी विभाग के पूर्व एचओडी हर्ष स्वरूप ने ऑक्सफोर्ड विवि से रिसर्च किया और अपनी प्रतिभा का लोहा मनाया। इसके बाद विभाग की दो पीढ़ी विदेशी भूमि पर अपनी प्रतिभा को साबित कर चुकी हैं और रिसर्च के क्षेत्र में भारत का नाम रोशन कर रही है।
मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के दावेदार रहे
हर्षस्वरूप – आज जूलॉजी विभाग में प्रवेश के साथ ही इनकी प्रतिभा नजर आती है। इन्होंने वर्ष २०१२ में मेडिसिन के क्षेत्र में नोबेल विजेता जॉन गुर्डन के साथ काम किया। यह भी नोबेल पुरस्कार के लिए प्रबल दावेदार थे, लेकिन इस समय तक इनका निधन हो गया। इनके दर्जनों विद्यार्थी शिक्षा और साइंस के क्षेत्र में नाम कमा चुके हैं।
देश-विदेशों में शोध
एमएस परिहार – विक्रम विवि के जूलॉजी विभाग के वर्तमान एचओडी एमएस परिहार वर्तमान में वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में उम्र और उम्र से संबंधित बीमारी से संबंधित रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं। कुछ दिन पूर्व ही हावर्ड व अन्य यूनिवर्सिटी में व्याख्यान हुए हैं। वर्तमान में विभाग में जीन क्लोनिंग की प्रदेश स्तरीय लैब भी इनके मार्गदर्शन में संचालित हैं। इनके भी कई विद्यार्थी देश-विदेश में शोध के क्षेत्र में परचम लहरा है।
एक साइंसटिस्ट तो दूसरे सहायक प्राध्यापक
तरुणा और रजनी – विक्रम विवि के जूलॉजी विभाग की तरुणा हेमनानी जॉनसन एण्ड जॉनसन में चीफ साइंसटिस्ट है। इसी तरह रजनी शेट्टी यूनिवर्सिटी ऑफ पेंसिलबोनिया में सहायक प्राध्यापक हैं। दोनों लोगों ने प्रो. परिहार के मार्गदर्शन में पीएचडी की।
संस्कृत साहित्य को सहेज रही तीन पीढ़ी
सांस्कृतिक नगरी उज्जैन में साहित्य के क्षेत्र में गुरु-शिष्य परंपरा तीन पीढ़ी का योगदान महत्वपूर्ण है। जो प्राचीन साहित्य को सहेजने के साथ ही लगातार नए शोध कर रहे हैं। प्रख्यात साहित्यकार व प्रो. बच्चूलाल अवस्थी और उनके शिष्य बालकृष्ण शर्मा व अन्य शामिल हैं।
इनके शिष्य बड़े पदों पर पहुंचे
बच्चूलाल अवस्थी – संस्कृत और साहित्य की समस्त विधाओं के पुरोधाओं के रूप में जाना-माना नाम है। बनारस विवि, सागर विवि सहित शिक्षा के क्षेत्र में देशभर के विश्वविद्यालय से जुड़े रहे। इनके शिष्य साहित्य, शिक्षा के साथ प्रशासनिक क्षेत्रों में बड़े-बड़े पद पर पहुंचे। यह उज्जैन की कालिदास अकादमी के साहित्य शोध केंद्र के संस्थापक प्रमुख रहे।
संघर्ष से जुटाई 3 हजार पांडुलिपी
बालकृष्ण शर्मा – विक्रम विवि की सिंधिया प्राच्य संस्थान के निदेशक हैं। विलुप्त होती दुर्लभ पाण्डुलिपी के संग्रह और संरक्षण में इनका योगदान काफी महत्वपूर्ण है। एक-एक पाण्डुलिपी को तलाशने के लिए इन्होंने काफी संघर्ष किया और 3 हजार तक एकत्रित की। इसी के चलते भारत सरकार की मान्यता प्राप्त पाण्डुलिपि केंद्र स्थापित है।
शिष्यों ने आगे बढ़ाई परंपरा
स्वामी नाथ और हिम्मत लाल – बालकृष्ण शर्मा की परंपरा को उनके दर्जनों शिष्यों ने आगे बढ़ाया, लेकिन इनमें से डॉ. स्वामीनाथ पाण्डे और हिम्मतलाल शर्मा विशेष हैं। पाण्डे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्तर के ग्रंथ का संपादन कर चुके हैं। पाण्डुलिपी संरक्षण के साथ सरायु परिवार पत्रिका का संचालन करते हैं। यह व्यंग्य लेखक के रूप में भी पहचाने जाते हैं। हिम्मतलाल ने संस्कृत माध्यम में शोध पत्र प्रस्तुत किया। यह व्याकरण के क्षेत्र में विशेष कार्य कर रहे हैं।
कबड्डी को फिर पहुंचा रहे राष्ट्रीय स्तर पर
उज्जैन में किसी समय कबड्डी के 40 से 45 क्लब संचालित होते थे। राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी शहर से निकले, लेकिन क्लब के साथ प्रतिभा भी कम होने लगी। खेल मैदान और संसाधन कम हुए, लेकिन इसके बावजूद कबड्डी की तीन पीढ़ी खेल का वजूद बनाई हुई है। इसमें वी. अन्ना विपट और उनके शिष्य शामिल हैं।
खेल में नाम कमाया
वी. अन्ना विपट – योग और व्यायाम के लिए वी. अन्ना विपट का नाम भी शहर में पर्याप्त है। व्यायामशाला में इनके मार्गदर्शन में तैयारी करने वाले खिलाडिय़ों ने विभिन्न क्षेत्रों में परचम लहराया।
कबड्डी को समर्पित
गोपाल व्यास – कबड्डी के राष्ट्रीय स्तर पर पदक विजेता। वर्तमान में राष्ट्रीय रैफरी और 2001 में अंतरराष्ट्र्रीय रैफरी की परीक्षा भी पास की। कबड्डी को आगे बढ़ाने के लिए कारपोरेशन एरिया संस्था बनाई। क्लब से दर्जनों खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं। वी. अन्ना विपट के साथ दिलीप सक्सेना व महेश कटारिया ने भी इन्हे प्रशिक्षण दिया।
क्लब के खिलाड़ी – कारपोरेशन एरिया से केशव मिश्रा, अभिषेक चौधरी, जयप्रकाश, संजू माली, मनीष माली विभिन्न प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुके हैं। संजू जूनियर में इंडिया कैम्प में सहभागिता कर चुका है। प्रो कबड्डी में भी कुछ खिलाड़ी अंतिम दौर में पहुंचे।