सद्भावना हमारे देश की नींव और शिखर
सद्भावना हमारे देश की नींव भी है और शिखर भी। यह कहना है प्रसिद्ध रामकथा व्यास पं. सुलभ शांतु गुरु का। उन्होंने कहा उज्जैन की धरती की धूल में सद्भावना की एक खास महक है, जिसकी सुगंध हम वर्षों से लेते आ रहे हैं। धर्म के अनुसार दूसरों में सद्भावना रखना भी ईश्वर की भक्ति करने के समान ही है। इसे हमारे शास्त्रों में संतों का विशेष लक्षण कहा गया है और मैं अपने को ईश्वर व पिताजी शांतु गुरुजी की विशेष कृपा से खुद को अति सौभाग्यशाली मानता हूं कि ऐसी सद्भावना को प्रतिवर्ष अनुभव करने का अवसर मिलता है। हनुमान जयंती पर पिताजी द्वारा प्रारंभ की गई परंपरा में सभी वर्गों के साथ मुस्लिम समाज वर्षों से हनुमान जी के चल समारोह का उल्लास और उमंग के साथ प्रेम की वर्षा कर स्वागत करता आ रहा है। किसी के प्रति सद्भाव रखना, वह उसके हृदय की विशालता, उदारता और श्रेष्ठता को दर्शाता है। हमारे धर्म में प्रकृति को ईश्वर का स्वरूप माना गया है। ऐसा कहा जाता है इसके कण-कण में भगवान समाए हुए हैं, इसलिए धरती के प्रत्येक प्राणी के लिए सद्भाव रखना चाहिए, यही मनुष्य जीवन का कर्तव्य है, साधना है और भगवान की भक्ति है।
सामाजिक समरसता की बात, लेकिन कथनी-करनी में अंतर
देश में हर तरफ सामाजिक समरसता की बातें हो रही हैं, लेकिन उनमें कथनी और करनी में अंतर आ रहा है। यह कहना है वाल्मीकि धाम के संस्थापक संत उमेशनाथ महाराज का। उन्होंने कहा कि सामाजिक समरसता के साथ समभाव और सद्भावना जब जोड़ा जाएगा, तो मानसिक रूप से हम सभी को तैयार होना पड़ेगा। इससे हमारी मानवीयता उदय होगी। मानवीयता उदय होगी तो जाति, पंथ, संप्रदाय ये सब हमारे सामने नहीं आएंगे। इसी उद्देश्य को लेकर श्रीक्षेत्र वाल्मीकि धाम ने पिछले ३० वर्ष से आंदोलन चला रखा है। जाति-पंथ तोड़ो, राष्ट्र को जोड़ो। इस मुद्दे पर मैं पूरे देश में कर रहा हूं। मुझे लगता है, कि देश को इसकी आवश्यकता महसूस हो रही है। बाहरी ताकतों को तोडऩा है तो देश को भीतर से मजबूत बनाना पड़ेगा। भारत तभी मजबूत होगा, जब हम दिमाग से यह निकलें कि ये ऊंच है और ये नीच है। सद्भावना दिवस पर हमें समभाव, सद्भाव और जाति-संप्रदाय सबको विराम देकर एकजुटता का परिचय देना होगा, तभी यह सार्थक सिद्ध हो पाएगा।
जैन मुनि ने कर्नाटक में बाढ़ पीडि़तों के लिए दिखाई सद्भावना
उज्जैन के तपोभूमि प्रणेता, परोपकारी जैन संत प्रज्ञासागर महाराज इन दिनों कर्नाटक के भोज नामक गांव में चातुर्मास कर रहे हैं। यहां शांतिसागर तीर्थ का निर्माण भी मुनिश्री के सान्निध्य में हो रहा है। संतश्री ने यहां आई बाढ़ से पीडि़तों के लिए विशेष अभियान छेड़ा है। उन्होंने सद्भावना दिवस पर संदेश दिया कि कोई किसी भी धर्म, समाज का हो, आपदा के समय हम सबको एकजुट हो जाना चाहिए। बता दें कि बारिश ने पूरे कर्नाटक में तबाही मचा रखी है। भोज सहित अनेक गांव डूबे हुए हैं। ऐसे में मुनिश्री की शरण में पूरा गांव पहुंच गया, तो उन्होंने सभी के लिए द्वार खोल दिए और सैकड़ों लोगों को शरण दी। सभी के लिए भोजन, पानी और ठहरने का बंदोबस्त किया। उन्होंने संबल कोष का निर्माण किया, जिसमें देशभर के लोग जुड़ रहे हैं और संबल कोष में दान देकर मानव सेवा के लिए आगे आ रहे हैं। तपोभूमि उज्जैन के अशोक जैन चायवाला, सहसचिव सचिन कासलीवाल, कमल मोदी ने बताया कोटा, इंदौर, छिंदवाड़ा, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, दिल्ली आदि शहरों से लोग मदद के लिए आगे आ रहे हैं।
15 साल से करते आ रहे महाकाल सवारी का स्वागत
धर्म, संप्रदाय और समाज की दकियानूसी दीवारों को तोड़ शहर के ऐसे शख्स हैं, जो मुस्लिम होते हुए भी विगत 15 साल से बाबा महाकाल की निकलने वाली सवारियों का विधि-विधान से स्वागत करते हैं, परिवार और आसपास के अन्य लोग भी इसमें शामिल होते हैं। पूर्व पार्षद सलीम कबाड़ी ने बताया कि वे ऐसा करके शहरवासियों को सद्भाव, समभाव और भाईचारे की सीख देना चाहते हैं।