उज्जैन को दारूल-फतेह के नाम से भी जाना जाता है
खुज़ेमा चांदाभाई वाला ने बताया कि उज्जैन को दारूल-फतेह के नाम से भी जाना जाता है। मजार-ए-नजमी का निर्माण मकराना के संगमरमर से 1909 में नजऱ अली मुनीरूद्दीन सेठ ने 51वें धर्मगुरु सैयदना ताहेर सैफुद्दीन साहब की देखरेख में करवाया था। 1924 में मजार-ए-नजमी के निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। 51वें धर्मगुरु सैयदना ताहेर सैफुद्दीन साहब ने मजार के गुंबद पर सोने का कलश चढ़ाया एवं मजार-ए-नजमी का उद्धाटन किया था। इतने वर्षों बाद आज फिर 53वें धर्मगुरु सैयदना साहब मजार ए नजमी के गुंबद पर सोने का कलश चढ़ाएंगे।
हसनजी की दरगाह पर पहुंचने की संभावना
बताया जा रहा है कि सैयदना साहब के उज्जैन आगमन पर वे खाराकुआं स्थित सैयदना हसन जी बादशाह की दरगाह पर भी पहुंचेंगे, ऐसी संभावना समाजजन द्वारा जताई जा रही है।
दस माह में दूसरी मर्तबा उज्जैन आगमन
करीब दस माह के बाद सैयदना साहब का दूसरी मर्तबा उज्जैन आगमन हो रहा है, इस वजह से समाजजन में खुशी का माहौल है। कमरी मार्ग स्थित मजार ए नजमी में सजावट और साफ-सफाई का कार्य चल रहा है। उल्लेखनीय है कि इंदौर में जब उनका वाअज कार्यक्रम चल रहा था, उस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी भी उसमें शामिल हुए थे। उज्जैन आने के बाद वे शाजापुर प्रस्थान करेंगे।
देवास में चल रहा था तीन दिवसीय प्रवास
समाज के मेहंदी भाई ने बताया सैयदना साहब का तीन दिवसीय प्रवास देवास में चल रहा था। गुरुवार को उन्होंने देवास में वाअज के दौरान अपने अनुयायियों से कहा जहां भी रहो, मिलजुल कर रहो। चाहे कोई किसी भी धर्म से ताल्लुक रखते हों। एक-दूसरे की मदद करो, जो आर्थिक रूप से कमजोर है, उन्हें आगे बढ़ाओ। व्यापार करो तो हलाल का करो और उसमें ईमानदारी रखो।