1925 में आरएसएस की स्थापना हुई थी। इसके मुख्य संस्थापक गोलवलकर ने द बंच ऑफ थॉट पुस्तक में लिखा है कि लोकतंत्र राज्य चलाने की विदेशी पद्धति है जो भारत में सूट नहीं करती। उन्हीं के परम शिष्य नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे तो विधानसभा का सामना नहीं करते थे और आज पार्लियामेंट का नहीं करते हैं। प्रेस कॉन्फ्रेंस तो वे करते ही नहीं है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज सरकार में वह है, जिनका लोकतंत्र से कोई लेना देना नहीं है। 1962 में जब जवाहरलाल नेहरू पीएम थे और हम चीन से युद्ध हार गए थे तब कवि कुलगुरु रामधारीसिंह दिनकर ने राज्य सभा में बोलने की अनुमति चाही और एक नेहरूजी के खिलाफ कविता पढ़ी, पूरा सदन हिल गया। नेहरूजी दिनकरजी के सामने बैठे और कहा, आपने बहुत अच्छी कविता पढ़ी है, घर जाने से पहले मेरे साथ एक काफी पीने चलिए। कहने का आशय है कि लोकतंत्र में असहमति का भी सम्मान होना चाहिए। – मनोहर बैरागी, कांग्रेस वरिष्ठ नेता
वर्तमान समय में अति गरीब और सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे परिवारों के जीवन का अधिकार भी संकट में है। सरकारी योजनाओं का लाभ केवल उन्हीं को मिलता है जो गरीबी की रेखा की सरकारी परीक्षा में उत्तीर्ण होते हैं। दिक्कत यह है कि सरकार यह पहले से ही तय करके रखे हुए हैं कि हमें तो केवल 26 फीसदी को ही गरीब मानना है। इससे 18 फीसदी गरीब परिवार लोकतांत्रिक सरकार के संरक्षण के अधिकार से वंचित हो रहे हैं। लोकतंत्र सभी लोगों के लिए हैं, सरकार को भी समानता से देखना चाहिए।
– योगेन्द्रसिंह सेंगर, सेवानिवृत निरीक्षक
लोकतंत्र केवल सरकार बनाने या मतदान करने तक ही सीमित नहीं है। ये बहुत व्यापक शब्द है। शासन, प्रशासन को सही रूप में चलाने के लिए लोकतंत्र में शामिल लोगों का सजग रहना जरूरी है। मैं तो कहूंगा कि समाज, वर्ग, धर्म व अन्य जरूरी व्यवस्थाओं में भी लोकतंत्र स्थापित होना चाहिए।
– किशोर खण्डेलवाल, पूर्व यूडीए अध्यक्ष
लोकतंत्र जीवंत लोगों के लिए है, इसमें हर वक्त चैतन्य रहना जरूरी है तभी इसकी सफलता है। जनता का जनता के द्वारा व जनता के लिए करने वाला शासन है लोकतंत्र। इसमें लोगों की महती भागीदारी जरूरी है।
– रूप पमनानी, पूर्व प्रवक्ता, भाजपा मप्र
वर्तमान में लोकतंत्र बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है। संवैधानिक संस्थाओं पर वार हो रहा है। यह लोकतंत्र पर कुठाराघात है। लोकतंत्र में सभी को बोलने का अधिकार है लेकिन यहां तो यह अधिकार भी छीना जा रहा है। विपक्ष भी कुछ कहता है तो उसे देशद्रोह का नाम दे दिया जाता है। कोई शिकायत करें, आंदोलन करें तो उसका कोई असर ही नहीं होता है। जो विरोध करे, असहमति जताए या गलत कार्यों को उजागर करे तो उसे नुकसान पहुंचाने की तैयारी शुरू हो जाती है। यह हिटलरशाही है। लोकतंत्र को जिंदा रखना जरूरी है। इसको लेकर देश का बुद्धिजीवी वर्ग चिंतिंत है लेकिन उनके पास कोई अधिकार नहीं है।
– सत्यनारायण पंवार, पूर्व सांसद व कांग्रेस नेता