सफलता हाथ नहीं लगी
ऐसा नहीं है कि इन लोगों ने सरकार से मदद के प्रयास नहीं किए। योजनाओं का लाभ पाने के लिए कुछ ने चक्कर भी लगाए, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। ऐसे में इन्हीं मदद की आस भी नहीं है, लेकिन हर कोई किसी न किसी समस्या से परेशान है, जिसका समाधान उनका हक है। पत्रिका ने गुरुवार को विधानसभा चुनाव के संबंध में चाय वालों से उनकी स्थिति पर चर्चा की तो तस्वीर सामने आई कि चंद चायवालों को छोड़कर सभी सामान्य रूप से संघर्षों में जीवन यापन कर रहे हैं। करीब 300 से 400 रुपए रोज कमा रहे है। साथ ही इनके व्यवसाय पर हमेशा निगम प्रशासन की तरफ से संकट बना रहता है।
दो पीढ़ी खप गई, खुद का पैसा नहीं मिला
फ्रीगंज इंदिरा गांधी की मूर्ति के सामने कन्हैयालाल चाय का ठेला लगाते हैं। 27 साल पहले बिनोद मिल बंद हुआ। सड़क पर आ गए। चाय का ठेला लगाया। शुरुआत तौर में पैसे का संकट था। तो बेटा भी आठवीं की पढ़ाई छोड़ साथ में हो गया। तभी से चाय के ठेले का सहारा है। इन्हें किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला। यह अपने मिल पर बकाया पैसे के लिए प्रयास करते हैं। उम्र के आखिरी पढ़ाव में कन्हैया को उम्मीद है कि उनका कुछ पैसा मिल जाए तो बच्चों की कुछ मदद हो जाए। चाय के व्यापार से घर-परिवार की स्थिति पर कन्हैया कहना है कि बाप-बेटे दिनभर काम करते हैं। हमारी हालत देखकर अंदाजा लगा लीजिए।
जब चाहे कुछ भी उठा ले जाते हैं निगम वाले
देवास गेट पर चाय का ठेला लगाने वाले चंद्रप्रकाश खण्डेलवाल 14 साल से ठेला लगा रहे हैं। पहले माधव कॉलेज की साइट पर खड़े होते थे, निगम वालों ने काफी परेशान किया तो सामने की साइट पर आ गए। चंद्रप्रकाश का कहना है कि सरकारी योजना का लाभ लेने के लिए काफी समय पहले प्रयास किया। अधिकारियों का कहना था कि आप का ठेला है। स्थाई दुकान नहीं। कई बार चक्कर लगाने के बाद बेउम्मीद होकर आस छोड़ दी। निगम को प्रतिदिन 20 पर्ची देता हूं। ठेला अतिक्रमण भी नहीं करता है। इसके बावजूद निगम के कर्मचारी कभी भी कुछ भी उठा कर ले जाते हैं। 15-15 दिन ठेला नहीं लगा।
14 साल चाय बांटी, अब खुद का ठेला
क्षीरसागर मैदान के पास जितेंद्र लोदिया ने कुछ वर्ष पूर्व चाय का काउंटर लगाया। हालात का अंदाजा इससे लगाइए कि काउंटर के अगल-बगल दूसरी दुकान, पीछे दीवार और छत का काम पेड़ कर रहा है। जितेंद्र पिछले 14 साल से दूसरी दुकान पर काम कर रहे थे। यहां उन्हें प्रतिदिन चाय बनाने और बांटने के 200 रुपए तक मिलते थे। अब जितेंद्र ने खुद का काउंटर बना लिया है। यह काफी किसी भी योजना का लाभ ही नहीं ले सकें।
चाय के अलावा कर लेते दूसरे काम
शास्त्री नगर मैदान के सामने संतोष की चाय की दुकान है। यह करीब 10 वर्ष पुरानी है। चाय की दुकान से 200 से 300 रुपए कमा लेते हैं। परिवार पालने के लिए संंतोष ड्राइवर जैसे अन्य काम भी कर लेते हैं। संतोष के अनुसार जैसे भी है अपने काम से खुश है। इसमें किसी से क्या परेशानी, जो चल रहा है उसे खुद ही बेहतर करने की कोशिश करते हैं।