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अब आया ऐसा डिप्लोमा, युवा खेलेंगे ग्रहों के साथ

locationउज्जैनPublished: Feb 07, 2019 12:21:10 am

Submitted by:

Gopal Bajpai

स्टाफ की नियुक्ति और पाठ्यक्रम संचालन की औपचारिकता पूर्ण होते पर अध्यापन प्रारंभ प्रारंभ कर किया जाएगा
 

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स्टाफ की नियुक्ति और पाठ्यक्रम संचालन की औपचारिकता पूर्ण होते पर अध्यापन प्रारंभ प्रारंभ कर किया जाएगा

उज्जैन. महाकाल की नगरी को कालगणना का प्रमुख केंद्र माना जाता है। वेद, व्याकरण, संस्कृत व ज्योतिष के पठन-पाठन का केंद्र उज्जैन में खगोल गणना का अपना महत्व रहा है। इस ज्ञान में युवाओं को और अधिक दक्ष करने के लिए जीवाजी वेधशाला में तैयारी की जा रही है। वेधशाला प्रबंधन ने एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम बनाया है। स्टाफ की नियुक्ति और पाठ्यक्रम संचालन की औपचारिकता पूर्ण होते पर अध्यापन प्रारंभ कर किया जाएगा।
शासकीय जीवाजी वेधशाला वह स्थान है, जहां तारों, ग्रहों, नक्षत्रों आदि को देखने अध्ययन करने, उनकी दूरी व गति जानने तथा वर्तमान मानक समय देखने के उपकरण व यंत्र लगे हुए हैं। वेधशाला में सूर्य की रोशनी में समय की गणना और रात्रि में एक टेलीस्कोप की मदद से ग्रहों व नक्षत्रों को आसानी से देखा जा सकता है। सालों से लोग वेधशाला में स्थापित यंत्रों को देखने आ रहे हैं। डिप्लोमा पाठ्यक्रम में शामिल होने वाले विद्यार्थी इन यंत्रों को देखेंगे के साथ खगोलीय गणना भी सीखेंगे।
सन 1719 में निर्मित
है वेधशाला
शिप्रा के तट पर सन 1719 में जयपुर के शासक महाराजा जयसिंह ने वेधशाला का निर्माण कराया था। सिंधिया राजवंश ने सन् 1923 में इसका जीर्णोद्धार कराया था। वेधशाला में सम्राट यंत्र, नाड़ी वलय यंत्र, भित्ति यंत्र, दिगंश यंत्र तथा शंकु यंत्र के रूप में पांच प्रमुख यंत्र स्थापित हैं।
पाठ्यक्रम शुरू होने के बाद सालों से रखरखाव कर सुरक्षित रखे गए इन यंत्रों का उपयोग हो सकेगा। देश को नए खगोल शास्त्री मिलेंगे। इसी उद्देश्य से इसकी शुरुआत की जा रही है।
उज्जैन नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित
खगोलशास्त्रियों की मान्यता है कि यह उज्जैन नगरी पृथ्वी और आकाश की सापेक्षता में ठीक मध्य में स्थित है। कालगणना के शास्त्र के लिए इसकी यह स्थिति सदा उपयोगी रही है। इसे पूर्व से ग्रीनविच के रूप में भी जाना जाता है। प्राचीन भारत की ग्रीनविच यह नगरी देश के मानचित्र में 23.9 अंश उत्तर अक्षांश एवं 74.75 अंश पूर्व रेखांश पर समुद्र सतह से लगभग 1658 फीट ऊंचाई पर है। इसी भौगोलिक स्थिति के कारण इसे कालगणना का केंद्र बिंदु कहा जाता है। यही कारण है कि प्राचीनकाल से यह नगरी ज्योतिष का प्रमुख केन्द्र रही है। इसके प्रमाण में राजा जयसिंह द्वारा स्थापित वेधशाला आज भी इस नगरी को कालगणना के क्षेत्र में अग्रणी सिद्ध करती है। कालगणना का केंद्र होने के साथ-साथ ईश्वर आराधना का तीर्थस्थल होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया। स्कंदपुराण के अनुसार कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतायन:। इस प्रकार महाकालेश्वर को कालगणना का प्रवर्तक भी माना गया है। भारत के मध्य में स्थित होने से उज्जैन को नाभिप्रदेश अथवा मणिपुर चक्र भी माना गया है।

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