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बंजर जमीं में फूंके प्राण, रेतीले टीले पर उगाए जंगल, पढ़िए इनकी प्रेरणास्पद कहानी

locationउदयपुरPublished: Jun 05, 2019 05:29:18 pm

Submitted by:

Bhagwati Teli

पर्यावरण दिवस विशेष : ताकि बचाए जा सके वन्यजीव व हरियाली
पर्यावरण संरक्षण के लिए मिसाल हैं ये लोग

उदयपुर . पृथ्वी प्रभु की सबसे सुन्दर रचना है। यह ब्रह्मांड का एकमात्र पिंड है, जहां लाखों वर्षों पहले एककोशिकीय से लेकर जटिल प्राणियों एवं पेड़-पौधों की उत्पत्ति हुई। दुर्भाग्यपूर्ण वर्तमान में बढ़ती उपभोगवादी संस्कृ ति के कारण पृथ्वी पर पाए वाले अनेक जीव हमेशा के लिए लुप्त हो गए या लुप्त होने के कगार पर हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व से अब तक कुल 750 जन्तुओं और 122 पेड़-पौधों की प्रजातियां लुप्त हो चुके हैं। विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके जीवों को बचाने के लिए सम्पूर्ण विश्व में सरकार के स्तर पर कई प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने अपने बल पर पर्यावरण को सरंक्षित करने का प्रयास किया और आमजन में उनके प्रति जागरूकता उत्पन्न की।
सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय के विनीत सोनी वर्ष 2007 में राजस्थान की अत्यधिक दुर्लभ पादप प्रजाति गुग्गल को बचाने लिए अभियान चला चुके हैं। विनीत ने ग्रामीण एवं आदिवासी लोगों की मदद से अरावली की पहाडिय़ों पर करीब 20 हजार पौधों का रोपण किया। जनजागरण अभियान और लुप्तप्राय पादप प्रजातियों को सरंक्षित करने के लिए विनीत को इंटरनेशनल कंजर्वेशन यूनियन ने अर्थ मूवर चुना था। पढि़ए देश-दुनिया में पर्यावरण संरक्षण के प्रति अलख जगाने वाले लोगों के बारे में ….

रेतीले टीले को कर दिया हरा-भरा

राजस्थान के राणाराम बिश्नोई ने जोधपुर के समीप एक रेतीले टीले को हरे-भरे उद्यान में तब्दील कर दिया। एकलखोड़ी गांव के राणाराम ने करीब 25 बीघा जमीन पर नीम, बबूल, रुहेड़ा, खेजड़ी, कंकड़ी, अंजीर और बोगनवेलिया लगाकर रेगिस्तान में प्राण फूंक दिए। इसके लिए उन्होंने अपने घर व गांव की महिलाओं की सहायता ली और आज वहां 27 हजार पेड़-पौधे लहलहा रहे हैं।
इनका बनाया जंगल को कई जीवों का घर

असम के जादव पायंग ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अनुकरणीय एवं साहसिक पहल की। 52 वर्षीय पायंग ने 30 वर्षों से अधिक समय की कड़ी मेहनत से 550 हेक्टेयर रेतीले टीले को घने जंगल में तब्दील कर दिया। ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित इस रेतीले टीले ‘अरुणा चापोरी’ पर आज विभिन्न वनस्पति प्रजातियों के साथ-साथ कितने ही वन्य प्राणियों का वास है। अपने इस काम के लिए जादव को 2015 में केन्द्र सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा।
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पर्यावरण संरक्षण के मिला शांति का नोबेल

केन्या में 1940 में जन्मी वंगारी मथाई ने 1977 में ग्रीन बेल्ट मूवमेंट संस्था की स्थापना कर पर्यावरण संरक्षण की मुहिम शुरू की। उन्होंने 30 साल तक पांच करोड़ पेड़ लगाने गरीब महिलाओं को एकजुट किया। इस काम के लिए मथाई ने 2004 में शांति का नोबेल पुरस्कार जीता। मथाई को पर्यावरण सरंक्षण में उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने इन्हें इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार, जवाहरलाल नेहरू अवार्ड से सम्मानित किया।
राजस्थान की अमृता देवी बनीं मिसाल

पर्यावरण व वन संरक्षण से जुड़ी जनचेतना की बात की जाए तो चिपको आंदोलन को सभी जानते है। राजस्थान के खेजड़ली गांव की अमृता देवी ने वनों को बचाने के लिए सम्पूर्ण विश्व के समक्ष एक मिसाल पेश की। बिश्नोई समाज की इस महिला ने चिपको आंदोलन के तहत 1730 में खेजड़ी के वृक्षों को बचाने के लिए 363 महिलाओं के साथ अपनी जान दे दी। इनकी स्मृति में राज्य सरकार वन्यजीव संरक्षण में उल्लेखनीय योगदान करने वालों को अमृता देवी बिश्नोई स्मृति पुरस्कार देती है।
निशुल्क चिकित्सा के बदले लगवाए पेड़

इंडोनेशिया में घने वनों के तीव्र गति से खात्मे से बन्दर प्रजाति के जन्तुओं की संख्या में कमी से आहत पेशे से दंत चिकित्सक होटलिन ओमपूणसंगु लोगों में वनों के प्रति जागरूकता लाए। लोगों को वन सरंक्षण के लिए प्रेरित करने के लिए होटलिन ने लोगों को निशुल्क चिकित्सा उपलब्ध कराई। इसके बदले लोगों से वन क्षेत्रों में पेड़-पौधे लगवाए। अपने इस योगदान के लिए होटलिन को 2011 में प्रसिद्ध व्हीटले अवार्ड दिया गया।

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